झाबुआ

व्यक्ति के दोषो को नहीं… गुणों को देखो…..समणी मध्यस्थ प्रज्ञा जी

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तेरापंथ सभा झाबुआ द्वारा…. सफल हो हमसफर हमारा….. कपल मैनेजमेंट अंतर्गत दंपत्ति कार्यशाला का आयोजन …..

झाबुआ – श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथ सभा झाबुआ द्वारा समणी निर्वाण प्रज्ञा जी व समणी मध्यस्थ प्रज्ञा जी के सानिध्य में रविवार रात्रि में कपल मैनेजमेंट …..सफल हो हमसफर हमारा ….कार्यक्रम का आयोजन स्थानीय पैलेस गार्डन पर किया गया । इस कार्यशाला में पति पत्नी के बीच आपसी तकरार को कैसे सुलझाया जाए, और जीवन क्या है ..संबंध क्यों जरूरी है …शादी क्या है …जीवन कैसा होना चाहिए …..सुखी दांपत्य जीवन के लिए क्या जरूरी है ….आदि अनेक विषयों पर विस्तारपूर्वक समझाया गया तथा कैसे अपने दांपत्य जीवन को निखारे, पर प्रकाश डाला गया ।

तेरापंथ सभा झाबुआ द्वारा समणी निर्वाण प्रज्ञा जी व समणी मध्यस्थ प्रज्ञा जी के सानिध्य में रविवार रात्रि 8:00 बजे दंपत्ति कार्यशाला का प्रारंभ नमस्कार महामंत्र के उच्चारण के साथ हुआ । कार्यशाला को प्रोजेक्टर के माध्यम से स्क्रीन डिस्प्ले के.माध्यम से समझाया गया । सभी कपल ड्रेस कोड में आए थे और पति पत्नी को पास में बैठाया गया । समणी मध्यस्थ प्रज्ञा जी ने कार्यशाला प्रारंभ करते हुए कहा – कि हमें सकारात्मकता के साथ जीवन जीना चाहिए । दांपत्य जीवन कैसे सुखमय बने ,इस और विचार करना चाहिए । घर को मंदिर कैसे बनाए, इस पर मंथन करना चाहिए । ऐसा जीवन बनाओ जो कभी उलझे ही नहीं । जीवन अनेक खट्टी मीठी अनुभवो से परिपूर्ण होता है । हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हमें अपने परिवार के साथ किस तरह आचरण करना चाहिए तथा यह भी समझना चाहिए कि हमारा व्यवहार हमारे जीवन साथी के साथ कैसा हो ।
जीवन क्या है ….जन्म से लेकर मृत्यु तक का सफर जीवन है जीवन एक यात्रा है इसे पूर्ण करें..। जीवन एक संघर्ष है उसे स्वीकारे …। जीवन एक खेल है उसे खेलें ..। जीवन एक गीत है उसे गुनगुनाए जीवन एक अवसर हैं उसका उपयोग करें…. । कहने का तात्पर्य है जीवन में अच्छी बुरी परिस्थितियों का सामना करो , जीवन में संघर्ष आने पर घबराने की बजाय उनसे निपटने का प्रयास करो , जीवन में कई उतार-चढ़ाव आते हैं लेकिन हंसते हंसाते विपरीत परिस्थितियों में भी अवसर का उपयोग करते हुए आपसी सामंजस्य बैठाकर, जीवन को खुशहाल बनाने का प्रयास करो ।
संबंध क्या है ………………. दो दिल और दो दिमाग का मिलना है संबंध । सुख दुख में सहभागी बनने के लिए संबंध जरूरी है । व्यक्तित्व विकास के लिए और परिवार संवर्धन के लिए भी । संबंध में आपस में समर्पण भी जरूरी है तुम्हारे और मेरे जीवन से हमारे जीवन में आना संबंध है । कल्पना और योजनाओं को साकार करने के लिए भी ।

शादी क्या है…. …….. .. जिम्मेदारी और कर्तव्य का नाम, रिश्तो को गहराई से समझने का नाम, दो व्यक्ति ही नहीं वरन दो परिवारों के मिलन का नाम है शादी । हर परिस्थिति में एक दूसरे का साथ देना ।

