झाबुआ

शुद्ध धर्म ही जीव का आत्म कल्याण कर सकता है -ः प्रवर्तक पूज्य जिनेन्द्र मुनिजी मसा ~~~~~ मोक्ष मार्ग पर चलने के लिए आगम पर श्रद्धा रखना जरूरी -ः पूज्य संयत मुनिजी मसा

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शुद्ध धर्म ही जीव का आत्म कल्याण कर सकता है -ः प्रवर्तक पूज्य जिनेन्द्र मुनिजी मसा ~~~~~
मोक्ष मार्ग पर चलने के लिए आगम पर श्रद्धा रखना जरूरी -ः पूज्य संयत मुनिजी मसा

झाबुआ। स्थानक भवन में आयोजित चातुर्मास के अंतर्गत 15 जुलाई, शुक्रवार को आयोजित धर्मसभा में पूज्य जिनेन्द्र मुनिजी मसा ने फरमाया कि अनादिकाल से जीव सुमार्ग एवं सन्मार्ग के लिए संसार में परिभ्रमण कर रहा है। दुःख उठा रहा है। व्यक्ति को आज गलत मार्ग पसंद है, इसलिए वह दुखी हो रहा है।
तीर्थंकर भगवान द्वारा बनाया गया धर्म की शुद्ध है। यहीं धर्म जीवन का आत्म कल्याण कर सकता है। व्यक्ति यदि सन्मार्ग पर चलेगा, तो दुः,ख का स्वतः ही अंत हो जाएगा तथा वह सुखी बनेगा। आवश्यक सूत्र में नमोचोविसाए पाठ में धर्म की श्रेष्ठता बताई गई है, इसकी अच्छाईयों को सुनकर अपने ह्रदय में विश्वास जगाना है। यदि हम धर्म के प्रति श्रद्धा और विश्वास बढ़ाएंगे, तभी हमारा प्रवचन सुननना और समझना हितकारी साबित होगा। मुनिजी ने आगे बताया कि जिस प्रकार आज खाने-पीने की वस्तुओं में मिलावट हो रहीं है, उसी तरह आज धर्म में भी मिलावट हो रहीं है। मिलावटी खाने-पीने से शरीर बिगड़ेगा, शक्ति घटेगी। उसी तरह मिलावटी धर्म सुननें से जीवन बिगड़ता है।
अहिंसा धर्म ही शुद्ध धर्म
आपने बताया कि अहिंसा धर्म ही शुद्ध होता है। जिस धर्म में अपरिग्रह, पाप से छुड़ाने, अशोर्य, सत्य एवं अब्रम्हचर्य की बात होती है, वह धर्म शुद्ध होता है। ऐसे धर्म का पालन करने से आत्मा शुद्ध होती है। जो व्यक्ति धर्म का जितना पालन करता है, वह सभी दुखों से रहित होकर मोक्ष को प्राप्त करता है। आत्मा मलिन है। वह पाप रूपी जल से धोने से शुद्ध नहीं हो सकती है। पाप ही आत्मा को बाहर-भीतर से अपवित्र बनाता है। भगवान स्वयं अहिंसा का पालन करते है। तीर्थंकर छदमस्त हो तोr भी मन-वचन-काया से अहिंसा धर्म का पालन करते है।
दो प्रकार के होते है शल्य
पूज्य जिनेन्द्र मुनिजी ने बताया कि शल्य दो प्रकार के होते है, द्रव्य शल्य एवं भाव शल्य। द्रव्य शल्य शरीर को पीढ़ा देने वाला है। वहीं भाव शल्य मन-वचन-.काया की बुरी प्रवृत्ति मिटाने वाला है। भौतिक पदार्थों की कामना करने वाला निदान शल्य है। यह शल्य साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका सभी करते है। निदान दुःख शल्य है। तत्पश्चात् पूज्य संयत मुनिजी मसा ने फरमाया कि महावीर स्वामी जस विचरण कर रहे थे, वे स्वयं तीर्थंकर थे। उस समय अन्य अन्य केवली, मन पर्याय ज्ञानी, अवधि ज्ञानी, 14पूर्वीधारी भी थे, परन्तु आज ये आज कोई भी नहीं है। वर्तमान में कोई विशिष्ट ज्ञानी नहीं है। वर्तमान में विश्वास के लायक केवल आगम है, यहीं भगवान की वाणी है।
आगम दो प्रकार के होते है
मुनिजी ने बताया कि गौतम स्वामीजी भी विचरण के समय आगम को आगे रखते थे। जिस प्रकार देश संविधान के अनुसार चलता है, उसी तरह हमारा यह जिन शासन आगम के अनुसार चलेगा। मोक्ष मार्ग पर चलने के लिए आगम पर श्रद्धा रखना जरूरी है। आगम दो प्रकार के होते है, लोकिक एवं लोकोत्तर आगम। गणित, विज्ञान लोकिक आगम है। भगवान का शासन लोकोत्तर आधार पर चल रहा है। भगवान केवल ज्ञान प्राप्त होने के बाद ही देशना देते है। केवल ज्ञानी एक समान कहते है। एक-दूसरे तीर्थंकर में विरोधाभास नहीं होता है। छदमस्त में विरोधाभास होता है। सर्वज्ञ होने के बाद केवल ज्ञानी समान होते है। सर्वज्ञ कभी भी भ्रमित नहीं होते है, उनकी वाणी विश्वसनीय है। सर्वज्ञ में कोध, मान, माया, लोभ काया, कषाय आदि नहीं होता है।
प्रत्याख्यान ग्रहण किए गए
संयत मुनिजी ने आगे बताया कि चरित्र में परिग्रह घटाने की बात कही गई है। परिग्रह के पीछे व्यक्ति पागल हो जाता है, गिर जाता है। परिग्रह की भावना हो, तो व्यक्ति ऊपर आ सकता है। धर्मसभा में श्रीमती रश्मि मेहता ने 5 उपवास, श्रीमती राजकुमारी कटारिया एवं राजपाल मुणत ने 7 उपवास, करीब 13 तपस्वियों ने 4 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। प्रवर्तक श्री जिनेन्द्र मुनिजी मसा ने सभी से प्रतिक्रमण सीखने एवं माधवाचार्य परीक्षा मंडल भाग-1 का ज्ञान सीखने का आव्हान किया । सभा का संचालन केवल कटकानी ने किया।

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