झाबुआ – महातपस्वी ,महायशस्वी ,तेरापंथ नायक आचार्य श्री महाश्रमण जी की विदुषी सुशिष्या समणी डॉ. निर्वाण प्रज्ञा जी एवं समणी मध्यस्थ प्रज्ञा जी का चातुर्मासिक मंगल प्रवेश झाबुआ शहर में 9 जुलाई को होगा । तेरापंथ समाज में इस चातुर्मास को लेकर अपार उत्साह व उमंग है तथा श्रावकगण अपने आध्यात्मिक विकास के लिए आतुर है ।
जानकारी देते हुए तेरापंथ समाज झाबुआ के सचिव दीपक चौधरी ( रूप श्री स्वीट्स) ने बताया कि गुरुदेव ने असीम कृपा बरसाते हुए झाबुआ के लिए पहली बार चातुर्मास दिया है यह चातुर्मास अपने आप में इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण है और समाज जन के लिए गौरव की बात है कि झाबुआ शहर की लाडली बेटी , जो वर्तमान में समणी निर्वाण प्रज्ञा के नाम से जानी जाती है का झाबुआ में चातुर्मास है श्री चौधरी ने यह भी बताया कि सांसारिक रूप में समणी निर्वाण प्रज्ञा जी को निर्मला चौधरी के नाम से जाना जाता था । निर्मला चौधरी मांगीलाल जी चौधरी की लाडली सुपुत्री है । आपका जन्म 20 जनवरी 1965 को झाबुआ में हुआ था । आपने अपनी मूल शिक्षा झाबुआ के गर्ल्स स्कूल से ही ग्रहण की । धार्मिक परिवार होने के कारण परिवार जन गुरुदेव के दर्शन जाते थे और लगातार तेरापंथ समाज के साधु-संतों के संपर्क में आने के बाद निर्मला चौधरी के दीक्षा के भाव जागे तथा आपने अपनी इस दीक्षा की इच्छा को अपने परिवार को बताया । परिवार से स्वीकृति मिलने के बाद ही आप ने 16 वर्ष की उम्र में संस्था में प्रवेश किया तथा धर्म को बारीकी से समझा व जाना । 18 अप्रैल 1986 में 20 वर्ष की उम्र में आपने अपने भाई डॉ. अमृतमुनि (सांसारिक ) और बहन समणी डॉ चेतन्य प्रज्ञा जी के साथ गुरुदेव तुलसी से राजनगर (राजस्थान )में समणी दीक्षा ग्रहण की । आपने आपनी शिक्षा निरंतर जारी रखते हुए M.A अहिंसा में ….पूर्ण की तथा इसके बाद आपने पी.एच.डी भी ..अहिंसा शिक्षण प्रशिक्षण में …. पूर्ण की । गुरु चरणों की आराधना करते हुए साधना पथ पर आप निरंतर आगे बढ़ती रहे । वही समणी मध्यस्थ प्रज्ञा जी गंगाशहर बीकानेर की निवासी है उनके पिता का नाम भंवरलाल पारख है आपका जन्म 9 जनवरी 1980 को गंगा शहर में हुआ । आपने समणी दीक्षा 2001 में प्राप्त की । आपने शिक्षा M.A जैन दर्शन से किया तथा आपकी रूचि संगीत व तत्वज्ञान में । श्री चौधरी ने यह भी बताया कि 9 जुलाई को सुबह 9:00 बजे समणीवृंद का लक्ष्मी बाई मार्ग स्थित तेरापंथ सभा भवन में प्रवेश होगा तथा इस दिन एक धार्मिक रेली का भी आयोजन किया जाएगा ।
समण श्रेणी क्या है…….।। .
तेरापंथ समाज के वरिष्ठ सुश्रावक और संरक्षक ताराचंद गादीया ने बताया कि श्वेतांबर परंपरा में 18वीं शताब्दी में महान क्रांतिकारी आचार्य भिक्षु ने तेरापंथ संप्रदाय की स्थापना की । उनकी परंपरा मे नोवे आचार्य श्री तुलसी हुए । जिन्होंने जैन धर्म को विश्वव्यापी बनाने की दिशा में अनेक क्रांतिकारी कार्य किए । उन कार्यों में एक है समण श्रेणी की स्थापना । वर्तमान युग की बदलती हुई परिस्थितियों में एक नए अध्याय की आवश्यकता थी । गुरुदेव तुलसी ने अपनी साधना और चिंतन से जैन धर्म को भारत में ही नहीं वरन पूरे विश्व में फैला दिया । गुरुदेव तुलसी ने इस हेतु समण श्रेणी का निर्माण किया और उन्हें भारत के कोने कोने में भेजा । भारत से बाहर विदेश की धरती पर भेजकर उन्होंने जैन धर्म को व्यापक बनाया । साधु-साध्वी पांच महाव्रत का पालन करते हैं तथा वाहनों का उपयोग नहीं कर सकते हैं इस बात को भी ध्यान में रखते हुए गुरुदेव तुलसी ने समण श्रेणी का निर्माण किया । जो साधु की तरफ पांच महाव्रत तो पालते है लेकिन धर्म के प्रचार प्रसार और धर्म के सिद्धांतों को जन जन तक पहुंचाने के लिए वाहनों का प्रयोग कर सकते हैं । गुरुदेव तुलसी की दूरदृष्टि का यह परिणाम है कि आज समण श्रेणी देश विदेश में जैन धर्म का व्यापक प्रचार प्रसार कर रहे हैं तथा जैनधर्म के सिद्धांतों को जन जन तक पहुंचा रहे हैं । वही समणी जी की विदेश यात्रा के दोरान भारत के बाहर विदेशों में रहने वाले लाखों जैन और विदेशी लोगों ने जैन धर्म को समझा और अपनाया हैं उसी का परिणाम है कि आज अमेरिका जैसे देश में लगभग 40 विश्वविद्यालयो मे जैनधर्म का अध्ययन कराने हेतु प्रारंभ हो चुके है ।