संचार क्रांति के इस दौर में भला कौन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज के इस झांसे पर यकीन करेगा की हम तो पेंशनरों को पूरा डीए देने को र्तैयार हैं पर छत्तीसगढ़ की सहमति ना मिलने पर मजबूर है.उनकी नियत में खोट का पता तो इसी से चलता है की पेंशनरों के मामले में दोनों राज्यों की सहमति के प्रावधान को ख़त्म करने के छत्तीसगढ़ के तब के मुख्यमंत्री रमनसिंह के प्रस्ताव को वो ठुकरा चुके हैं.अब या तो पेंशनरों को राहत देने में लेट लतीफी शिवराज और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मिलीभगत का नतीजा है या शिवराज इस मुद्दे पर भूपेश को खलनायक बनाने में कामयाब हो रहे हैं..? पेंशनरों पर शिवराज की सियासत से मामला हाईकोर्ट जा पहुंचा है जिसने सरकार से जवाब तलब किया है.
मुख्यमंत्री शायद भूल रहे हैं की मध्यप्रदेश में वरिष्ठजनों की उपेक्षा संज्ञेय अपराध घोषित है जिस पर जुर्माने/सजा का प्रावधान है.इसलिए प्रदेश के पेंशनरों याने वरिष्ठजनों की उपेक्षा पर उन्हें भी कठघरे में खड़ा किया जा सकता है..!पेंशनरों को सताने की शिवराज की इस मानसिकता के पीछे शायद यह गणित काम कर रहा है की उनके आँदोलन आदि से सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला जैसा की कार्यरत शासकीय सेवकों की हड़ताल आदि से होता है.पर वो भूल गए की कोरोना की मार से उपजे आर्थिक संकट से घर परिवार अभी तक उबर नहीं पाए हैं.ऐसे में बुजुर्गों की पेंशन जीवनदायिनी साबित हो रही है.
पेंशनरों को राहत देने में फंड की किल्लत का बहाना शिवराज हरगिज नहीं बना सकते हैं क्योंकि स्मारकों,मूर्तियों और मंदिर आदि पर वे जनधन बेदर्दी से लुटा रहे हैं.भोपाल में शौर्य स्मारक,गैस स्मारक,भारत माता मंदिर,श्रीलंका में सीता मंदिर और मंत्रालय में स्वर्गीय मुख्यमंत्रियों की मूर्तियों के बाद ओंकारेश्वर में 2161 करोड़ से स्टेच्यु ऑफ़ वननेस और .शंकराचार्य की मूर्ति पर 370 करोड़ खर्च करने वाले हैं…? मंत्रालय के अलावा सुंदरलाल पटवा,कैलाश जोशी और अर्जुनसिंह की प्रतिमाएं लालघाटी पर भी लगाने का ऐलान किया है.इनके साथ वहाँ कुशाभाऊ ठाकरे,नानाजी देशमुख,सुषमा स्वराज और प्यारेलाल खंडेलवाल सहित दस नेत्ताओं की प्रतिमाएँ लगाने की योजना भी है.