ज्ञान और भगवान की प्राप्ति का मार्ग केवल एक गुरु ही दिखा सकता है- डा. श्रीमती उषा व्यास ******** हृदय को स्वच्छ रखें तो चरित्र अपने आप सुंदर होगा- रवि हंसोगें,********* श्री सत्यसाई सेवा समिति ने गुरू पूर्णिमा पर 11 गुरूओं का किया सम्मान,
ज्ञान और भगवान की प्राप्ति का मार्ग केवल एक गुरु ही दिखा सकता है- डा. श्रीमती उषा व्यास ******** हृदय को स्वच्छ रखें तो चरित्र अपने आप सुंदर होगा- रवि हंसोगें,********* श्री सत्यसाई सेवा समिति ने गुरू पूर्णिमा पर 11 गुरूओं का किया सम्मान,
रतलाम । गुरूपूर्णिमा के अवसर पर श्री सत्यसाई सेवा समिति रतलाम द्वारा स्थानीयरेल्वे कालोनी स्थित श्री सत्यधाम पर गुरू पूर्णिमोत्सव श्रद्धा एवं भक्ति के साथ मनाया गया । इस अवसर पर आयोजित आध्यात्मिक बौद्धिक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता डा. श्रीमती उषा व्यास ने गुरू पूर्णिमा का महत्व बताते हुए कहा कि हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है. इसी दिन वेदों को विभाजन तथा पुराणों की रचना करने वाले वेदव्यास जी का जन्म भी हुआ था। गुरु के बिना न तो जीवन की सार्थकता है और न ही ज्ञान प्राप्ति संभव है। जिस तरह हमारी प्रथम गुरु मां हमें जीवन देती हैं और सांसारिक मूल्यों से हमारा परिचय कराती हैं। ठीक उसी तरह ज्ञान और भगवान की प्राप्ति का मार्ग केवल एक गुरु ही दिखा सकता है। गुरु के बिना कुछ भी संभव नहीं है। शायद यही वजह रही होगी कि गुरु पूजा की शुरुआत की गई। सनातन संस्कृति में गुरु देवता को तुल्य माना गया है। गुरु को हमेशा से ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान पूज्य माना गया है। वेद, उपनिषद और पुराणों का प्रणयन करने वाले वेद व्यासजी को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है। महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को लगभग 3000 ई. पूर्व में हुआ था। उनके सम्मान में ही हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन व्यास जी ने शिष्यों एवं मुनियों को सर्वप्रथम श्री भागवतपुराण का ज्ञान दिया था। अतः यह शुभ दिन व्यास पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है।
श्री रवि हंसोगें ने गुरू को ही भगवान का स्वरूप बताते हुए कहा कि श्री सत्य साई बाबा अक्सर कहा करते थे समुद्र का स्वाद चखने के लिए सारे समुद्र को पीने की आवश्यकता नहीं यानी सुखी व शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए मनुष्य को सभी वेदों इत्यादि को पढऩे की आवश्यकता नहीं। इसके लिए किसी एक आध्यात्मिक शिक्षा को जीवन में आत्मसात करना ही काफी है। बाबा कहते थे-आत्मा हमारा गुरु एवं मार्गदर्शक है। अगर हम अपनी आत्मा की आवाज सुनेंगे तो हम अच्छे इंसान बन सकते हैं। इसके लिए व्यक्ति में दृढ़ संकल्प होना आवश्यक है । ईश्वर पर विश्वास करें, क्योंकि मानव जाति के लिए ईश्वर एक है, बेशक उसे अनेक नामों से पुकारा जाता हो। हृदय को स्वच्छ रखें तो चरित्र अपने आप सुंदर होगा। अगर चरित्र सुंदर है तो घर समृद्ध होगा, देश खुशहाल बनेगा, विश्व में शांति होगी। न हम मस्तिष्क हैं और न हम शरीर हैं, हमारे भीतर एक आत्मा है जिसने हमारे शरीर को अस्थायी रूप से बनाया है और हम जब अपनी आत्मा की प्रशंसा करते हैं तो जो हमारे भीतर भगवान है उसे जान सकते हैं।शांति की गहराइयों में ही ईश्वर की आवाज सुनी जा सकती है। श्री सत्यसाई बाबा ने कहा था कि मेरा जीवन ही मेरा संदेश है और आप का जीवन भी मेरा संदेश है। इसलिये सत्य साईबाबा के वचनों के अनुरूप अपने आप को साबित करना हमारा नैतिक दायित्व है।
समिति के संदीप दलवी ने जानकारी देते हुए बताया कि सायंकाल 6-30 बजे से वेदपाठ के बाद नाम संर्कीतन का आयोजन हुआ तथा गुरू पूर्णिमा क पावन अवसर पर समिति द्वारा 11 बाल विकास गुरूओ का सम्मान भी किया गया । कार्यक्रम का सफल संचालन सुश्री शिवानी सिंह ने किया । करीब 3 घटे चले आध्यात्मिक कार्यक्रम में महा मंगल आरती के बाद प्रसादी के वितरण के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ ।