सुदेव -सुगुरू- सुधर्म पर आस्था रखना सम्यकत्व हे – पूज्य जिनेन्द्र मुनिजी मसा.~~~ जीव अनादि काल से दूसरों को ठग रहा है, खुद भी ठगा रहा है-अणुवत्स पूज्य संयतमुनिजी
सुदेव -सुगुरू- सुधर्म पर आस्था रखना सम्यकत्व हे – पूज्य जिनेन्द्र मुनिजी मसा.~~~
जीव अनादि काल से दूसरों को ठग रहा है, खुद भी ठगा रहा है-अणुवत्स पूज्य संयतमुनिजी
झाबुआ । 1 अगस्त सोमवार को स्थानक भवन में धर्मसभा में प्रवचन देते हुए पूज्य जिनेन्द्र मुनिजी म.सा. ने फरमाया कि यह संसार माया, कपट, की बहुलता से भरा हुआ है । जीव यह जानता है कि इसने मेरे साथ धोखा किया है, मैं भी इसके साथ वैसा ही करूं। यह समझ मिथ्यात्व के कारण आती है। मिथ्यात्व के कारण जीव अनादिकाल से संसार में परिभ्रमण कर कर्म का बंध करता आ रहा है तथा दुःख उठाता रहाहै । वह दुःख को ही सुख मानता है, यह मोह है ।सही श्रद्धा का अभाव ही मिथ्यात्व है।
9 तत्व में 3 तत्व जानने योग, 3 तत्व छोडने योग्य, 3 तत्व ग्रहण करने योग्य –
आपने आगे फरमाया कि वैसे तो 9 तत्व के बारे में सभी को जानकारी होना चाहिये पर तीन तत्व जानने योग्य है, तीन तत्व छोडने योग्य है, तथा तीन तत्व ग्रहण करने योग्य है । इन नौ तत्वों के प्रति विपरित समझ मिथ्यात्व है ।
सुदेव सच्चे है, उनके प्रति सच्ची श्रद्धा नही रखना, जो मोक्ष मार्ग पर भगवान की आज्ञा से चल रहे है, ऐसे गुरू को गुरु नही मानना मिथ्यात्व है । सुधर्म को धर्म के रूप में नही मानना मिथ्यात्व है । भगवान की वाणी के प्रति विपरित श्रद्धा करना मिथ्यात्व है । भगवान की वाणी सुनकर मिथ्यात्व के स्वरूप् को समझने से मिथ्यात्व खत्म होता हे । थोडी सी श्रद्धा धीरे धीरे बढने पर मिथ्यात्व चला जाता है तथा मोक्ष मार्ग की और जीव गमन करता है। हम सभी छदमस्थ है, छदमस्थ को कभी -कभी मिथ्यात्व का क्षण मात्र के लिये भी उदय हो जाता है तो वह पतित हो जाता हे । संयम कापालन करते हुए भी कभी कभी जीव मिथ्यात्व की ओर आकर्षित हो जाता है ।
श्रद्धारूप मिथ्यात्व और प्रवृर्ति रूप् मिथ्यात्व 2 प्रकार के होते है-
श्रद्धा में कमी आजाये कि मैे जो कर रहा हूं, उसका फल मिलेगा या नही । श्रद्धा दृढ हो तो श्रावक श्राविका फसंते नहीहै । कभी कभी ऐसी प्रवृर्त्ति अनादिकाल से चली आ रही है कि ये मुझे करना ही पडेगा , यह प्रवृर्ति रूप् मिथ्यात्व है । ये छोडने योग्य है । अपना पूण्य यदि बलवान है कि, तो कोई भी नुकसान नही पहूंचा सकताहै । मेरा मिथ्यात्व छूटे, भगवान द्वारा बतायें गये मार्ग पर चलूं ऐसी दृढ श्रद्धा होना चाहिये ।
सुदेव- सुगुरू, सुधर्म पर आस्था रखना सम्यकत्व है ।
