राग द्वेष से मुक्त होकर परमात्मा का अवलम्बन करे तो हम स्वयं भी परमात्मा बन सकते है ,समता भाव रखकर स्वयं परमात्मा के दर्शन कर सकते हे -मुनि निपुणरत्न विजयजी ~~~~चातुर्मास में प्रतिदिन आनन्द एवं आध्यात्म का हो रहा संगम
राग द्वेष से मुक्त होकर परमात्मा का अवलम्बन करे तो हम स्वयं भी परमात्मा बन सकते है ,समता भाव रखकर स्वयं परमात्मा के दर्शन कर सकते हे -मुनि निपुणरत्न विजयजी चातुर्मास में प्रतिदिन आनन्द एवं आध्यात्म का हो रहा संगम झाबुआ । इस जगत मे कई ऐसे जीव हेै जो बहूत अधिक दोष रखते हेै , ऐसे भी जीव हेै जो इन जीवों से कम दोष रखते हेै , ऐसे भी जीव हैे जो इनसे भी कम दोष रखते और क्रमशः कम होते होते जगत मे ऐसे जीव भी हैे जो पूर्ण तया दोष रहित हो जाते हेै और वे सिद्द जीव कहलाते है । परमात्मा ने इस स्थिति को जीव की वास्तविक स्थिति बताया हैे याने जीव की मूल अवस्था दोष रहित होना ही हेै और यह अवस्था हमे परमात्मा के अवलम्बन से ही आ सकती है । यदि राग द्वेष से मुक्त होकर परमात्मा का अवलम्बन करे तो हम स्वयं भी परमात्मा बन सकते है । उपरोक्त प्रेरक उदबोधन पूज्य राष्ट्रसंत जैनाचार्य श्रीमद विजय जयंतसेन सुरीश्वरजी मसा और वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद विजय नित्यसेनसुरीश्वर जी मसा के सुशिष्य पूज्य मुनिराज श्री निपुणरत्न विजयजी मसा ने बुधवार को श्री राजेंद्र सूरी पौषधशाला में धर्म सभा मे समाजजनो के समक्ष व्यक्त किये । उलेखनीय हेै कि इन दिनो चातुर्मास के दौरान आचार्य नित्यसेन सुरीश्वरजी मसा की पावन निश्रा मे योग सार ग्रंथ और श्री जम्बूस्वामी चारित्र ्को मुनि भगवन्तो द्वारा समझाया जा रहा हेै । मुनि निपुणरत्न विजयजी मसा ने तीसरी गाथा को समझाते हुए कहा कि हमारा ध्येय आत्मा को निर्मल , निष्कलंक बनाने का रखे तो स्वयं हम उसमे परमात्मा के दर्शन कर सकते हेै । शुध्दता , ऐसी हो जेैसे स्फटिक साफ दिखता हैे वेैसी हो । यह आत्मा की शुध्दता , निर्मलता हम हमारी आत्मा पर जमी मलिनता को दुर कर ही प्राप्त कर सकते हेै । श्रेष्ठ जीव , यह कर अपनी आत्मा में परमात्मा को देख सकता है । यह मलीनता कई भवो की भी हो तो दुर होने मे क्षण भर भी नही लगेगा । परमात्मा ने उसके लिये श्रेष्ठ उपाय समता भाव मे रहने की बतायी हेै । समता भाव हम धीरे धीरे अपने जीवन मे प्रकट कर सकते है । सभी जीवों के प्रति करुणा रख कर भी जीवन मे समता भाव लाया जा सकता हैे जैेसा प्रभु महावीर के जीवन मे समस्त जीवों के प्रति करुणा थी । हम सभी इसके लिये अनेक धर्म क्रिया भी कर रहे हैे इससे चित्त की प्रसन्नता तो प्राप्त होती परंतु वह क्षण भर की होती हेै । स्थायी चित्त की प्रसन्नता के लिये अहंकार रहित धर्म क्रिया को आत्मा के साथ जोड़े । धर्म क्रिया कर रहे हैे इसका अहंकार नही करे क्योंकि यह तो आत्मा का स्वभाव हेै । हमे स्वयं की अज्ञानता का बोध नही होता हेै इसलिए ज्ञान सहित , अहंकार रहित धर्मक्रिया करे तो समता भाव शीघ्र प्रकट होगा और जीव मोक्ष मार्ग की और अग्रसर हो सकेगा । पूज्य मुनिराज़ प्रशमसेन विजयजी मसा ने श्री जम्बूस्वामी चारित्र समझाते हुए बताया कि श्रावकों और श्राविकाओ को अपने औचित्य याने कर्तब्य का पालन करना चाहिए । शुभ भाव आएँ और तुरंत शुभ कार्य उसी समय कर ले तो फल भी शुभ प्राप्त होता । अन्त मे गुरुदेव की आरती नामली निवासीश्री रतनलाल चत्तर परिवार ने की ।
पुण्य सम्राट की 63वी पुण्य तिथि पर हुए अनेक आयोजन
पुण्य सम्राट पूज्य श्री जयंतसेनसुरीश्वरजी मसा की 63 वी पुण्य तिथि पर सुबह प्रभावना श्रीमती लता प्रधान की स्मृति मे डा संतोष प्रधान द्वारा और दोपहर मे अष्ट प्रकारी पूजन धर्मचंद ज्ञानचंद मेहता परिवार की और से पूजन पढ़ाई गयी । दोपहर मे गौशाला मे गायों को आहार गोलू सकलेचा परिवार इंदौर वालो की और से कराया गया । रात्रि मे नवकार मंत्र जाप गुरू गुण इक्कीसा पाठ आरती और प्रभावना मनोज संघवी और हुक्मीचंद छाजेड परिवार ने वितरित की ।
चातुर्मास समिति के अध्यक्ष मुकेश जैन और सचिव भारत बाबेल ने बताया कि कई श्रावकों और श्राविकाओ द्वारा इन दिनो गर्म जल के आधार पर उग्र तपस्या की जा रही हेै । प्रतिदिन आकर्षक अक्षत और श्रीफल से लाभार्थी परिवार द्वारा गहुली की जा रही हेै इसी प्रकार प्रतिदिन लाभार्थी परिवार द्वारा प्रभाव्ना वितरित की जा रही है । अधिक से अधिक गहुली और प्रभावना वितरण हेतु निर्धारित राशि चातुर्मास समिति को जमा कर लाभ ले सकते हेै । संचालन डा प्रदीप संघवी ने किया और आभार अरविन्द लोढ़ा ने माना ।