सुखी दांपत्य जीवन के लिए
एक दूसरे के लिए समय होना आवश्यक है एक दूसरे को समझने की शक्ति हो । दोनों में आपसी सामंजस्य और तालमेल हो । दोनों एक दूसरों की गुणों की चर्चा करते रहे । दोनों एक दूसरे पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए । विषम परिस्थितियों में भी साथ नहीं छोड़ना चाहिए । छोटी-छोटी बातों पर वाद विवाद या तर्क वितर्क करने के बजाए समझाने का प्रयास करना चाहिए या फिर कुछ देर के लिए मौन रहना चाहिए । उदाहरण देते हुए बताया कि यदि पत्नी अपने पति को नमक वाला दूध पिलाती भी है तो उसे चीनी का समझ कर पी लेना चाहिए , वही पति के कहने पर पत्नी दिन के उजाले में भी दिया जला देती है तो यह एक बेजोड़ आपसी सामंजस्य का उदाहरण है कहने का तात्पर्य है कि एक दूसरे मे आपसी समझ और सहनशील भी होना चाहिए ।


संबंध कैसे हो……….. समणी निर्वाण प्रज्ञा ने बताया कि बांसुरी स्वयं शून्य होती हैं । यह बजाने वाले पर निर्भर करता है कि वह मधुर बाजाता है या बेसूरी । इसी प्रकार जीवन रूपी बांसुरी पति पत्नी के हाथों में होती है । कि वह अपने जीवन में किस तरह मधुरता और मिठास लाएं । उसी प्रकार पति पत्नी के रिश्ते में भी यदि रिश्तो को आपसी सामंजस बनाकर और तालमेल बनाकर निभाया जाए ,तो जीवन में भी मधुरता और मिठास आएगी । उदाहरण देते हुए बताया कि जिस प्रकार घर पर मेहमान आने पर पत्नी द्वारा बाजार से सेवफल लाने पर उनमें से अधिकांश खराब निकलते हैं और कुछ अच्छे होते हैं सभी में कुछ न कुछ दाग लगे हुए थे । इस परिस्थिति में पति को पत्नी से तर्क वितर्क करना चाहिए या नहीं… कि इस परिस्थिति में जिस प्रकार पत्नी सेवफल में से खराब हिस्से को निकालकर अलग कर देती है और अच्छे सेव फल का उपयोग कर लेती है । उसी प्रकार हमें भी अपने दांपत्य जीवन में दोषों को नहीं गुणों को देखना चाहिए । जिससे जीवन सफल हो सके ।


जीवन कैसा होना चाहिए………
पानी में पत्थर की तरह या दूध में चीनी की तरह या सागर में नदी की तरह , कई श्रोताओं ने इसके अलग-अलग जवाब दिए । लेकिन समणी निर्वाण प्रज्ञा जी ने उस को विस्तार पूर्वक बताते हुए कहा कि जिस प्रकार जब नदी सागर में मिल जाती है तो वह अपना संपूर्ण अस्तित्व भूल कर उस सागर में समा जाती है उसी तरह पत्नी को भी ससुराल में आकर पूर्ण समर्पण देना चाहिए, तभी वह और परिवार को खुश रख सकती है ।

इसके अलावा भी समणी वृंद ने अनेक विषयों पर पति पत्नी के रिश्ते को लेकर तथा दैनिक जीवन में रोजाना होने वाली छोटी छोटी तकरारो को नजरअंदाज कर ,.एक दूसरे की बात को समझ कर ,एक दूसरे को सम्मान देकर जीवन को निखारने की बात कही । इसके पश्चात समणी वृंद ने उपस्थित दंपतियों को अपने परिवार और जीवन साथी का साथ निभाने के लिए संकल्प करवाए । कार्यक्रम का सफल संचालन उपासक पंकज कोठारी ने किया तथा आभार दीपक चौधरी ने माना ।कार्यक्रम के अंत में समणी वृंद ने उपस्थित दंपतियों को मांगलिक भी सुनाई ।

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