झाबुआ

भगवान महावीर और आचार्य भिक्षु में अनेक समानताए :-समणी डा. निर्वाण प्रज्ञा जी

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झाबुआ – तेरापंथ धर्मसंघ के आध्यप्रवर्तक आचार्य श्री भिक्षु के 297वें जन्मदिन एवं 265 वा बोधी दिवस, चार्तुमासिक चतुर्दशी को समाज जन द्वारा श्रद्धा , त्याग और तपस्या के साथ मनाया । इस अवसर पर धार्मिक क्विज प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया ।

तेरापंथ के संस्थापक आचार्य भिक्षु के जन्मदिवस पर डॉक्टर निर्वाण प्रज्ञा जी ने श्रावकगण को संबोधित करते हुए कहा कि वह तिथि भी धन्य हो जाती है जो महापुरुषों के जीवन से जुड़ जाती है | भगवान महावीर के जीवन से जुड़कर कार्तिक अमावश्या भी निर्मल व पूजनीय व प्रकाश-पुंज बन गई | इन तिथियों को मनाने से अनेक प्रकार की जानकरियां भी प्राप्त हो सकती है | १७८३ आषाढ़ शुक्ला त्रियोदशी को आचार्य भिक्षु का जन्म हुआ व ३ साल बाद उनका ३०० वां जन्म दिवस होगा | तीर्थंकरों की अनुपस्थिति में आचार्य ही तीर्थकर के प्रतिनिधि होते है | आचार्य भिक्षु व भगवान महावीर में अनेक समानताएं थी – दोनों का जन्म आषाढ़ शुक्ला त्रियोदशी के दिन हुआ, दोनों ने गृहस्थ जीवन में शादी की व दोनों के एक एक पुत्री के पिता बने, दोनों युवावस्था में साधु बने, दोनों के दो माताएं हुई, सिंह स्वप्न दोनों की माताओं ने देखा, दोनों ने ८ वें दशक में जीवन पूर्ण किया | इनके अतिरिक्त कोई अन्य जैन आचार्य व में भी महावीर के साथ कोई समानता हो तो इसका अनुसंधान व शोध किया जाय | आचार्य के पास शारीरिक स्वस्थता, इन्द्रिय सक्षमता, कार्यशीलता व चहरे पर ओज रहे | पर चहरे की सुन्दरता का उतना महत्व नहीं होता जितना गुणवता का होता है | आचार्य भिक्षु के चेहरे का गौर वर्ण नहीं था फिर भी गुणवता, साधना, श्रुत व शील संपदा थी | अनेक ग्रंथों की रचना व साहित्य सृजन भी आपने किया | बुद्धि का भी बड़ा महत्व है जो क्षयोपसम भाव का परिणाम है | बुद्धि के साथ शुद्धि व श्रद्धा भी रहे | उनके जन्मदिवस पर उन्हें श्रद्धा-सिक्त वंदना करते हुए उनके बताए हुए मार्गो पर चलने का प्रयास करेंगे ।

समणी मध्यस्थ प्रज्ञा जी ने संबोधित करते हुए कहा- जब जब धर्म का बिखराव होता हैं, तब – तब धरती पर महापुरुषों का जन्म होता हैं। भगवान महावीर के निर्वाण के बाद लगभग 600 वर्ष बाद जैन धर्म दो भागों में विभक्त हो गया – श्वेताम्बर और दिगम्बर! विक्रम संवत 1783 को राजस्थान कांठा क्षेत्र के कंटालिया में साधारण परिवार में माँ दीपा की कुक्षी में बालक भीखण का जन्म हुआ। सामान्य परिस्थितियों में लालन पालन के बाद युवा अवस्था में आचार्य रघुनाथ के पास वैराग्य भाव से दीक्षा स्वीकार की। उत्पातिया बुद्धि के आधार पर लगभग 5 वर्षों में ही आगमों का गहन अध्ययन कर लिया। कहते है जब व्यक्ति का प्रबल पुण्योदय होने वाला होता हैं, तो योग भी सामने चल कर आते हैं। वि. सं. 1814 में राजस्थान राजनगर के श्रावकों ने आगम सम्मत आचार विचार नहीं होने के कारण साधुओं को वन्दना व्यवहार बन्द कर दिया। आचार्य रघुनाथजी के कहने पर मुनि भीखणजी राजनगर में चातुर्मास हेतु गये और प्रभावशाली व्यक्तिव के धनी ने तार्किक बुद्धि के आधार पर श्रावकों का वन्दना व्यवहार पुन: शुरू करवाया! लेकिन अचानक रात्रि में मुनि भीखण को तेज बुखार आ गया। उन्होंने आत्मचिंतन किया और मंथन के आधार पर निष्कर्ष निकाला की साधुओं के आचार विचार आगम सम्मत नहीं है। चातुर्मास सम्पन्नता के बाद आचार्य रघुनाथजी से निवेदन किया, लेकिन उन्होंने पांचवें आरे का कह कर उनकी बातों को टाल दिया। बहुत समय तक आचार्य श्री रघुनाथजी के नहीं मानने पर वे धर्म संघ से अलग हो गए। उनका कोई पंथ चलाने का नहीं, अपितु आत्मचिन्तन था कि ..मर पुरा देस्या, आत्मा का कारज पुरा करस्या!* भगवान महावीर की वाणी के आधार पर संयम साधना का निर्वहन कर मृत्यु को प्राप्त करेंगे। लेकिन नियती को कुछ अलग ही योग था, शुरूआती वर्षों की कठिनाईयों से आगे निकल कर लोग उनके साथ जुड़ने लगे, साधु – साध्वी के रूप में उनके सहगामी बनने लगे, अनुयायी के रुप में उनका अनुसरण करने लगे। जिस पगदड़ी पर मुनि भीखण आत्म साधना के लिए निकल पड़े। वह पगदड़ी, सड़क मार्ग आज “तेरापंथ धर्मसंघ” का राजपथ बन चुका हैं। आचार्य भिक्षु ने भगवान महावीर ने जो कहा, बतलाया, पथदर्शन दिया, उन्हीं को उन्होंने अपनाया, आत्मसात किया और जन मानस को भी उस मार्ग पर चलने के लिए उत्प्रेरित किया। उनकी तार्किक बुद्धि से आगमों का वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में बताने के आधार पर धीरे धीरे अन्य साधु समुदाय भी आगम सम्मत, आचार विचार पर यथायोग्य चलने का प्रयास करने लगे एवं जैन धर्म का बिखराव ठहर गया और आज मात्र चार भागों तक सिमट गया । सत्य के मार्ग पर कुछ कठिनाईयाँ आ सकती हैं, लेकिन हमें अपने आराध्य की आराधना करते हुए उस सत्य रूपी राजपथ को नहीं छोड़ना चाहिए। आचार्य श्री भिक्षु को आज ही के दिन आत्म बोधि की प्राप्ति हुई थी, उसी के आधार पर सोमवार के दिन को बोधि दिवस के रूप में मनाया जाता हैं|

