यदि संत नहीं बन सकते तो संतोषी बन जाओ। संतोष और शांति मनुष्य जीवन का अनुपम गहना है-’पण्डित अनुपानंदजी **********कथा की विश्रांति पर शहर में निकली भव्य शोभायात्रा, जगह-जगह हुआ स्वागत
यदि संत नहीं बन सकते तो संतोषी बन जाओ। संतोष और शांति मनुष्य जीवन का अनुपम गहना है-’पण्डित अनुपानंदजी
कथा की विश्रांति पर शहर में निकली भव्य शोभायात्रा, जगह-जगह हुआ स्वागत
झाबुआ। शहर के श्री विश्व शांति नवग्रह शनि मंदिर परिसर में श्री पद्मवंशीय मेवाडा राठौर (तेली) समाज द्वारा आयोजित सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिन व्यास पीठ से श्रीमद् भागवत कथा के सरस प्रवक्ता पं. अनुपानंदजी ने कहा कि मनुष्य स्वयं को भगवान बनाने के बजाय प्रभु का दास बनने का प्रयास करें, क्योंकि भक्ति भाव देखकर जब प्रभु में वात्सल्य जागता है तो वह सब कुछ छोड़कर अपने भक्तरूपी संतान के पास दौड़े चले आते हैं। गृहस्थ जीवन में मनुष्य तनाव में जीता है, जबकि संत सद्भाव में जीता है। यदि संत नहीं बन सकते तो संतोषी बन जाओ। संतोष और शांति मनुष्य जीवन का अनुपम गहना है। कथा की विश्रांति पर बैंडबाजों के साथ शहर में भागवत पौथी के साथ भव्य शोभायात्रा निकाली गई।
कथा के सातवें दिन रूखमणी विवाह, भगवान श्री कृष्ण एवं उनके बाल सखा सुदामाजी के चरित्र का वर्णन कथा वाचक पं. अनुपानंदजी ने बखूबी किया। कथा मंे रूखमणी विवाह करवाते हुए उसकी रस्में भी संपन्न कराई गईं। उन्होने श्री कृष्ण एवं सुदामाजी की मित्रता के बारे में बताते हुए कहा कि सुदामा के आने की खबर पाकर किस प्रकार मूरली मनोहर दौड़ते हुए दरवाजे तक उनसे मिलने गए थे। श्रीकृष्ण अपने बाल सखा सुदामा की आवभगत में इतने विभोर हो गए कि द्वारिका के नाथ हाथ जोड़कर और जल भरे नेत्र लिए सुदामा का हालचाल पूछने लगे। पं. अनुपानंदजी ने बताया कि इस प्रसंग से हम यह शिक्षा मिलती है कि मित्रता में कभी धन दौलत आड़े नहीं आती। उन्होने सुदामा चरित्र की कथा का प्रसंग सुनाकर श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। कथा में सुदामा चरित्र के दौरान बड़ी संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं की आंखो से प्रगाढ़ मित्रता के भाव-भरे पलांे को सुनकर नेत्रों सेे अश्रु बहने लगे।
कथा वाचक व लाभार्थी परिवार का सम्मान
सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिन राठौर समाज के पदाधिकारियों एवं समाजजनों द्वारा कथावाचक पं. अनुपानंदजी का साफा बांधकर, पुष्पमाला, गमछा, शाल, श्रीफल भेटकर सम्मान किया गया। पश्चात् सातंवे दिन के लाभार्थी परिवार का स्वागत और सम्मान किया गया। लाभार्थी रणछोडलाल गुलाबचंद सोनावा का साफा बांधकर, गले में गमछा, श्रीफल भेटकर सामाज के अध्यक्ष रामचंद्र राठौर ने स्वागत किया तथा समाज के सदस्य महेश रणछोडलाल राठौर द्वारा प्रतिक चिन्ह देकर लाभार्थी परिवार का सम्मान किया गया।
बैंडबाजों के साथ निकली भव्य शोभायात्रा
स्वागत-सम्मान समारोह के बाद शनि मंदिर परिसर से शाम 6 बजे बैंडबाजों के साथ भागवत पौथी की भव्य शोभायात्रा शहर में निकाली गई। जिसमें आगे पुरूष वर्ग और पीछे नृत्य करते हुए युवतियां और महिलाएं चल रही थी। इनके पीछे सु-सज्जित रथ में कथा वाचक पं. अनुपानंदजी विराजमान रहे। जिनका यात्रा मार्ग में विभिन्न समाज व संस्था के लोगों ने पुष्पवर्षा कर व पुष्पमाला पहनाकर स्वागत किया। शोभायात्रा सिद्वेश्वर महादेव मंदिर के प्रवेश द्वार से आरंभ होकर थांदला गेट, लक्ष्मीबाई मार्ग, राजवाडा चैक, श्री गौवर्धननाथ मंदिर तिराहा, आजाद चैक, बाबेल चैराहा, थांदला गेट होते हुए पुनः शनि मंदिर पहुंची। जहां यात्रा का समापन हुआ। इस दौरान यात्रा मार्ग में भक्तजनों द्वारा भागवत पौथीजी कोे सिर पर उठाकर चलने में अत्यधिक उत्साह दिखाई दिया। यात्रा मार्ग में विभिन्न संस्थाओं और समाज के परिवार की ओैर से ठंडाई, फ्रुटी आदि का वितरण किया गया। आयोजक समिति ने सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा को सफल बनाने पर राठौर समाज ने समस्त भक्तजनों के साथ जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन, नगरपालिका सहित सभी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहयोगियों के प्रति आभार माना।