झाबुआ

मदरसे की 43 बालिकाओं को स्कूल में एडमिशन करवाया कलेक्टर ने मदरसा पहुंचकर पाठ्य पुस्तकें वितरित की*****हब अन्तर्गत सप्ताह 8 ’’लैंगिक संवेदनशीलता सप्ताह’’ जागरूकता कार्यक्रम का जिला कार्यालय से शुभारंभ

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मदरसे की 43 बालिकाओं को स्कूल में एडमिशन करवाया

कलेक्टर ने मदरसा पहुंचकर पाठ्य पुस्तकें वितरित की

 रतलाम अगस्त 2024/ कलेक्टर श्री राजेश बाथम मंगलवार को रतलाम के समीप खाचरौद रोड स्थित आयशा सिद्दिका मदरसा पहुंचे। कलेक्टर ने मदरसे में पढ़ने वाली बालिकाओं को पाठ्य पुस्तक के वितरित की। इस दौरान सीईओ जिला पंचायत श्री श्रृंगार श्रीवास्तव, अपर कलेक्टर श्री आर.एस. मंडलोई, एसडीएम श्री अनिल भाना आदि उपस्थित थे।

कलेक्टर ने कहा कि इस मदरसे में पढ़ने वाली 43 बालिकाओं का स्कूल में एडमिशन नहीं था जिनका स्कूल में एडमिशन करवाया गया है ताकि बालिकाएं आधुनिक शिक्षा भी प्राप्त कर सके। शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत 6 वर्ष से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को आधुनिक शिक्षा देना अनिवार्य है, यही कार्य प्रयास सभी मदरसों किया जाएगा। कलेक्टर ने बताया कि रतलाम मुख्यालय पर निरीक्षण किए गए मदरसों में जो भी कमियां पाई गई है इसके लिए उन्हें कारण बताओ सूचना पत्र जारी किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि जिला मुख्यालय के दो मदरसों में कुछ कमियां पाई गई है उन्हें कारण बताओ सूचना पत्र दिए जा रहे हैं। जिन मदरसे के बच्चों का स्कूल प्रवेश नहीं पाया गया है उन मदरसा संचालकों के विरुद्ध भी नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी। मदरसों का नियमित निरीक्षण किया जाकर धार्मिक शिक्षा के साथ ही आधुनिक शिक्षा की पुख्ता व्यवस्था की जाएगी।

उल्लेखनीय है कि विगत दिनों मध्यप्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा द्वारा मदरसे के निरीक्षण के दौरान मदरसे में बालिकाओं को धार्मिक शिक्षा के साथ आधुनिक मुख्यधारा की शिक्षा दिलवाने के लिए भी ध्यान आकर्षित करते हुए कहा गया था, इस परिपालन में जिला प्रशासन द्वारा मदरसे में बालिकाओं को मुख्यधारा की आधुनिक शिक्षा दिलवाने की व्यवस्था की जा रही है। जिन बालिकाओं का स्कूल में प्रवेश नहीं है उनको स्कूल में प्रवेश भी करवाया गया है ताकि बालिकाएं आगे चलकर बेहतर जीवन यापन कर सके, अपने परिवार का मजबूत सहारा बन सके, आधुनिक मुख्यधारा की शिक्षा प्राप्त करके अपने परिवार एवं अपने करियर में उन्नति कर सके। कलेक्टर ने कहा है कि बालिकाओं को आधुनिक विषयों का भी अध्ययन करवाया जाएगा जिसे बेहतर करियर के साथ बालिकाएं आत्मनिर्भर बन सके।

मदरसे में पढ़ने वाली बालिकाओं को आधुनिक मुख्यधारा की शिक्षा देने का उद्देश्य है कि वे अपने पैरों पर खड़ी हो सकेंगी, आत्मनिर्भर बन सकेंगी। अपनी प्रगति के साथ अपने परिवार का उन्नयन भी कर पाएंगी। आधुनिक मुख्यधारा की शिक्षा प्राप्त करके बालिकाएं उच्च पदों पर पहुंच सकेंगी, अपने परिवार और समाज की बेहतरी में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेंगी। इसके साथ ही बालिकाएं अन्य व्यक्तियों एवं अपने परिवार, संबंधियों को भी उन्नति के लिए प्रेरित कर पाएंगी।

