झाबुआ

प्रदेश की शिवराजसिंह को पेंशनरों से क्यों है इतनी इलर्जी- राज्य के कर्मचारियों को कर रही माला-माल तो पेंशनरों से इतनी दुर्भावना क्यो ?

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प्रदेश की शिवराजसिंह को पेंशनरों से क्यों है इतनी इलर्जी-
राज्य के कर्मचारियों को कर रही माला-माल तो पेंशनरों से इतनी दुर्भावना क्यो ?

झाबुआ । प्रदेश भर के पेंशनर्स प्रदेश की शिवराजसिंह सरकार द्वारा अपने कर्मचारियों को फिर से महंगाई भत्ता स्वीकृत किया जाचुका है, तथा उनका महंगाइ्र भत्ता 37 प्रतिशत कर दिया गया है , किन्तु प्रदेश के 5 लाख से अधिक पेंशनर्स आज भी 17 प्रतिशत महंगाई राहतपर अटके है तथा कर्मचारियों की तुलना में पेंशनरों को आधी राहत भी नही मिलपा रही है। इससे क्षुब्ध होकर मध्यप्रदेश सरकार से राज्य शासन के कर्मचारियों की तरह ही उन्हे भी महंगाई भत्ता दिये जाने की मांग कर रहे हैे । उक्त बात जिला पेंशनर्स एसोसिएशन के जिला अध्यक्ष अरविन्द व्यास ने बताते हुए कहा कि प्रदेश सरकार को सैकडो बार ज्ञापन देने, एवं धरनाप्रदेशन कर मांग पत्र देने के बाद भी सरकार के कान पर जू नही रेंग रही है ।
उन्होने बताया कि छत्तीसगढ सरकार भी प्रदेश के पेंशनरों को आर्थिक नुकसानी देने में पीछे हेै । प्रदेश के बुजुर्ग पेंशनरों से सरकार को दुर्भावना क्यो है, यह भी मनन का विषय है । धारा 49 का दोनों सरकारे ही पेंशनरों के आर्थिक शोषण के लिये उपयोग कर रही है । छत्तीसगढ सरकार ने 5 प्रतिशत राहत राशि देने के लिये जो पत्र जारी किया है ,उसके पैरा 2 को ध्यान से पढा जावे तो , छत्तीसगढ़ सरकार ने जो सहमति दी है उसमें साफ लिखा है कि मध्यप्रदेश पुनर्गठन 2000 की धारा 49 के अनुसार केवल पूर्व मध्यप्रदेश के पेंशनरों को दिनांक 1.मई-20.22 से 22 प्रतिशत महंगाई राहत स्वीकृत करने के लिये छत्तीसगढ़ सरकार सहमत हैं। इसका मतलब साफ है कि छत्तीसगढ़ गठन के बाद अर्थात वर्ष 2000 के बाद मध्यप्रदेश में सेवानिवृत्त पेंशनरों पर पेंशन भार बंटवारे का यह अधिनियम या इसकी धारा 49 लागू ही नहीं होती है । वर्ष 2000 के बाद के मध्यप्रदेश के पेंशनरों की महंगाई राहत वृद्धि का पूरा भार केवल और केवल मध्यप्रदेश सरकार की जिम्मेदारी है, तब छत्तीसगढ़ की सहमति के बहाने वर्ष 2000 के बाद के पेंशनरों को भी महंगाई राहत स्वीकृत नहीं करना, छत्तीसगढ़ की स्वीकृति के बहाने सरकार का पेंशनरों के साथ छल है। छत्तीसगढ़ में कर्मचारियों/पेंशनरो की चालू प्रांतव्यापी हड़ताल के दबाव में छत्तीसगढ़ सरकार ने दिनांक 01.05.22 से केवल 22ः महंगाई राहत स्वीकृती का यह पत्र दि. 26.07.22 को जारी कर इसमें पूर्व मध्यप्रदेश (छत्तीसगढ़ बनने के पहले के मध्यप्रदेश के) पेंशनरों के लिए भी 22ः महंगाई राहत स्वीकृती पर सहमति सूचित की है।
मध्यप्रदेश सरकार का भावी संभावित कदम भी अब अपने पेंशनरों को भी दिनांक 1.05.22 से केवल 22 प्रतिशत महंगाई राहत घोषित करने का हो सकता है, जबकि केंद्र द्वारा स्वीकृत 40 प्रतिशत महंगाई राहत से हम अभी बहुत पीछे हैं,दूसरा केंद्र के अनुरूप महंगाई राहत के एरियर के संबंध में भी प्रदेश सरकार मौन है।
श्री व्यास के अनुसार अभी तक की स्थिति यह है कि केंद्र सरकार के 2017 के निर्देश अनुसार राज्य पुनर्गठन 2000 की धारा 49 के अनुसार मध्यप्रदेश सरकार को अपने पेंशनरों को महंगाई राहत घोषित करने छत्तीसगढ़ सरकार से सहमति की कोई आवश्यकता है ही नहीं, दूसरे छत्तीसगढ़ सरकार के उपरोक्त पत्र से भी साफ है कि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राज्य पुनर्गठन के पूर्व मध्यप्रदेश के पेंशनरों के संबंध में ही सहमति जारी की है क्योंकि राज्य पुनर्गठन विधेयक 2000 के बाद के मध्यप्रदेश के पेंशनरों के संबंध में छत्तीसगढ़ का कोई दायित्व है ही नहीं । इन पेंशनरों की महंगाई राहत का पूरा भार मध्यप्रदेश सरकार की जिम्मेदारी है। हममें से अधिकांश वर्ष 2000 के बाद के पेंशनर है जिनका राज्य पुनर्गठन से कोई वास्ता नहीं है। सरकार द्वारा पेंशनरों का हक नहीं देने झूठे बहाने बनाए जा रहे हैं। मध्यप्रदेश में भी कर्मचारी/पेंशनर संघों द्वारा भी छत्तीसगढ़ के समान आंदोलन ही एकमात्र उपाय दिखाई दे रहा है और बिना संघर्ष के प्रदेश की शिवराजसरकार सुनने वाली नही है । जिले के सभी तहसील अध्यक्षों एनएल रावल पेटलावद, जगमोहसिंह राठौर थांदला, मांगीलाल दुर्गेश्वर रानापुर सहित जिले भर के पेंशनर्स एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने कडे शब्दों में सरकार की नियत एवं नीति पर शंका जाहिर करते हुए पेंशनरों को आगामी दिनों में संघर्ष के लिये तेैयार रहने का आव्हान किया है।
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