झाबुआ

वस्तुतः इच्छाओं का निरोध करना ही तप है – अणुवत्स संयतमुनिजी

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तपस्‍वी गरिमा श्रीश्रीमाल ने की 30 उपवास की तपस्या

तपस्वी की निकली जयकार यात्रा

थांदला  (वत्सल आचार्य की रिपोर्ट)/- आचार्य श्री उमेशमुनिजी के सुशिष्य प्रवर्तक श्री जिनेन्द्रमुनिजी के आज्ञानुवर्ती अणुवत्स संयतमुनिजी आदि ठाणा-4 व साध्वी निखिलशीलाजी आदि ठाणा-4 के सानिध्य में यहाँ तपस्याओं का दौर जारी है। तपस्या के क्रम में श्री धर्मलता जैन महिला की सचिव गरिमा दिलीप श्रीश्रीमाल ने 30 उपवास की कठोर तपस्या पूर्ण की । वर्षावास का यह ग्यारहवा मासक्षमण पूर्ण हुआ। तपस्या पूर्ण होने पर तपस्वी के आवास से तपस्वी की जयकार यात्रा निकाली गई। जयकार यात्रा में बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं व बच्चे शामिल थे।यात्रा नगर के प्रमुख मार्गों से होती हुई पोषध – भवन पर पहुंचकर बहुमान समारोह में परिवर्तित हो गई। यहाँ अणुवत्स संयतमुनिजी ने कहा कि -भगवान ने संसार के जीवों को सुख का मार्ग बताया और दुःख का मार्ग भी बताया। सुख के मार्ग पर चलने की और दुःख के मार्ग से बचने की प्रेरणा दी।सुख के मार्ग पर अर्थात धर्म के मार्ग पर चलने वाले ज्यादा या दुःख के मार्ग अर्थात संसार के मार्ग पर चलने वाले ज्यादा, हमें यह विचार करना है। संसार में परिभ्रमण करता हुआ जीव कितने ही खतरे झेल चूका है फिर भी उसे खतरे वाला रास्ता ही अच्छा लगता है क्योंकि वह उसे सुख रूप लगता है, जबकि ज्ञानियों की नजर में वह मात्र दुःख रूप रास्ता ही है। जो जीव पाप के रास्ते पर चलता है वह खतरा मोल लेता है और जो जीव धर्म के रास्ते पर चलता है वह उस खतरे को समाप्त कर देता है। तप से जीव अपने संचित कर्मों को क्षय कर देता है। जीव से जो कर्म हो गए है उन कर्मों को क्षय करने का एकमात्र साधन तप ही है। भगवान ने अनशन, उनोदारी आदि बारह प्रकार के तप बताए है, कदाचित दीर्घ काल का अनशन तप न हो सके तो अन्य तप करके भी विपुल कर्म निर्जरा की जा सकती है। वस्तुतः इच्छाओं का निरोध करना ही तप है।मुनिश्री ने कहा कि देव-गुरु की कृपा बरसती है तो तपस्या होती है । तन और मन दोनों पर नियंत्रण रखना पड़ता है। अनंत कर्मों से मुक्ति के लिए तप करना आवश्यक है। सभा को श्री आदित्यमुनिजी ने भी संबोधित किया। साध्‍वी निखिलशीलाजी व मुनि व साध्वी मण्‍डल ने तपस्वी व तपस्वी के परिवार को खूब-खूब धन्यवाद दिया व तपस्वी की अनुमोदना में स्तवन प्रस्तुत किया। सभा में श्रीसंघ की और से पूर्व श्री संघ अध्यक्ष जितेंद्र घोड़ावत ने अपने विचार व्यक्त किये और मासक्षमण तपस्वी गरिमा श्रीश्रीमाल को उनके तप के लिये खूब-खूब धन्यवाद दिया व मंगल कामना व्यक्त की।तपस्वी परिवार की और से दिलीप श्रीश्रीमाल, सुनिल लोढ़ा उज्जैन व कविता लोढ़ा राजपुर ने अपने विचार व्यक्त किए।संचालन श्रीसंघ सचिव प्रदीप गादिया ने किया। व्याख्यान प्रभावना का लाभ कलावती माणकलाल श्रीश्रीमाल परिवार ने लिया।

तप की बोली लगाकर किया तपस्वी गरिमा श्रीश्रीमाल का बहुमान

30 उपवास के तपस्वी गरिमा श्रीश्रीमाल का श्रीसंघ की और से विभिन्न महानुभावों ने तप की बोली लगाकर शॉल ओढ़ाकर, माला पहनाकर बहुमान किया। श्री संघ अध्यक्ष भरत भंसाली, पूर्व अध्यक्ष प्रकाशचंद्र घोड़ावत, नगीनलाल शाहजी, रमेशचंद्र चौधरी, महेश व्होरा, श्रीसंघ के उपाध्यक्ष राजेंद्र व्होरा,रजनीकांत लोढ़ा, प्रवीण पालरेचा,हेमंत श्रीश्रीमाल,प्रफुल्ल तलेरा,नवयुवक मंडल अध्यक्ष रवि लोढा,सचिव संदीप शाहजी व कोषाध्यक्ष चर्चिल गंग आदि ने तपस्वी को अभिनन्दन पत्र भेंट किया। वही तपस्वी का तेरापंथ सभा, श्री धर्मलता जैन महिला मण्डल, जैन सोश्‍यल ग्रुुप व अ.भा. चन्दना श्राविका संगठन डूंगर प्रान्त आदि विभिन्न धार्मिक, सामाजिक संस्थाओं ने भी तपस्वी का बहुमान किया । साथ ही गादिया, घोडावत, भंसाली, मांगूबाई चौपड़ा,शांता बेन तलेरा परिवार व मनीष मनोज जैन परिवार सहित कई परिवारो ने भी बहुमान किया गया। समारोह मे बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित थे।

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