झाबुआ

अशुद्ध आत्मा को शुद्ध बनाने के लिए पुरूषार्थ जरूरी है :-प्रवर्तक पूज्य जिनेन्द्र मुनिजी

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झाबुआ – स्थानक भवन मे विराजित प्रवर्तक पूज्य जिनेन्द्र मुनिजी म.सा. ने महती धर्म सभा में प्रवचन देेते हुए कहा कि भगवान महावीर का शासन जयवंत है, चतुर्विद संघ धर्म आराधना कर रहे है। भगवान के निर्वाण के ढाई हजार वर्ष से अधिक समय हो जाने के बाद भी उनकी वाणी आज भी साधना में परम सहायक है। हमारा परम शौभाग्य है कि उनका बताया गया मार्ग अनंत सुखदायक है,वह हमे मिला है । आपने फरमाया कि जिनेश्वर देव द्वारा बताया गया मार्ग शुद्ध है, यही शुद्ध स्वरूप को पाने का मार्ग है। हमारी आत्मा का वर्तमान स्वरूप शुद्ध नहीं है। आत्मा मलीन है, अनादिकाल से आत्मा 8 कर्मो से अशुद्ध बनी हुई है।
इन कर्मो से रहित आत्मा सिद्ध भगवान है। हमें अशुद्ध आत्मा को शुद्ध बनाने के लिए पुरूषार्थ करना होगा। आत्मा अजर, अविनाशी है। कर्म का मैल हट जाता है तो गति में आना-जाना बंद हो जाता है। आत्मा का कभी भी मरण नहीं होता है, शरीर का मरण होता है। ज्ञान, दर्शन, चरित्र, तप आत्मा के गुण है, परंतु कर्म का आवरण होने से इनमें मैलापन आ गया है, जिनेश्वर देव द्वारा बताए गए मार्ग पर चल कर जीव शुद्धता प्राप्त कर लेता है। नमोचऊ वि साए पाठ में निर्गंथ प्रवचन में बताए गए वितराग मार्ग पर पापी भी चलकर सिद्ध बने है। कर्म को क्षय कर इस मार्ग पर चलकर, वितराग वाणी को सुनकर उस पर आचरण करने से आत्मा की शुद्धि होती है। हमारे 69 कौडाकोडी साग्रोपम कर्म से अधिक क्षय हुए है, तभी हम आज धर्म सभा में बैठकर भगवान की वाणी सुन रहे है। हमे भगवान जिनेश्वर देव का मार्ग मिला है, इस भव में आराधना करने की जितनी शक्ति है, उतनी कर लेंगे तो अगले जन्म की भूमिका श्रेष्ठ बन जाएगी। इस भव को आराधना करके सफल बनाना है। यदि श्रृद्धापूर्वक आराधना कर ली तो जन्म मरण सफल हो जाएगा। जीव को सम्यक्तव की प्राप्ति शुभ-भाव से मिलती है।
पूज्य संयत मुनिजी म.सा. ने कहा कि ‘आगम’ भगवान की वाणी है, इस पर विश्वास होना चाहिए। आगम दर्पण के समान है दर्पण में जैसा हम देखते है वैसा ही हमे दिखता है ठीक उसी प्रकार आगम भी हमें हमारे गुण-दोष दिखाता है। आगम वाणी सुनकरपढ़ने से हमे गुणों को ग्रहण कर दोषों को मिटाना हैं जो आगम यथार्थता से न ज्यादा न कम ओर न विपरीत दिखाता है, यह सही आगम की प्रामाणिक पहचान है। जो आगम जीव को तप, संयम, मुक्ति की और ले जाए वो प्रामाणिक आगम है। जिस प्रकार सही रत्न की पहचान जौहरी करता है उसी तरह श्रावकों को भी जौहरी बनकर सही पहचान करना चाहिए। आगम जीव के हित की बात करता है, आगम के आधार पर चल कर अनेक जीव मौक्ष पहंुंच गए हैै। केवल ज्ञान से जान कर भगवान ने जो वाणी फरमाई वहीआगम रूप में आज मौजूद है ।। जिस आगम में हिंसा की प्रवृत्ति बताई हो वह आगम नहीं है। आगम जो सही है, जेैसा है वैसा ही बताता है, पक्षपात की बात नहीं बताता है।। अज्ञानरूपी विष को उतारने वाला महामंत्र आगम है।
धर्म सभा में श्री राजपाल जैन, श्रीमती राजकुमारी कटारिया, श्रीमती सोनल कटकानी ने 8 उपवास, कुमारी आयुषी घोड़ावत ने 7 उपवास, श्रीमती रश्मि मेहता ने 6 उपवास तथा 15 श्रावक-श्राविकाओं ने 5 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। मेघनगर से पधारे श्रावक श्री कविन्द्र धोका ने 19 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। संघ में तेला एवं आयम्बिल तप की लड़ी गतिमान है। सभा का संचालन केवल कटकानी ने किया।

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