’मोहनीय कर्म का उदय आने पर जीव विवेक भूल जाता है । ’ – प्रवर्तक पूज्य जिनेन्द्रमुनिजी मसा. अ शाता के उदय के कारण दुःख आता है , पुण्य के उदय होने पर दुःख चला जाता है -’ अणुवत्स पूज्य संयतमुनिजी मसा
झाबुआ । शनिवार 6 अगस्त को आत्मोद्धार चातुर्मास में स्थानक भवन में धर्मसभा में पूज्य जिनेन्द्रमुनिजी मसा. ने प्रवचन में विचार व्यक्त करते हुए कहा कि दशा श्रुत स्कंध के 9 वे अध्याय में महामोहनीय कर्म बांधने के 30 कारण बताये गये है । भगवान महावीर स्वामी जी चौथे आरे में कौणिक राजा द्वारा बसाई गई चम्पा नगरी में पधारे थे । भगवान के पधारने का समाचार लोगों को मिला, उनके दर्शन करने ,वाणी सुनने अनेक धर्मप्रेमी आए थे । भगवान की वाणी 1 योजन दूर तक पहूंच जाती हैे । वाणी श्रवण करने के पश्चात श्रोतागण वापस चले गए तब भगवान ने साधु-साध्वी को आमंत्रण देकर पास बुलाया तथा कहा है आर्या इस संसार में स्त्री-पुरूष जो भी हो, बार बार आचरण करते हुए उनको मोहनीय कर्म का बंध होता हे । 8 कर्म होते है- ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गौत्र और अन्तराय कर्म । इन कर्माे को जीव कैसे बांधता है, इसके कारण बतायें । इन कर्माे में अन्य कर्माे के साथ मोहनीय कर्म का बंध भी निरन्तर चलता रहता है । इन 8 कर्माे में से 7 कर्म जीव हर समय बांधता रहता है, मात्र आयुष्य कर्म का बंध जीवन में एक बार होता हे । स्त्री पुरूष सभी मोहनीय कर्म बंध करते रहते है । मोहनीय कर्म वह है जो आत्मा को मोहित करता है, जिसके द्वारा जीव मोह मे फंसता है । महा मोहनीय कर्म बांधने के परिणाम रौद्र होते हे । कर्म बांधनें के कारण आत्मा की देह चेतना लुप्त हो जाती हे । आत्मा धार्मिक क्रिया से शून्य होकर विवेक के अभाव में चार गति में भ्रमण करती रहती है । जीव की धार्मिक क्रिया खत्म हो जाती है । जीव 70 कोडाकोडी सागरोंपम कर्म का बंध करताहै । मोहनीय कर्म का जब उदय आता है, तो जीव अपना विवेक भूल जाता हे । जीव महामोहनीय कर्म का बंध कर नरक में जाता हे और वहा से तिर्यंच, मनुष्य में जाकर फिर ऐसे कर्म बांध कर वापस नरक में चला जाता है । भगवान ने बताया कि जीव उन्ही कारणों का बार-बार सेवन करता है । जीव को तेज गुस्सा आने पर मोहनीय कर्म का उदय होता है, उसे बार बार ऐसा करने का मन होता है । व्यक्ति को कितना भी समझाओं, वह नही समझता है, और ज्यादा कर्म बांधता है । जीव मजाकवश, कौतुहल की वजह से भी त्रस जीव को पानी मे डूबो-डूबों कर मारता है, उसे नही पता कि कर्मचंदजी का कर्जा उसे भारी पडेगा । जीव को संसार में रहते हुए उसे ऐसी क्रिया करने में आनन्द आता हे । जीव को खाने-पीने की जो भी वस्तु है, उनकों ढंक कर रखना चाहिये, ताकि जीव जन्तु उसमें नही गिरे । असावधानी वश खुला रखने पर अनर्थदण्ड का भागी होता है ।
’आया हुआ दुःख लंबे समय तक नही रहता है ।’’