जन्म दिवस व बोद्धि दिवस पर धार्मिक क्विज प्रतियोगिता का आयोजन

संध्याकालीन करीब 7:00 बजे चातुर्मासिक चतुर्दशी के अवसर पर समाजजन दारा समणीवृंद के मार्गदर्शन में सामूहिक रुप से प्रतिक्रमण किया। पश्चात रात्रि करीब 8:00 बजे तेरापंथ सभा भवन मे समाज जनों की उपस्थिति में धार्मिक क्वीज प्रतियोगिता का आयोजन किया गया । इस क्विज प्रतियोगिता में आचार्य श्री भिक्षु के जन्म से लेकर संपूर्ण जीवन काल पर आधारित प्रश्नोत्तरी थी । करीब 8 ग्रुप द्वारा इस प्रतियोगिता में भाग लिया गया । करीब 4 राउंड के इस प्रतियोगिता में लैपटॉप के माध्यम से इस क्विज प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। समणी मध्यस्थ प्रज्ञा जी के निर्देशन में प्रतियोगिता प्रारंभ हुई और निर्णायक समणी निर्वाण प्रज्ञा जी थे । प्रथम राउड में आचार्य श्री भिक्षु के जीवन परिचय को लेकर विभिन्न प्रश्न प्रतियोगिता के अंतर्गत पूछे गए । प्रथम राउंड में लगभग सभी ग्रुप द्वारा सही उत्तर दिए गए ।दित्तीय राउड में रिक्त स्थानों की पूर्ति करना थी जिसमें कुछ ग्रुप द्वारा सही उत्तर दिया , तो कुछ द्वारा अधूरे । तीसरे राउंड में मुझे पहचानो …अंतर्गत आचार्य श्री भिक्षु के शासनकाल दौरान विभिन्न परिस्थितियों अंतर्गत चित्र लैपटॉप के माध्यम से प्रदर्शित किए गए , जिन्हें देखकर उस गीत का संगान करना था है तथा एक प्रश्न का उत्तर भी देना था । चौथे राउंड में ….मैं गलत हूं …सही करो …अंतर्गत महामना के जीवन काल के दौरान विभिन्न रचनाएं , पदय परिस्थितियों अनुसार कुछ वाक्य लैपटॉप के माध्यम से प्रदर्शित किए गए , जिन्हें सही करना था । यह राउड काफी कठिन था फिर भी कई ग्रुप के सहभागियो ने सही उत्तर दिए । इस प्रकार डिजिटलाइज प्रतियोगिता के माध्यम से समाज जनों को महामानव भिक्षु के जीवन काल के बारे में काफी कुछ जानने और सीखने को मिला । इस प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर दीपक चौधरी व प्रमिला जैन ग्रुप , द्वितीय स्थान पर मितेश गादीया व दीपा गादीया ग्रुप तथा अर्चना चौधरी व प्रीति चौधरी ग्रुप । इसके अलावा आचार्य श्री भिक्षु के जन्म दिवस के अवसर पर समाज के कई श्रावक श्राविकाओ ने उपवास की तपस्या की तथा.कुछ ने एकासन तप भी किए।

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