असंयम की प्रवृर्ति छोडने पर संयम की आराधना होती है – प्रवर्तक पूज्य जिनेन्द्र मुनिजी म.सा. ~~~~ विषयों की आसक्ति छूटने पर ही आत्मोद्धार होगा-पूज्य संयत मुनि जी। चातुर्मास मे बह रही ज्ञान की गंगा।
असंयम की प्रवृर्ति छोडने पर संयम की आराधना होती है – प्रवर्तक पूज्य जिनेन्द्र मुनिजी म.सा. ~~~~
विषयों की आसक्ति छूटने पर ही आत्मोद्धार होगा-पूज्य संयत मुनि जी।
चातुर्मास मे बह रही ज्ञान की गंगा।
झाबुआ । बुधवार को स्थानक भवन में धर्मसभा में प्रवचन देते हुए पूज्य जिनेन्द्रमुनिजी मसा. ने फरमाया कि आगम के अंदर भगवान द्वारा बताई गई वाणी,वचनों को सूत्र रूप मे गणधर भगवान द्वारा ग्रंथित किया गया है । जो भाव भगवान ने फरमाए है, उन्हे जानना जरूरी है । उनका अर्थ भी समझना आवश्यक है । वर्तमान समय में ऐसे कोई विशिष्ट ज्ञानी नही है, जो सुत्र के सारे रहस्यों को बता सकें । शास्त्र के एक सुत्र के अनेक अर्थ होते है, सभी अर्थो को जानना संभव नही है । जितना जानना चाहियें उतना जानना आवश्यक है । आपने सुत्र के बारे में बताते हुए कहा कि जिसके अंदर सुत्र समाया हुआ हो ,वह सूत्र है । अनुप्रेक्षा करने से सूत्र का अर्थ निकलता हे । मोक्ष में जाने के 23 बोल है,इन 23 बोलों पर पूज्य आचार्य उमेशमुनिजी ने 2500 से अधिक गाथायें लिखी थी । इनका अर्थ समझने से साधक आत्मा मोक्ष मार्ग में गति कर सकता है ।
17 प्रकार का असंयम होता है पृथ्वीकाय ,अपकाय, तेजसकाय, वायुकाय, वनस्पति काय, इन्द्रिय दिविंद्रीय त्रिन्द्रिय चतुरेंद्रीय पंचेन्द्रिय,आजीविकाय,प्रेक्षा, उपेक्षा, प्रमार्णता, मन,वचन, काया ।जो आत्मा को पाप से जोडती है, वह क्रिया असंयम, कहलाती है । असंयम की क्रिया अशुभ भी होती है,अशुभ क्रिया से पाप का बंध होता है । पृथ्वीकाय के जीव के प्रति पाप की प्रवृति करना असंयम है । देखने से भी असंयम होता है, यह प्रेक्षा असंयम कहलाता है । इसी तरह अपने प्रति कोई व्यक्ति विरुद्ध भाव रखता हो, ईर्ष्या रखता हो, हम ऐसे व्यक्ति के प्रति उपेक्षा रखते है, यह उपेक्षा असंयम है । उसके प्रति बदले की भावना रखना भी उपेक्षा असंयम है । असंयम की प्रवृर्ति कैसे-कैसे होती है,इसको जानना और छोडना चाहिये । तीर्थंकर ,साधु-साध्वी, जितने भी महापुरूष हुए है, उनको भी साधना के मार्ग पर चलते हुए कर्म के उदयसे शारीरिक, आर्थिक कष्ट आते है, पर वे समभाव रखकर उसका सामना करते है ।
आपश्री ने आगे फरमाया कि असंयम को जानना हमे क्यों जरूरी है । जानकारी अलग है, आचरण अलग है शुभ-अशुभ क्रिया भी जानना चाहिये । आगम में भगवान की वाणी सुन कर जीव पुण्य और पाप को जानता हैे । जो श्रेष्ठ हो, उसका आचरण करना चाहिये ।
इन 17 प्रकार के असंयम को जानकर संयम की और उपस्थित होने की भावना रखना चाहिये । जानने योग्य को जानना चाहिये तथा छोडने योग्य को छोडना चाहिये । आगम के कर्ता का हमारे उपर अनंत उपकार है, उन्होने ऐसा सुंदर मार्ग हमे बताया अन्यथा हमें भटकना पडता । हमें पाप की क्रिया रोकना जरूरी है, नही तो वह संयम नही होता हे । साधु-साध्वी को वर्षा हो रही हो, अंधेरा हो, सुक्ष्म जीव हवा में उड रहे हो, उस समय गोचरी लेने जाने का भगवान ने निषेध किया है ।यतना करने पर संयम बढता हेै । प्रतिक्रमण के पाठों का अर्थ समझना आवश्यक है, जानकारी बढने पर आराधना बढती हे । भव तारने की क्रिया प्रतिक्रमण हे । पूज्य आचार्य उमेश मुनिजी भावपूर्वक प्रतिक्रमण खडे खडे करते थे ।
धर्मसभा में अनुवत्स पूज्य संयतमुनिजी ने बताया कि भगवान महावीर स्वामी की इन्द्रियों के प्रति आसक्ति नही थी । इन्द्रियों के विषय में रागद्वेष होना पापकर्म का कारणहै । अनादिकाल से जीव को इन्द्रियों के विषय अच्छे लगते हेै । गृहस्थ के कामभोग तुच्छ है, थोडे समय के है, निस्सार है, इनमे जीव आसक्त होकर कर्मबंध करता हे । क्षणिक सुख पाने के लिये लंबे काल का दुःख पाता है । सुनने की आसक्ति है,। अच्छा सुनना अच्छा लगताहै। अच्छा देखना तो राग, बुरा देखे तो द्वेष होताहे । जीव रूप के विषय में भी आसक्त है । बार बार कांच में देखता है,सुरूप दिखे तो राग, कुरूप दिखे तो द्वेष । पतंगा दीपक के रूप को देख कर मंडरा कर अपने प्राणों की आहूति दे देता है, जीव यह जानते हुए भी अनजान हो जाता हे । जीव को सुगंध आऐ तो आनन्द, दुर्गंध आये तो द्वेष होता है। शरीर पर, कपडे पर वह सुगंधित स्प्रे लगाता है, खुश होता है। सुगंध हमेशा नही रहती है । सुगांधित मिठाई,फल भी एक दिन बाद दुर्गंध में बदल जाती है । विषयों की आसक्ति छूटने पर ही आत्मोद्धार होगा। तपस्या का आनंद छाया झाबुआ में –
आज श्री राजपाल मुणत,श्रीमती राजकुमारी कटारिया, श्रीमती सोनलकटकानी ने 19उपवास, श्रीमती रश्मि मेहता ने 17 उपवास, श्रीमती आरती कटारिया, श्रीमती रश्मि रूनवाल, श्रीमती निधि, निधिता रूनवाल,श्रीमती चीना, नेहा घोडावत, ने 16 उपवास, अक्षय गांधी , कु. लब्धि कटकानी ने 15 उपवास, कु. खुशी चौधरी ने 9 उपवास, मनोज कटकानी ने 6 उपवास के प्रत्याख्यान लिये । संघ में वर्षीतप सिद्धितप, मेरूतप, चोला’चोला, तेला-तेला, बेला-बेलतप की तपस्या चल रही है । तेला तप- आयंबिल की लडी गतिमान है । व्याख्यान का संकलन सुभाष ललवानी द्वारा कियागया । सभा का संचालन केवल कटकानी ने किया ।
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