झाबुआ । 31 जुलाई रविवार को महती धर्मसभा में पूज्य जिनेन्द्र मुनिजी मसा. ने फरमाया कि साधु-साध्वी के दर्शन हेतु श्रावक-श्राविका को मंगलपाठ सुनाते हेै । मंगलपाठ में चार मंगल, चार उत्तम, चार शरण,केवली प्रज्ञप्त धर्म के भाव सुनायें जाते है । जो उस धर्म को प्राप्त करता है, वह मंगल बन जाता है । जो पाप को क्षय करता हे वह मंगल बन जाता हे । जिस आत्मा को सम्यकत्व प्राप्त हो जाता है, वह आत्मा सभी पापों को धो देता है, वह समयक्तवी बन जाता है, उस आत्मा में लंबे समय के कर्म का बंध नही होता है । ऐसी सम्यकत्व आत्मा साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका भी होती है, जो मोक्ष प्राप्त करते है । आपने आगे फरमाया कि 4 उत्तम है, यानि श्रेष्ठ । संसार में जितने पदार्थ है, वे सम्यकत्व से श्रेष्ठ नही है । श्रेष्ठ वस्तु को प्राप्त करने वाला व्यक्ति उत्तम बन जाता हे । इसी प्रकार चार शरण बताये गये है। जो आत्मा अंतिम समय में इस केवली प्रज्ञप्त्त धर्म का शरण ग्रहण करता है, उस आत्मा को दुर्गति का बंध नही होता है । उस आत्मा को अशुभ आयुष्य का बंध नही होता है, वह आत्मा सदगति को प्राप्त करता है । ये धर्म शरण रूप है, ये ऐसा रत्न है, जिसे कोई चुरा नही सकता है, कोई ले नही सकता, ये श्रेष्ठ रत्न है । आपने आगे फरमाया कि भगवान ने जो बताया है, उसके स्वरूप को अच्छी तरह समझने पर सम्यकत्व में श्रद्धा,दृढ़ता और निर्मलताआती है । महापुरूषों की अनंत कृपा हम पर है, जिन्होने नमो चउविसाए का पाठ दिया हे । अंतिम समय आने पर व्यक्ति को नवकार मंत्र, लोगस्स, नमोत्थुन्नम,नमो चउविसाए मांगलिक आदि का पाठ सुनाया जाता है । शुभ भाव से श्रवण करने पर आत्मा की संतुष्टि होती हे । चिंतन करने से जानकारी बढती है। चिंतन से आराधना निर्मल बनती है, ज्ञान, दर्शन, चारित्र में भी निर्मलता आती हे । भगवान का खजाना इन अमूल्य रत्नों से भरा हुआ हे , ये रत्न हमे प्राप्त कर निहाल होना है । मिथ्यात्व को छोड़ना…….. आपने फरमाया कि मै मिथ्यात्व को छोडता हूं, और सम्यकत्व को जानकार उसे प्रत्याख्यान लेकर ग्रहण करता हूं, ऐसी भावना हो । मिथ्यात्व अर्थात सही श्रद्धा का अभाव । जब तक भगवान द्वारा बताये मार्ग में सही श्रद्धा नही हुई तब तक व्यक्ति मिथ्यात्वी रहता है। पाप आश्रव छोडने योग्य है । पाप के बिना काम नही चले ऐसा सोचना मिथ्यात्व है । भगवान ने पाप को छोडने योग्य बताया हेै । भगवान ऐसा दिन कब आए जब मैं पापो को छोडू, ऐसे भाव हृदय में आना चाहिये । मोक्ष के 2उपाय:,संवर और निर्जरा…….. आपने आगे फरमाया कि संवर ओर निर्जरा होती है, तो ,मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। संवर करना करने योग्य है,आदरने योग्य है । 12 प्रकार के तप में रूचि होना चाहिये । मन मे घृणा के भाव नही होना चाहिये । तप के बिना अपना जीवन नही होना चाहिये । अनेक भवों का कर्जा हमारे उपर है, बिना तप आराधना के यह कर्जा खत्म नही होगा । भगवान की वाणी के विपरीत बोलना, विपरीत श्रद्धा रखना मिथ्यातव हे ।* जब तक मिथ्यात्व का उदय होगा, जीव भवसागर से पार नही होगा ।
क्षणिक सुख दुःखदाई है, शाश्वत सुख सुखदाई है। पूज्य संयत मुनिजी मसा ने फरमाया कि महावीर स्वामी ने भव जीवों को सुख का मार्ग बताया था । सुख क्षणिक और शाश्वत दो प्रकार के है ।क्षणिक सुख पोद गलिक होते है ।जीव क्षणिक सुख की ओर ज्यादा आकर्षित होता है, जो बाद में दुःख देते हे । शाश्वत सुख ऐसा है जो आकर वापस नही जाता हे । आत्मीक सुख हमेशा रहेगा । साधुपने में गृहस्थ से ज्यादा सुख है । इन्द्रियों को दुःख का कारण समझ कर इन्हे छोडना है । शाश्वत सुख विषयो में नही है । इन्द्रियों के सुख वही छोड सकता है, जिसके वैराग्य भाव तीव्र हो । जिसके ऐसे भाव नही है, वह छोड नही सकता है । क्षण मात्र के सुख बहुत काल के दुःख देते है । शाश्वत सुख पाने के लिये सभी छेाडना पड़ेंगे । सुख देने वाली चीज दिखाई देती है, वह बाद में दुःख देती है, यह समझ में आने पर छोडने का मन हो सकता है । जिसका वैराग्य भाव तीव्र हो, वह क्षणिक सुख रूप विषयो को छोड सकता है । आज मेधनगर ,कल्याणपुरा एवं अन्य स्थानों से बड़ी संख्या में दर्शनार्थी दर्शन, प्रवंचन सुनने पधारे।आज पूज्य श्री माधवाचार्य जैन परीक्षा मंडल थांदला की परीक्षा में कुल 44 भाईयो बहनों ने परीक्षा दी ।
पुण्य वाणी का शुभ अवसर आया, तपस्या में तन मन लगाया। धर्मसभा में आज श्री राजपाल मुणत, श्रीमती राजकुमारी कटारिया, श्रीमती सोनल कटकानी ने 23 उपवास, श्रीमती रश्मि मेहता ने 21 उपवास, श्रीमती आरती कटारिया ,श्रीमती रश्मि ,निधि, निधिता रूनवाल,श्रीमती नेहा, चीना घोडावत ने 20, कु. खुशी चौधरी ने 13 श्री अक्षय गांधी ने 19 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किये । सभी तपस्वी मासक्षमण तप की ओर अग्रसर है । श्री सुजानमल कटकानी, श्रीमती मोहनबेन कटकानी,श्रीमती बंसती बेन, श्रीमती रूपा घोडावत,श्रीमती डिंपल घोडावत, श्री संजय मुणत, इनके द्वारा ऊपवास,एकासन आयम्बिल तप से वर्षी तप किया जारहा है। श्रीमती पूर्णिमा सुराणा द्वारा सिद्धितप एवं श्रीमती उषा, सविता, पदमां, सुमन रूनवाल, द्वारा मेरूतप किया जारहा हे ।चोला-चोला, तेला-तेला, बेला-बेला तप भी श्रावक-श्राविकाए कर रहे है । तेला एवं आयम्बिल तप की लडी गतिमान है । प्रवचन का संकलन सुभाष ललवानी द्वारा एवं संचालन प्रदीप रूनवाल ने किया ।