झाबुआ

उमापति के दरबार मे लगी श्रद्धालुओं की बेतहाशा भीड, प्रसंग था शिव पार्थिव शिव लिंग विधान के समापन समरोह का~~ श्रद्धा एवं भक्ति के ससथ श्रावण माह मे बनाये गये 5 लाख 51 हजार शिवलिंग~~~ पार्थिव शिवलिंग की पूजा करने वाले शिव साधक के जीवन से अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता- पण्डित द्विजेन्द्र व्यास ~

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उमापति के दरबार मे लगी श्रद्धालुओं की बेतहाशा भीड, प्रसंग था शिव पार्थिव शिव लिंग विधान के समापन समरोह का~~
श्रद्धा एवं भक्ति के ससथ श्रावण माह मे बनाये गये 5 लाख 51 हजार शिवलिंग~~~
पार्थिव शिवलिंग की पूजा करने वाले शिव साधक के जीवन से अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता- पण्डित द्विजेन्द्र व्यास ~~

झाबुआ । स्थानीय विवेकानंद कालोनी स्थित उमापति महादेव मंदिर में श्रावण माह के अन्तिम सोमवार को पार्थिव शिंवलिंग विधान निर्माण का आध्यात्मिक, चमत्कारिक आयोजन का समापन नगर के हजारो श्रद्धालुओं के द्वारा पूजन अभिषेक एवं धार्मिक अनुष्ठान के साथ संपन्न हुआ । उमापति महादेव मंदिर समिति के अध्यक्ष मनोज भाटी ने जानकारी देते हुए बताया कि श्रावण माह के प्रथम दिन से अन्तिम सोमवार तक मदिर में 5 लाख 51 हजार शिव पार्थिव विधान का आयोजन एक कीर्तिमान स्थापित कर गया । मंदिर के आचार्य, ज्योतिर्विद पण्डित द्विजेन्द्र व्यास के अनुसार 5 लाख 51 हजार से अधिक पार्थिव शिवलिंग के निर्माण में उमापति महिला मंडल, शिवप्रियाभक्त मंडल के अलावा नगर के सभी समाजों के श्रद्धालुजनांे ने इसमे सहभागिता की । समापन के अवसर पर मुख्य यजमान मनोज भाटी परिवार रहा ।

 

श्री व्यास के अनुसार हिंदू धर्म में भगवान शिव को कल्याण का देवता माना गया है. जिनकी साधना के लिए श्रावण मास ही शुभ माना गया है.। ऐसे में भोले के भक्त अपने आराध्य महादेव की तमाम तरह से पूजा करके उनको प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं।. कोई उनके साकार स्वरूप यानि मूर्ति की पूजा करता है तो कोई उनके निराकार स्वरूप यानि शिवलिंग की पूजा करता है। सनातन परंपरा में अलग-अलग प्रकार के शिवलिंग की पूजा के अलग-अलग फल बताए गए हैं, लेकिन सभी प्रकार के शिवलिंग में पार्थिव शिवलिंग की पूजा बहुत ज्यादा महत्व है उन्हाने बताया कि मान्यता है कि भगवान शिव का पार्थिव पूजन सबसे पहले भगवान राम ने किया था.। मान्यता है कि भगवान श्री राम ने लंका पर कूच करने से पहले भगवान शिव की पार्थिव पूजा की थी। मान्यता है कि कलयुग में भगवान शिव का पार्थिव पूजन कूष्माण्ड ऋषि के पुत्र मंडप ने किया था., जिसके बाद से अभी तक शिव कृपा बरसाने वाली पार्थिव पूजन की परंपरा चली आ रही है। मान्यता यह भी है कि शनिदेव ने अपने पिता सूर्यदेव से ज्यादा शक्ति पाने के लिए काशी में पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा की थी। मान्यता है कि सावन के महीने में पार्थिव शिवलिंग की पूजा करने पर व्यक्ति के जीवन से जुड़ी बड़ी से बड़ी बाधाएं दूर और कामनाएं पूरी होती हैं। पार्थिव शिवलिंग की पूजा करने वाले शिव साधक के जीवन से अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता है. शिवपुराण के अनुसार पार्थिव पूजा करने वाले साधक को भगवान शिव के आशीर्वाद से धन-धान्य, सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है और वह सभी सुखों को भोगता हुआ अंत में मोक्ष को प्राप्त होता है.।

उमापति के दरबार में शिवपाथर््िाव विधान के समापन के अवसर पर पूरा नगर उमड पडा, प्रत्येक श्रद्धालु ने पार्थिव शिपलिंग निर्माण कर अपनी श्रद्धा एवं भक्ति की गंगा प्रवाहित की । इस अवसर पर भगवान उमापति महादेव का आकर्षक श्रृगार भी हर किसी को मोह रहा था । दिन भर चले इस आयोजन में पण्डित द्विजेन्द्र व्यास के अलावा पण्डित, मनोज दवे नामली, चन्द्रशेख शर्मा ताल, संतोष उपाध्य नागदा ने पूरे एक माह तक इन बा्रह्मण विद्वानों ने शास्त्रोक्त रिति से पूजा अनुष्ठान, एवं कार्यक्रम को श्रद्धा का केन्द्र बनाने में अहम भूमिका का निर्वाह किया । श्रावण के अन्तिम सोमवार को दिन भर भक्ति भावना के साथ पूजा अनुष्ठान का क्रम जारी रहा । सायंकाल को मंदिर परिसर में आकर्षक झांकी सजाई गई,वही श्रद्धालुओं के लिये फलाहारी खिचडी की प्रसादी सामाजिक महासंघ के अध्यक्ष नीरजसिंह राठौर द्वारा वितिरत की गई । मदिर समिति अध्यक्ष मनोज भाटी ने नगर की धर्मप्राण जनता को पार्थिव शिपलिंग निर्माण समापन समारोह में उपस्थित होकर धर्मलाभ लेने तथा आयोजन को सफल बनाने के लिये धन्यवाद ज्ञापित किया है ।

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