हब अन्तर्गत सप्ताह 8 ’’लैंगिक संवेदनशीलता सप्ताह’’ जागरूकता

कार्यक्रम का जिला कार्यालय से शुभारंभ

रतलाम अगस्त 2024/ जिला रतलाम अन्तर्गत् हब अन्तर्गत् सप्ताह 8 ’’लैंगिक संवेदनशीलता सप्ताह’’ का शुभारंभ का आयोजन जिला महिला एवं बाल विकास कार्यालय के मीटिंग हॉल में हुआ।

इस अवसर पर जिला कार्यक्रम अधिकारी श्री रजनीश सिन्हा ने कहा कि भारतीय संमाज प्रारंभिक समय से पुरूष प्रधान रहा है। बच्चे हमारे समाज की गतिविधियों से ही सीखते हैं। जब वह पढ़ते हैं कि मां घर में खाना बना रही है, सीता पानी भर रही है और रामू पतंग उड़ा रहा है तो उसे लगता है कि इसी प्रकार का लिंग आधारित कार्य विभाजन होता है। हमें इसे दूर करने का प्रयास करना है।

सहायक संचालक श्रीमती विनीता लोढ़ा ने अपने उद्बोधन में कहा कि बालक-बालिका की समान परवरिश घरों से प्रारंभ की जाना चाहिए जिससे लिंग के आधार पर असमानता उत्पन्न ही न हो।  नोडल अधिकारी सुश्री अंकिता पण्ड्या ने कहा कि समाज में बेटी को बेटा बोला जाता है, लैंगिक असमानता का भाव परिवार द्वारा शुरू किया जाता है जो कि आगे बढ़ता रहता है। सुश्री पण्डया द्वारा बताया गया कि कार्यालय में महिला की वेशभूषा से उसका आंकलन कई बार पुरूषों द्वारा किया जाता है जबकि किसी के चरित्र या स्वभाव के आंकलन का आधार वेशभूषा नहीं हो सकती। सहायक कोषालय अधिकारी श्री कीर्ति जलधारी ने कहा कि घरों में वित्तीय निर्णय लेने में महिला की पूर्ण भागीदारी ली जानी चाहिए। आपने कहा कि बचत की आदत पुरूषों की तुलना में महिलाओं में अधिक होती है।

शहरी विकास अभिकरण से नेहा कुआल द्वारा बताया गया कि लैगिक असामनता की शुरूआत घरों से होती है। उन्होंने बताया कि मेरे द्वारा मोटर साईकिल चलाई जाती है, मोटर साईकिल सिर्फ पुरूष ही नहीं चला सकते, महिला भी चला सकती है। मोटर साईकिल बनाने वाले कंपनी ने ऐसा कहीं नहीं लिखा कि मोटर साईकिल सिर्फ पुरूष चलाएगा, महिला नहीं। सुश्री नेहा द्वारा बताया गया कि लैंगिक असामनता की शुरूआत घर से होती है जब बच्चा जन्म लेता है तो हॉस्पीटल से लड़का या लड़की नहीं लिखा जाता है बल्कि ’’बेबी’’ लिखा जाता है, तदुपरांतघर में चर्चा होती है कि लड़के का जन्म हुआ या लड़की का जन्म हुआ।

आयोजन के दौरान कलेक्टर कार्यालय के द्वितीय तल के विभिन्न विभागों जैसे जिला कोषालय, श्रम विभाग, उद्यानिकी विभाग, आयुष विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग इत्यादि के अधिकारी और कर्मचारी उपस्थित रहे। उपस्थित कर्मचारियों द्वारा हब अन्तर्गत् आयोजित गतिविधि को सराहा गया। साथ ही पुरूष कर्मचारियों द्वारा अपने अपने घरों में अपनी जीवनसंगीनी को सहयोग दिए जाने हेतु उपस्थित मंच को अवगत कराया। पूर्ण आयोजन में मुख्य रूप से ’’लैंगिक संवेदनशीलता की शुरूआत घर से मानी गई और सर्वसम्मत होकर घर से ही इसके समापन की अपेक्षा रखी गई।

क्रमांक-152/818/

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