झाबुआ

सीएमएचओ डा. जयपालसिंह ठाकुर की कार्यप्रणाली पर उठ रहे सवालिया निशान……।

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सत्ता की इज्जत को निलाम करने को तुला स्वास्थ्य प्रशासन
सीएमएचओ डा. जयपालसिंह ठाकुर की कार्य प्रणाली एवं दादागिरी पर उठ रहे सवालिया निशा
झाबुआ । मोदीजी ने नोटबंदी इसलिये की थी कि भ्रष्टोें का भ्रष्टाचार बंद हो सकें । किन्तु जिले का स्वास्थ्य विभाग इन दिनों अन्दरूनी भ्रष्टाचार को लेकर सूर्खियों में बना हुआ है । कहते है धुआ वही उठता है जहां आग लगी हो ओर यह सब कुछ वर्तमान मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डा. जयपालसिंह ठाकुर जो जिले के स्वास्थ्य विभाग के सर्वेसर्वा है के आशीर्वाद के चलते शहरी क्षेत्रों से लेकर गा्मीण अंचलों तक सिवाय नोट छापने के अलावा कुछ नही हो रहा है, जिन्होने भेंट पूजा अर्पित कर दी वह चाहे कितना भी अवैध काम क्यो न करे, गा्मीण भोले भाले आदिवासियों के जीवन के साथ खिलावाड क्यो न करें, उनकी ओर इनकी दृष्टि पडती ही नही है और लोकदिखावे के लिये एकाध प्रकरण बना कर अपने कर्तव्य की इतिश्री करने के साथ ही अन्य वैसे ही लोगों को अभय दान मिल ही जाता है । जिले में सैकडो की संख्या में अवैध चिकित्सा व्यवसाय करने वाले उर्फ झोला छाप डाक्टरों की संख्या कूकूरमुत्तो की तरह गांव गांव तक हो चुकी है। हर गाव में क्लिनिक खोल कर अवैध डाक्टर्स चांदी काट रहे है। अन्दर की बात यह है कि ऐसे प्रत्येक अवैध चिकित्सा व्यवसाय करने वालों से नोट बंदी के बाद भी महीना बंदी का क्रम अब मोटी रकम में हो गया है। वर्तमान मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी एवं इनके अधीनस्थ आने वाले ब्लाक मेडीकल आफीसरों के माध्यम से ना तो इननकी सतत जांच होती है और ऐसे लोगों को चिन्हित किया जाता है , और अपने बिचौलियों के माध्यम से उनसे सेटअप किया जाता है। जो लोग इनके सेटअप में आ पाते उनके ही खिलाफ एफआईआर जेैसी कार्यवाही होती है । ऐसी एकाध एफआईआर करवा कर उन्हे टारगेट बना कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते है ।
जबकि पूरे जिले सहित गा्रमीण अंचलों में गांव गांव में ऐसे झोलाछाप डाक्टरों की भरमार हो चुकी हे जिनपर नियंत्रण पाने की दिशा मे जिले का स्वास्थ्य प्रशासनपूरी तरह से चुप्पी साधे हुए हे । यह एक अहम मुद्दा होने के साथ ही विचारणीय है कि जबकि केन्द्र एवं राज्य सरकार ने ऐसे अवेध धंदेबाज झोलाछापों पर त्वरित कार्यवाही के निर्देश जारी किये हुए हे, उन निर्देशों को भी फौरी तौर पर लेकर उसकी अनदेखी की जाना झाबुआ जैसे आदिवासी प्रधान झाबुआ जिले के लिये कलंक ही जावे तो अतिशयोक्ति नही होगी । दुसरे शब्दों मे यदि कहे तो जिले का स्वास्थ्य प्रशासन जनसेवा की बजाय शोषण को ही प्रश्रय दे रहा है और खुद भी कमाओं और हमे भी दो की नीति पर चल रहा है।

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