झाबुआ

हम परमात्मा के पास शुध्द काया और वचन से तो जाते हैे किंतु शुध्द मन से नही जाते हेै, इस कारण से हम परमात्मा की निर्मलता को देख नही पा रहे है – आचार्य श्री नित्यसेनसूरिश्वर जी मसा.

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चातुर्मास में ग्रंथ और शास्त्र की शोभा यात्रा निकली ।


झाबुआ। मनुष्य के लिये चातुर्मास मे आराधना अत्यंत आवश्यक बतलायी हेै, साथ ही परमात्मा के वाणी को श्रवण करना भी आवश्यक बताया गया हेै । जब तक व्यक्ति योग का उपयोग नही करता वह कितनी भी प्रवृत्ति करे निष्फल होती हेै । जीवन को जीवंत रखने के लिये , भ्रमण को समाप्त करने के लिये क्रियाएं करना भी आवश्यक है । वर्तमान मे हमने केवल संसार की प्रवृत्ति को ही आवश्यक मान लिया हैे जबकि निवृत्ति मूलक प्रवृत्ति मोक्ष की और ले जा सकती हे ! ’’योग सार ’’ ग्रंथ हमे संसार के बंधन से केैसे निवृत्ति मिले यह समझाता है । उपरोक्त प्रेरक प्रवचन आज शुक्रवार को गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद विजय नित्यसेन सुरीश्वरजी मसा ने ’’योग सार ग्रंथ ’’ और ’’जम्बूकुमार स्वामी शास्त्र ’’ का वाचन प्रारम्भ करते हुए श्री राजेंद्र सूरी पौषध शाला मे विशाल धर्म सभा मे शुक्रवार को कही ।
 आचार्य श्री ने कहा कि  मानव जीवन आत्म कल्याण के लिये मिला हेै । मोक्ष के द्वार अभी भी खुले हैे , बंद नही हुए है,े आवश्यकता हेै कषायों से निवृत्त होना । हमारी प्रवृत्ति संसार बढाने की हेै । यह ग्रंथ संसार से मुक्ति केैसे मिले . यह ज्ञान देता है । इस अवसर पर मुनिराज़ निपुणरत्न विजयजी मसा ने योग सार ग्रंथ के बारे मे बताया की इस ग्रंथ मे 5 विभाग हेै जिसमे कुल 206 गाथा का वर्णन आता है । प्रथम विभाग की चर्चा करते हुए मुनिश्री ने कहा कि  परमात्मा का स्वरूप केैसा है,े यह हमने अभी समझा ही नही है । हम परमात्मा के पास शुध्द काया और वचन से तो जाते हैे किंतु शुध्द मन से नही जाते हेै, इस कारण से हम परमात्मा की निर्मलता को देख नही पा रहे है । मन पर नियंत्रण सबसे कठिन होता हैे वचन और काया का नियंत्रण तो हो सकता है । आवश्यकता मन को आत्मा के साथ जोड़ने की हैे । आपने कहा कि  इस ग्रंथ के माध्यम से समताभाव हेतु क्या सत्व हमारे पास होना चाहिए समझ सकते है । इस महान ग्रंथ के लेखक ने अपना नाम नही दिया इसमे यह संदेश मिलता हेै कि कितना भी बडा काम करे, नाम कृतित्व की  अपेक्षा नही रखे । आपने कहा कि हमारे मूल आत्मस्वभाव को खंडित करने में बाह्य्य अभ्यन्तर कारण जिसमे राग , द्वेष और एकान्तर भाव होते हैे और योग सार ग्रंथ इन सबसे आत्मरक्षण करता है । आपने कहा कि  धर्म श्रवण मे रुचि होने से जीव सम्यक दर्शन की और आगे बढ़ता हैे और अरुचि और देरी करने से जीव स्वयं अपनी आत्मा का अनादर करता हेै ।
ग्रंथ और शास्त्र की शोभा यात्रा निकली –
धर्म सभा के पूर्व आज शुक्रवार को योग सार ग्रंथ और जम्बूकुमार स्वामी शास्त्र की लाभार्थी परिवार कमलेश कोठारी और प्रदीप बस सर्विस परिवार के निवास से शोभा यात्रा निकली । पौषध हाल मे दोनो ग्रंथ और शास्त्र विधि पूर्वक आचार्यश्री को वोहराया गया ।  इसके पश्चात प्रथम वासक्षेप पूजन श्री अरविन्द मुकेश लोढ़ा परिवार , डितिय बासाक्षेप पूजन श्रीमती मांगुबेन सकलेचा परिवार , तीसरी पूजन पंकज दयडा परिवार , चतुर्थ पूजन राकेश राजेंद्र मेहता परिवार और पंचम पूजन राजेश मेहता परिवार ने की । दोनो ग्रंथ और शास्त्र की ज्ञान आरती चन्द्रशेखर मनोज मुकेश जैन परिवार ने की । अंत मे गुरुदेव श्रीराजेंद्र सुरीश्वरजी मसा और पुण्य सम्राट श्री जयंतसेन सुरीश्वरजी मसा की आरती जितेंद्र भारत बाबेल ने उतारी । इस अवसर पर साधु -साध्वी मंडल भी उपस्थित थे । सभा का संचालन डा प्रदीप संघवी ने किया

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