सबका अभिवादन स्वीकार कर प्रज्ञा बहन ने द्रव्य देकर किया वर्षीदान
थांदला (वत्सल आचार्य की रिपोर्ट ). जिन शासन में संयम का बड़ा महत्व है। शाश्वत सुख को प्राप्त करने जिसे पुण्यशाली आत्मा इस मार्ग का अनुसरण करती है। इस मार्ग पर चलने वाली आत्मा ही जैन धर्म के मूल नवकार महामंत्र के पंचम पद पर प्रतिष्ठित होकर अजर अमर बन जाती है। थांदला नगर में मायानगरी मुंबई की रहने वाली दीक्षार्थी बहन प्रज्ञा चपड़ोद की दीक्षार्थी वर्षीदान जयकार यात्रा निकाली गई। यात्रा के दौरान संघ समाजजनों ने दीक्षार्थी की जयजयकार करते हुए संयम अनुमोदना के खूब नारें लगाएं। नगर के सभी प्रमुख मार्गो से निकलने वाली जयकार यात्रा में दिगम्बर संघ, मूर्तिपूजक संघ, तेरापंथ सभा, आईजा परिवार सहित संघ समाज जनों के अलावा अन्य जनप्रतिनिधियों व समाजजनों ने उनका शाल-श्रीफल-माला पहनाते हुए बहुमान किया। प्रज्ञा बहन ने भी सबका अभिवादन स्वीकार करते हुए वस्त्र-अर्थ द्रव्य द्वारा वर्षीदान किया। यात्रा संघ अध्यक्ष भरत भंसाली के निवास स्थान से नवकारसी के बाद निकाली गई जो आजाद चौक स्थित पौषध भवन पर धर्मसभा के रूप में परिवर्तित हो गई।
संयम ही मोक्ष का प्रवेश द्वार है – साध्वी श्रीजी
धर्म सभा में थांदला नगर में विराजित मूर्तिपूजक संघ व स्थानकवासी संघ के साध्वियों के मंगल प्रवचन हुए। धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए सरलमना पूज्या श्री निखिलशीलाजी म.सा. ने कहा कि मोह व मोक्ष के दो मार्ग है जिसमें से मोह का मार्ग संसार में भटकने का मार्ग है जबकि मोक्ष संसार चक्र से छूटने का मार्ग है ऐसे में पुण्यवानी के उदय से ही कोई आत्मा मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होती है। उन्होंनें प्रज्ञा बहन को मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि उनका यह पुरुषार्थ उनके मोक्ष लक्ष्य प्राप्ति में सहायक बने। इस अवसर पर दीप्तिश्रीजी ने पूज्याश्री के मंगल प्रवचन के बीच सार गर्भित स्तवन इस दुखिया संसार में चेतन उलझन ही उलझन है संयम ही जीवन है सुनाकर संसार के क्षणिक भौतिक सुख संयम के शाश्वत सुख के आगे तुच्छ बता कर संयम लेने की प्रेरणा दी। धर्मसभा में पूज्या श्री वसंतबालाजी म.सा. ने धर्म को परिभाषित करते हुए कहा कि जो आत्मा को गिरते हुए से उठाए वह अहिंसा-संयम-तप रूप धर्म है। उन्होंनें कहा कि 84 लाख जीव योनियों में मनुष्य भव रूपी गोल्डन चांस हमें मिला किसलिए है यह चिंतन जरूरी है। एक हाथी का उदाहरण देते हुए पूज्या श्री ने कहा कि एक हाथी को जंजीर में पकड़ना आसान नही है उसे पकड़ने के लिए शिकारी गड्ढा खोदता है और उसके सामने एक हथिनी का स्टेचू रख देता है जिसमें कामांध हाथी की उस गड्ढे में गिरकर दर्दनाक मौत हो जाती है। हम भी इन इन्द्रिय विषयों में इतने आसक्त बने है कि पाप रूपी गड्ढा हमें दिखाई नही दे रहा है। आज जीव कानों से अच्छा सुनना पसंद करता है, नाक से अच्छे पदार्थो की गंध लेता है, आँखों से तो भयावह पापकारी विजातीय दृश्य देखने में सबकुछ भुला बैठा है ऐसे में एक इन्द्रिय सुख में फंसा हाथी इतना दुःख पाता है तो सभी इंद्रियों में आसक्त जीवों की दशा कितनी भयावह होगी यह सोच कर हमारी रूह कांप जाना चाहिए। मनुष्य भव की सार्थकता को समझकर प्रज्ञा बहन संयम ले रही है यही इस मनुष्य भव की सार्थकता है।
सेवा करते हुए संयम के द्वार खुल गए – दीक्षार्थी प्रज्ञा बहन
धर्मसभा में प्रज्ञा बहन ने राग से वैराग्य कि ओर कदम बढ़ाने की बात बताते हुए कहा कि घर के संस्कार तो धर्ममय थे ही उनकी सहपाठिनी ने भी संयम लेकर पालीताना चतुर्मास किया जहाँ उनके सानिध्य में रहने का उन्हें मौका मिला इस दौरान उनकी दोस्त म.सा. दुर्घटना का शिकार हो गए ऐसे में उन्हें उनकी सेवा करने का मौका मिला वही गुरुणी म.सा. से ज्ञान-ध्यान सीखने का व उनकी भी सेवा करने का मौका भी मिला तब मन हो गया कि संयम ही सूखकर है। बस मन को मजबूत बनाया घर परिवार को बताकर संयम कि राह चलने का दृढ़ संकल्प कर लिया। भंसाली परिवार कि ओर से संध्या भंसाली ने प्रज्ञा बहन के वैराग्य व उनसे जुड़ी अन्य बातें बताई।संघ अध्यक्ष भरत भंसाली ने कविता के माध्यम से दीक्षार्थी की गुण अनुमोदना की इस अवसर पर स्थानकवासी संघ ने दीक्षार्थी सहित समस्त परिवार सदस्यों का बहुमान किया। संघ प्रवक्ता पवन नाहर ने जानकारी देते हुए बताया कि प्रज्ञा बहन आगामी 26 जनवरी को सिद्ध क्षेत्र पालीताना में जैन भगवती दीक्षा अंगीकार करेगी वही उनके पिता विनयचंद्र जी दो वर्ष पूर्व संयम लेकर निरागसुरीजी बनकर धर्म की प्रभावना कर रहे है। उल्लेखनीय है कि प्रज्ञा बहन की माता जीवनबाला चपलोद थांदला श्रेष्ठी स्व.सुंदरलाल व ताराबाई भंसाली की बेटी होकर धर्मधारा पत्रिका सम्पादक वरिष्ठ स्वाध्यायी भरत भंसाली, समाजसेवी अनिल भंसाली व स्वाध्यायी ललित भंसाली की भाणेज है। सकल कार्यक्रम का संचालन संघ मंत्री प्रदीप गादिया ने किया व आभार ललित जैन नवयुवक मंडल अध्यक्ष रवि लोढ़ा ने माना।