आपने फरमाया कि सुदेव की आराधना, भक्ति करने से सम्यकत्व में निर्मलता आती हे । सुगुरू के प्रति भी सच्ची श्रद्धा रखना चाहिये । सुगुरू हमे सही मार्ग दिखाते है । सुदेव के प्रति भी श्रद्धा रखना चाहिये । जिस प्रकार नींव के बिना मकान मजबुत नही होता हेै, वेसे ही सम्यकत्व के बिना श्रद्धा मजबूत नही होती हे । श्रद्धा होना मोक्ष प्राप्ति का मार्ग हैे । दर्शन के बिना ज्ञान नही, ज्ञान के बिना चारित्र नही आयेगा । सम्यक चारित्र के बिना मोक्ष नही, मोक्ष के बिना निर्वाण भी नही होगा । भगवान की वाणी श्रवण करते रहने से जीव की श्रद्धा निर्मल बनती हे । सच्ची श्रद्धा से कई आपत्ती-विपत्तियां दूर होती हेै । हमे दृढता से श्रद्धा को निर्मल बनाना है, इससे आराधना भी निर्मल होगी ।
जीव अनादि काल से दूसरों को ठग रहा है, खुद भी ठगा रहा है-
अणुवत्स पूज्य संयतमुनिजी मसा ने फरमाया कि जीव अनादिकाल से दूसरों को ठग रहा है तथा खुद भी ठगा रहा है । एक दूसरे की चुगली करना,छू लगाना, छू लगा कर भाग जाना, इसमें व्यक्ति क मजा आता हे । संसार ऐसा है, जिसमे व्यक्ति ठगा रहा है, ऐसे संसार में रहने से क्या फायदा?ऐसा विचार नही आता । जीव अनेक बार ठगाया है । संसारी मनुष्य एक दुसरे के प्रति कपट किया करते है किसी के साथ धोखा करना माया कपट है । ठग विद्या में लोग माहिर होते है, आधुनिक सोश्यल मीडिया के द्वारा भी लोग ठगा रहे है, ठग रहे है । अनेक प्रकार की माया कपट करके जीव कर्म बांध रहा है । ठगा ठगा कर ठोकरे खाकर भी आज तक ठाकुर नही बने । गिफ्ट छोटा,पेकिंग बडा यह भी माया है । धर्म ध्यान का टाईम नही है, ऐसा कह कर खुद ठगा रहा है ।संसारी मनुष्य प्रायः कपट क्रिया वाले होते है । मन मे यह विचार आना चाहिये कि एक बार, दो बार ठगा गया तो आगे सावधानी रखूंगा।
तप जीवन का स्त्रोत है,तप जीवन की जलती ज्योत है ।
तप से होती है कर्म निर्जरा , तप मोक्ष मार्ग का स्त्रोत है ।
आज धर्म सभा में राजपाल मुणत, श्रीमती राजकुमारी कटारिया, श्रीमती सोनल कटकानी ने 24 उपवास, श्रीमती रश्मि मेहता ने 22 उपवास,श्रीमतीआरती कटारिया, श्रीमती रश्मि ,निधि, निधिता रूनवाल, श्रीमती नेहा ,चीना घोडावत, ने 21 उपवास ,श्री अक्षय गांधी ने 20 उपवास कुमारी खुशी चौधरी ने 14 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किये । श्री सुजानमल जी कटकानी, श्रीमती मोहनबेन कटकानी, श्रीमती बंसतीबेन, श्री संजय जेैन, श्रीमती रूपा डिंपल घोडावत श्री राजेश, प्रदीप श्रीमती पदमा हर्षा, बरवेटा द्वारा उपवास एकासन आयम्बिल, निवि तप से वर्षीतप किया जारहा है। श्रीमती पूर्णिमा सुराणा द्वारा सिद्धी तप श्रीमती उषा , सविता, पद्मा, सुमन रूनवाल द्वारा मेरू तप किया जा रहा हे । संघ में चोला-चोला,तेला – तेला बुला-बेला तप भी श्रावक श्राविकायें कर रहे है । तेला आयम्बिल तप की लडिया चालू है । व्याख्यान का संकलन सुभाष ललवानी द्वारा किया गया। संचालन- केवल कटकानी द्वारा किया गया ।