झाबुआ

स्वास्थ्य विभाग में शासन से खत्म होने के बाद भी निर्बाध जारी है अटैचमेंट प्रथा —

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किस कारण लाडले मनीष पर पूरी तरह कृपावंत है सीएमएचओ डा. ठाकुर साहब ।

झाबुआ । उपर वालों का काम होता है, आदेशो को जारी करना, हमे तो तिजोरी भरने की फिक्र बनी रहती है, जब कमाउ पुत को ही निकाल देगें तो, बिचौलियों की भूमिका कौन निभायेगा। जी हां हम बात कर रहे है जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डा. जयपालसिंह ठाकुर की जो नियमों को ताक पर रख कर मनीष को रिलिव ही करना नही चाहते है । शासन ने भले ही सरकारी विभागों में अटैचमेंट की प्रथा खत्म कर दी हो, लेकिन झाबुआ जिले के स्वास्थ्य विभाग में यह परपंरा निर्बाध रूप से जारी है। स्वास्थ्य विभाग में भी इसी तरह हर जगह जिला मुख्यालय से लेकर उपस्वास्थ्य केन्द्रो तक थोकबंद अटैचमेंट किए जाने का सिलसिला थम नही रहा है । इस महकमे में तो दूसरी जगह के कर्मचारियों को भी सीएमएचओ कार्यालय में ही अटैच कर दिया गया। विशेषकर एनआरएचएम के तहत मनीष नामक कमाउ पुत पर तो डा. ठाकुर साहब इतने अधिक मेहरबान है कि वरिष्ठ कार्यालय के सख्त निर्देशों के बाद भी इस व्यक्ति को अपनी नाक का बाल बनाये हुए है, तथा इसे अपनी नजरों से ओझल ही नही होना देना चाहते है।
स्वास्थ्य विभाग के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय में यूं तो स्टाफ की भरमार है, बावजूद यहां भी थोकबंद कर्मचारियों को अटैच करके काम लिया जा रहा है। सीएमएचओ कार्यालय में मनीष जेसे धुरंधर को अटेच करके अन्य व्यक्तियों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार समझ से परे दिखाई दे रहा है । हाल ही में मध्यप्रदेश राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन संचालक ने माननीय उच्च न्यायालय मुख्यपीठ जबलपुर में लंबित रिट याचिका में पारित अन्तरिम निणर्य के परिपालन में सभी मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारियों को निर्देशित किया है कि माननीय न्यायालय मुख्यपीठ के पारित निर्णय 20 जून 22 के परिपालन में आगामी आदेश तक जिले में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के आदेश 11 जनवरी 2022 के तहत नियुक्त किये गये कर्मचारियों से कार्य नही लिया जावे । आशय स्पष्ट है कि जिनकी पदस्थापना अन्यत्र हो चुकी है, उन्हे अब जिला स्तर पर कार्य नही लिया जाना है तथा उन्हे रिलिव कर दिया जाना है । किन्तु स्वास्थ्य विभाग में केवल – सीएमएचओ साहब के ही निर्देश चलते है और प्रदेश स्तर से जारी हुए निर्देशों की कोई अहमियत नही है । राज्य सरकार भले ही ट्रांसफर पालिसी आने के बाद पारदर्शिता लाने की बात कर रही हो, लेकिन हकीकत यह है कि इस विभाग में मनीष जैसे कर्मचारी अधिकारी इस व्यवस्था का भी तोड़ निकालने में कामयाब होने का प्रयास कर रहे है । कोरोना काल में अनगिनत ऐसे लोग हैं, जिन्हें रोजगार की जरूरत है। यह मुद्दा अधिकारी और जनप्रतिनिधियों के सामने भी उठ चुका है। मगर हकीकत यह है कि जिले के स्वास्थ्य विभाग में चल रहे अटैचमेंट की वजह से नई भर्तियां नहीं हो पा रही हैं। ज्ञातव्य है कि सरकार ने थोडी सी ढिलाई देते हुए परिस्थिति जनित घटना से निपटने के लिए संचालनालय, संभाग स्तर के अधिकारी 15 दिवस व जिला स्तर के अधिकारी सात दिवस के लिए ही सिर्फ चिकित्सकीय अमला को संलग्न कर सकते हैं । यदि संलग्नीकरण 15 दिवस से अधिक अवधि के लिए है तो आवश्यक होने की स्थिति में शासन स्तर से निर्णय लिए जाने के नियम है। ऐसा लगता है कि स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार पदों पर पदस्थ अधिकारियों को ना तो मुख्यमंत्री का भय है, न स्वास्थ्य मंत्री का लिहाज है, ना ही कार्यवाही की चिंता। ऐसा इसलिए लगता है कि शासन द्वारा जारी संलग्नीकरण समाप्ति के आदेश के बावजूद अधिकारियों को ना तो खुद ही जारी किए संलग्नीकरण समाप्त किए जाने के आदेश के परिपालन की फिक्र है, न ही अटैचमेंट को समाप्त करने की चिंता, तभी तो शासन के आदेश की धज्जियां उड़ा रहे हैं। अन्त मे यही कहेगें कि
लग चुकी हो जिसे आदत घुंस खाने की, उसे सिर्फ मुफ्त की रोटिया चाहिये,
कमा कमा कर देने वाले चाटूकारों की यहां दिन रात पौ बारा होते है।
अब तो अति हो गई इनके जुल्मो सितम की दोस्तो-
कब रूकेगी इनकी उल्टी गंगा सिर्फ इंतजार है सबकोें ।

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