झाबुआ

रागद्वेष जितना मंद पड़ता है उतना जीव सुख का अनुभव करता है ।’पूज्य मुनि श्री जिनेन्द्रमुनिजी मसा. ~~ जीव दुःख से डरता है, इच्छाएं ही दुःख का कारण है ।-अणुवत्स पूज्य संयतमुनिजी मसा.

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रागद्वेष जितना मंद पड़ता है उतना जीव सुख का अनुभव करता है ।’पूज्य मुनि श्री जिनेन्द्रमुनिजी मसा. ~~
जीव दुःख से डरता है, इच्छाएं ही दुःख का कारण है ।-अणुवत्स पूज्य संयतमुनिजी मसा.
झाबुआ। आत्मोद्धार वर्षावास में 5 अगस्त शुक्रवार को स्थानक भवन में धर्मसभा में पूज्य जिनेन्द्रमुनिजी मसा. ने प्रवचन में कहा कि भगवान महावीर स्वामी इस 5 वें आरे में तो नही है,पर उनके द्वारा बताया गया मार्ग, जिस पर स्वयं ने चल कर केवल ज्ञान, केवल दर्शन प्राप्त किया । यह मार्ग, एकांत सुख रुप है, सुख देने वाला है । राग द्वेष को दूर करने पर सुख की प्राप्ति होती है । मोहनीय कर्म के उपशम से सुख प्राप्त होता हे । राग द्वेष जितना मंद पडता है, उतना जीव सुख का अनुभव करता है । भगवान का मार्ग सुख रूप है । इस मार्ग पर आगे चलने से , यही क्रिया करते रहने से, आराधना करते रहने से मोक्ष, रूपी महान सुख की प्राप्ति होगी ।

प्रतिकमण से आत्मा की शुद्धि होती हैे ।’
आपने आगे बताया की साधु,साध्वी, श्रावक,श्राविकाओं के लिये प्रतिक्रमण आवश्यक हे । जिनका मैने प्रतिक्रमण किया और जिनका नही किया है, दिवस संबंधी सभी अतिचारों का प्रतिक्रमण करना होता है । भरत और एरावत क्षेत्र में 24 ,24 तीर्थंकर होते है। पहले और अन्तिम तीर्थकरो के अनूयायी साधकों को दोष लगे या न लगे प्रतिकमण करना आवश्यक हे । दूसरे से तेईसवे तीर्थंकरों के अनुयायी साधकों के लिये यह व्यवस्था नही हे । उन्हें दोष लगे तब वे प्रतिकमण कर लेते ओर दोष नहीं लगे तो नहीं करते हे । साधु-साध्वी को सुबह से रात्रि तक अनेक क्रियाए करना आवश्यक है । शारीरिक दुर्बलता, या कदाचित स्मृति दोष से कोई दोष लगा हो तो प्रतिक्रमण से शुद्धि होती है । आपने आगे कहा कि साधु को स्वाध्याय करना आवश्यक है । कम से कम 500 गाथाओं का प्रतिदिन स्वाध्याय करना जरूरी है ।
आचार्य भगवंत उमेश मुनि जी प्रतिदिन 2000 गाथाओं का स्वाध्याय करते थे । करने योग्य नही किया हो, तो उन अतिचारों का प्रतिक्रमण करना होता है । कभी व्यस्तता हो तो भी समय निकाल कर स्वाध्याय करना जरूरी है । आचार्य भगवंत अस्वस्थ होने पर उपवास कर लेते थे, तथा स्वाध्याय करते थे । जो करने योग्य है,वह यदि छूट जाये तो उसे वापस पकडना मुश्किल है । आज के समय जो ऐसी आराधना कर रहे हे, वे धन्य है । बडो का अनुसरण छोटे भी करने लग जाते है । मैं श्रमण हूं, संयमी हूं, मैं पाप कर्म से विरक्त हूं, मेैने पाप कर्म की आवक को रोक दिया हे , ऐसी भावना आना चाहिये । नमोंचउविसाएं पाठ के अर्थ को जब तक नही समझेगें तब तक आनन्द का अनुभव नही होगा । ’

