*आजीविका मिशन से जुड़कर ललिता खांगुडा के जीवन में आया आर्थिक परिवर्तन*
*ललिता खांगुडा ने मुख्यमंत्री और प्रदेश की सरकार को दिया धन्यवाद*
झाबुआ 17 अगस्त, 2024। ललिता खांगुडा दीदी की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी। खेती भी बहुत छोटी थी जिसके कारण परिवार की छोटी-छोटी जरूरतें भी पूरी नहीं हो पाती थीं। हर छोटी जरुरत के लिए साहूकारों से ब्याज पर पैसे उधार लेने पड़ते थे और इन पैसों को चुकाने के लिए मजदूरी करनी पड़ती थी। पैसे न होने की वजह से घर में अच्छा खाना-पीना नहीं हो पाता था और बच्चों को अच्छी शिक्षा भी नहीं मिल पा रही थी। ललिता दीदी खुद भी आगे पढ़ना चाहती थीं, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण पढ़ाई नहीं हो पा रही थी। *वर्तमान स्थिति:-* मध्य प्रदेश डे राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के माध्यम से ललिता दीदी सबसे पहले स्वयं सहायता समूह में जुड़ीं। जुड़ने के बाद उन्होंने बैंक से लोन लेकर सर्वप्रथम अपना कर्ज चुकाया और उसके बाद सिलाई मशीन खरीदी। सिलाई का काम करने लगीं और साथ ही आजीविका मिशन में उद्योग सखी के पद पर कार्य करने लगीं। आज आजीविका मिशन में रहते हुए उनकी एक नई पहचान बनी और ग्राम के लोग उन्हें आजीविका मिशन के नाम से जानने लगे। दीदी को मिशन द्वारा एक नई पहचान मिली। ललिता दीदी ने समूह से जुड़कर और समूह के माध्यम से ऋण प्राप्त कर अपनी आजीविका को संवारने का काम किया। इससे उनके परिवार की सामाजिक और आर्थिक स्थिति भी काफी मजबूत हो गई। *गतिविधि से प्राप्त मासिक आय का विवरण:-* सिलाई मशीन से प्राप्त आय 5000 से 6000 रुपये एवं खेती से प्राप्त आय 8000 से 10000 रुपये है। *आर्थिक और सामाजिक विकास:-* ललिता दीदी की आर्थिक स्थिति में सुधार के बाद उन्होंने न केवल अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को मजबूत किया, बल्कि गांव की अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनीं। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से यह सिद्ध कर दिया कि कठिनाइयों के बावजूद, अगर हम प्रयास करें तो सफलता निश्चित है। दीदी ने स्वयं सहायता समूह से जुड़कर न केवल अपने परिवार का जीवन स्तर सुधारा, बल्कि समाज में भी अपनी एक विशेष पहचान बनाई। *समूह की सहायता और विकास:-* ललिता दीदी को समूह से जुड़ने के बाद वित्तीय सहायता के रूप में 50000 रुपये की राशि प्राप्त हुई। इसके अतिरिक्त, बैंक से भी उन्हें 1.2 लाख रुपये का लोन मिला, जिससे उन्होंने अपना कर्ज चुकाया और सिलाई मशीन खरीदी। सिलाई मशीन से दीदी को प्रतिमाह 5000 से 6000 रुपये की आय होने लगी। इसके साथ ही, खेती से भी उन्हें 8000 से 10000 रुपये की आय हो रही है। इस प्रकार, समूह की सहायता से ललिता दीदी की मासिक आय में पर्याप्त वृद्धि हुई है, जिससे उनका जीवन स्तर सुधरा है। *समाज में योगदान:-* ललिता दीदी ने न केवल आर्थिक स्थिति को सुधारने का काम किया, बल्कि समाज में भी अपना योगदान दिया है। उन्होंने अन्य महिलाओं को भी स्वयं सहायता समूह से जुड़ने के लिए प्रेरित किया और उन्हें आत्मनिर्भर बनने की दिशा में मार्गदर्शन दिया। दीदी का यह योगदान समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उनका मानना है कि महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाकर ही समाज में सच्चे विकास की नींव रखी जा सकती है। *दीदी की प्रेरणादायक यात्रा:-* ललिता दीदी की यात्रा संघर्ष और समर्पण की कहानी है। उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी और निरंतर प्रयास करती रहीं। दीदी का यह सफर उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो अपनी जिंदगी में बदलाव लाना चाहती हैं। दीदी का मानना है कि अगर हम सच्चे मन से मेहनत करें और सही दिशा में कदम बढ़ाएं तो कोई भी बाधा हमें सफल होने से नहीं रोक सकती।