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कुछ खरी खरी : मतदाताओं द्वारा दिन में तारे दिखाने के बावजूद भाजपाइयों के मुगालते नहीं हो रहे दूर

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नगरी निकाय निर्वाचन में मतदाताओं ने भाजपा महापौर प्रत्याशी सहित जिम्मेदार विधायक की जान हलक में लाने के बावजूद कुछ भी सबक नहीं सीखा है। ना तो पहले कुछ समझते थे ना ही अब कुछ सोचने समझने की कोशिश कर रहे हैं। आज भी उनका घमंड, गर्व, दंभ, गुमान, गुरूर, अभिमान, अकड़, हेकड़ी, मद, शेखी में कोई फर्क नहीं पड़ा है। पूर्व महापौर द्वारा शहर का सत्यानाश करने के बावजूद भी स्वार्थी अतिक्रमणकारी मतदाताओं ने जरूर भाजपा को जिताने का जतन किया, लेकिन रतलाम के सुलझे हुए लोगों ने तो सबक सिखाने की ठान ली थी लेकिन ऐसा नहीं हो सका था। अंततोगत्वा जीत का निवाला मिल ही गया।

इतना ही नहीं शहर के अन्य मोहल्लों और वार्डों से जीते अन्य दल के पार्षदों को भी अपने मन की बात समझने में पहली सीढ़ी पर ही नाकाम नजर आ रहे हैं। इसका नजारा शनिवार को ही देखने को मिल गया। यह भी अपने-अपने वार्डों के जनप्रतिनिधि हैं तो उनकी भी बात समझनी थी। माननी थी, लेकिन ऐसा कोई प्रयास शहर हित में नहीं किया। महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह नहीं किया। विपक्ष को साथ ही रखने का माद्दा दिखाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। अभी से विपक्ष को अपना कट्टर दुश्मन मान रहे हैं जबकि विपक्ष से ही शहर का मजबूत विकास होता है। क्योंकि वह हां में हां नहीं मिलाएंगे वे जो सच होगा, उसी की बात करेंगे।तभी तो शहर का समुचित और समग्र विकास संभव है लेकिन ऐसा कुछ संभव प्रतीत नहीं हो रहा है। लगता है जैसा कार्यकाल रतलाम की जनता ने पिछला वाला भुगता है, उससे बद्तर यह ना हो जाए।

तो क्या नई सरकार बजाई के स्वच्छता में डंका ?

जब शहर की नवनिर्वाचित सरकार का पद ग्रहण समारोह ही अव्यवस्था और मनमानी की भेंट चढ़ गया हो तो फिर उनसे क्या आशा की जाएगी। वह 5 साल बेहतर कार्य करेंगे। शहर के लोगों को सुविधा दिलाएंगे। स्वच्छता में डंका बजाएंगे। आयोजक तो ऐसा मान लेते हैं कि लोगों को गरज है हमारे पद ग्रहण समारोह में आने की, तो वह आएंगे ही लेकिन यह मुगालते भी जल्द दूर हो गए। नवनिर्वाचित महापौर और पार्षदों के पद ग्रहण समारोह में यूं तो नाम आधे दर्जन से अधिक छाप दिए, कि यह सब रहेंगे लेकिन उन्होंने आना भी मुनासिब नहीं समझा। यहां तक की मीडियाकर्मियों को भी बकायदा आमंत्रण नहीं मिला और यह आज की बात नहीं है भाजपाइयों की यह गलत परंपरा बदस्तूर जारी है। और और इसका खामियाजा हर बार लगातार भुगतना पड़ रहा है।

ऐसा संभव नहीं है, कभी भी नहीं

यदि मुगालते में रहने वाले यह सोच रहे हैं कि वह कांग्रेस के 15 और निर्दलीय चार पार्षदों के अलावा कांग्रेस महापौर को चाहने वाले 66 हजार से अधिक मतदाताओं के साथ में गलत कर लेंगे तो ऐसा संभव नहीं है, कभी भी नहीं। शहर में सड़क, सफाई जहां निहायत जरूरी है वही पार्किंग भी चाहिए और अतिक्रमण पर कार्रवाई होना लाजमी है। दुकानदारों की मनमानी इसीलिए चल रही है कि वे भाजपा को जीता रहे हैं और जिताने का बहुत बड़ा फायदा वे शहर की यातायात व्यवस्था की धज्जियां उड़ा कर ले रहे हैं। यातायात अमला भी सुबह शाम चक्कर लगाकर अपनी हाजिरी दर्ज करवा देता है ताकि दुकानदार उनकी खिदमत कर सके। शहर में चलने वाले लोग कितने ही परेशान क्यों ना हो? दुकानदार अपनी हद को लांघते हुए लगातार बढ़ रहे हैं। इनको देखने और रोकने वाला कोई नहीं। क्योंकि सभी रिश्ते में एक दूसरे के खास हैं और वे खास के खास हैं। आम जनता बकवास है उनकी नजर में।

वरना हो जाएगा बेड़ा गर्क

बहानेबाजी अब बिल्कुल नहीं चलेगी। केवल और केवल काम ही काम करना होगा। तभी बेड़ा पार हो सकता है वरना बेड़ा गर्क होने में देर नहीं लगेगी। यह तो अभी भी कब्र में ही लटके हुए हैं यह जीत भी कोई वह जीत नहीं है, जिस जीत से ख़ुशी का एहसास हो।

उनके लिए तो केवल और केवल काम है राष्ट्रभक्ति नहीं

हर घर तिरंगा अभियान के तहत नगर निगम के कर्मचारी घर घर और दुकान दुकान जाकर झंडा वितरण कर रहे हैं और बदले में निश्चित राशि ली जा रही है लेकिन झंडे की गरिमा के अनुरूप उसका डंडा नहीं दिया जा रहा है। कीमची में झंडा लगाकर दिया जा रहा है। इतना ही नहीं राष्ट्रीय ध्वज की गरिमा को तार-तार कर रहे हैं कहीं पर झंडा उल्टा लटकाया जा रहा है तो कहीं पार्टियों के झंडे की तरह दुकानों के सेड में खोसा जा रहा है। लोगों का यही कहना है कि पैसे पूरे लिया जा रहा है तो उसे सम्मान का विशेष डंडा भी होना चाहिए था लेकिन जिम्मेदार केवल काम मानकर ही कर रहे हैं। राष्ट्रभक्ति का जज्बा उनमें कहीं से कहीं तक नजर नहीं आ रहा है।

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