जीव दुःख से डरता है, इच्छाएं ही दुःख का कारण है ।’ –

अणुवत्स पूज्य संयतमुनिजी मसा. ने कहा कि भगवान महावीर ने एक बार गौतमस्वामी और अन्य साधु साध्वी को अपने पास बुलाकर प्रश्न किया कि बताओं जीव किससे डरता है ? सर्वज्ञ के मुंह से निकली वाणी प्रामाणिक होती है, सर्वज्ञ ने जो कहा वह सत्य हे । सामान्य व्यक्ति से यह प्रश्न पुछा जाए तो उसका उत्तर यही होगा कि भूत से, चोर डाकू से, बीमारी से , अग्नि से, आतंकवादी से डरता है, पर भगवान ने उत्तर दिया कि जीव दुःख से डरता है । एक वाक्य में ही सारी बात समझ में आ गई । दुःख के सेाच मात्र से ही जीव को दुःख होने लगता हे । किसी ने बम की अफवाह उडा दी किसी ने सांप आने की सुचना दे दी तो व्यक्ति दुःख के मारे डरता हे । दुःख आने पर जीव घबराता हे । ज्योतिषी व्यक्ति को शनि दोष, काल सर्प दोष, ग्रह नक्षत्र , दोष बता दें तो व्यक्ति दुःखी होकर उससे बचने का उपाय कराता है । दुःख से बचने के लिये तंत्र-मंत्र कराता है । दुःख से बचने के लिये जो नही करना वह करता है । उल्टे सीधे काम करके दुःखी होने पर दोष दुसरों को देता हे । जीव अपने पूर्व भव के कर्म के कारण दुःखी होता है । भगवान के कान में कीले ठोके गये, गज सुकुमाल मुनि के सिर पर अंगारे रखे गये ।यह सब उनके पूर्व भव के बैर कर्म के कारण थे । व्यक्ति यदि विचार करे कि यदि मेरे कर्म ऐसे नही होते तो कोई मेरा कुछ बिगाड नही सकता हे । लोग साधुपने में भी दुःख होता हे , ऐसा मानते हे पर ऐसा नहीं है । यदि व्यक्ति को साधुपने में सुख लगे तो उस और कदम बढायें, तो साधुपने में सुख महसूस होगा । जीव को शाश्वत सुख पाने का लक्ष्य रखना चाहिये , इच्छाओं पर नियंत्रण करना होगा । जीव को शाश्वत सुख पाने का लक्ष्य रखना चाहिये । इच्छाओं पर नियंत्रण करना होगा । इच्छा की पूर्ति न होने पर दुःख होता है, इच्छायें ही दुःख का कारण है ।

’तपस्या है जीवन की अनुपम ज्योति, तपस्वी की आत्मा इससे पावन होती ।।
भगवान ने तप की महिमा बताई । देते हैे तपस्वियों को शत शत बधाई ।।’

तपस्या के दौर में आज श्रीमती राजकुमारी कटारिया एवं श्रीमती सोनल कटकानी ने 28 उपवास,श्रीमती रश्मि मेहता ने 26 उपवास, श्रीमती आरती कटारिया, श्रीमती रश्मि, , निधिता रूनवाल, श्रीमती चीना, नेहा घोडावत ने 25 उपवास, श्री अक्षय गांधी ने 24 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किये। आजाद बहिन श्रीमाल ने 10 उपवास श्री मनोज जैन नाकोडा ने 21 उपवास के नियम गृहण किए । श्रीमती निधि रूनवाल के 23 उपवास पूर्ण हुए ,10 तपस्वी उपवास, एकासन, निवि तप से वर्षी तप, कर रहे है । श्रीमती पुर्णिमा सुराणा सिद्धितप, श्रीमती उषा ,सविता, पद्मा, सुमन रूनवाल द्वारा मेरू तप किया जारहा है । चोला चोला, तेला- तेला बेला बेला तप भी श्रावक श्राविकायें कर रहे है । चातुर्मास प्रांरभ से ही तेला- आयम्बिल तप की की लडी सतत चल रही है । व्याख्यान का संकलन सुभाष ललवानी द्वारा किया गया संचालन केवल कटकानी ने किया ।
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