अणुवत्स पूज्य संयतमुनिजी मसा ने कहा कि भगवान महावीर स्वामीजी को दीक्षा लेने के दिन तथा बाद में कई प्रकार के उपसर्ग आये थे । दीक्षा के बाद ही भंवरों ने काटा, क्योकि शरीर पर सुगंधित द्रव्य लगे हुए थे । भगवान को तिर्यंच ,मनुष्य, देवता ने अनेक उपसर्ग दिये पर उन्होने समभाव रखा । संसारी मनुष्य ऐसे उपसर्गाे में प्रायः सम भाव नही रख पाता हे और संयम के कष्टो से डरता है , परंतु कष्ट दुःख तो संसारी को भी आते है । संयम में कष्ट सहने पर कर्म क्षय होते है । जीव दुःख से डरता है, दुःख आने का एहसास होने मात्र से घबराता हे । वह दुःख से बचने के अनेक उपाय करता है । पर उससे भी उसके दुःख दूर नही होते, उल्टे नये कर्म बांधता हे । दुःख को भुलाने के लिये ,गम भुलाने के लिये कभी- कभी नशा भी कर लेता है, थोडी देर उसे लगता है कि वह दुःख को भुल गया, पर होश आने पर, फिर नया दुःख पाल लेता हे । धर्म आराधना करते, दीक्षा लेने पर मन में ऐसे भाव आना चाहिये कि ये दुःख मेरे पूर्व भव के कर्म के उदय के कारण आऐ हे , मेरा जो दुःख आया है, वह लंबे समय तक नही रहेगा, ऐसा चिंतन करना चाहिये । अ शाता के उदय के कारण दुःख आता है । पुण्य के उदय होने पर दुःख चला जाता है ।’सामान्य संसारी जीव को शारीरिक, आर्थिक, मानसिक दुःख आता है । कोरोना काल में घबराहट से ही कई व्यक्तियों की मृत्यु हुई । दीक्षा लेने के बाद भी दुःख आये तो मन में बुरे भाव नही आना चाहिये । घर परिवार में सभी सुख उपलब्ध है, पर मानसिक दुःख चलते रहते है । व्यापार में घाटा हुआ,दिवालिया हुआ, कर्जा बढ गया इस प्रकार से आर्थिक दुःख आते है, पर व्यक्ति को विचार करना चाहिये कि ऐसे दुःख लंबे समय तक नही रहेगें ।कभी तो सुख होगा । कई विद्यार्थी फैल होने पर आत्म हत्या तक कर लेते है,विचार करना चाहिये कि अगले साल मेहनत करें फिर पास हो जाएंगे । दुःख जाने पर सुख अवश्य आयेगा, सुख के लिये प्रयास करना होगा ।
’तप से बढ़े आत्म शक्ति, तप से जगे आत्म ज्योति ।
मन के विकारों को दूर करे,। तप से परभव की कमाई होती ।।’
तपस्या के दौर में आज श्रीमती राजकुमारी कटारिया एवं श्रीमती सोनल कटकानी ने 29 उपवास, श्रीमति रश्मि मेहता ने 27 उपवास, श्रीमती आरती कटारिया,श्रीमती रश्मि, निधिता रूनवाल, श्रीमती चीना, नेहा घोडावत ने 26 उपवास, श्री अक्षय गांधी ने 25 उपवास, श्रीमती आजाद बहिन श्रीमाल ने 12 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किये । संघ के 10-श्रावक-श्राविका उपवास,एकासन और निवि तप से वर्षीतप कर रहे हे । श्रीमती पुर्णिमा सुराणा सिद्धितप, श्रीमती उषा ,सविता, पद्मा, सुमन रूनवाल द्वारा मेरू तप किया जारहा है । चोला चोला, तेला- तेला बेला बेला पारणा श्रावक श्राविकायें कर रहे है । वर्षावास प्रारंभ सेे ही तेला- आयम्बिल तप की लडी गतिमान है । तपस्वियों के तपस्या के उपलक्ष में चौबीसी का दोपहर में आयोजन चल रहा है । प्रवचन का संकलन सुभाष ललवानी द्वारा किया गया संचालन केवल कटकानी ने किया ।
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