झाबुआ

* मोहनीय कर्म सब कर्मो का राजा है, यह जीव को संसार में नाच नचा रहा है ।* – प्रवर्तक पूज्य जिनेन्द्रमुनिजी म.सा.

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* मोहनीय कर्म सब कर्मो का राजा है, यह जीव को संसार में नाच नचा रहा है ।* – प्रवर्तक पूज्य जिनेन्द्रमुनिजी म.सा.

झाबुआ । चातुर्मास में 9 अगस्त मंगलवार को स्थानक भवन में पुज्य जिनेन्द्र मुनिजी ने प्रवचन में उदगार व्यक्त करते हुए कहा कि तीर्थंकर भगवान के हमारे उपर अनंत उपकार है । उन्होने बिना किसी स्वार्थ के भवी जीवो पर कृपा कर उपदेश दिया । भगवान द्वारा दिया गया उपदेश भवि जीवों की जन्म मरण की परम्परा को तोडने वाला है । भगवान ने कर्म सिद्धांत पर बारिकी से विस्तृत वर्णन बताया । आठ कर्मो में मोहनीय कर्म सभी कर्मो का राजा है । यह कर्म बडी मुश्किल से दूर होता है । इस कर्म को समझना बडा ही मुश्किल है । जीव मोह में ऐसा पडा हुआ है कि वह समझ ही नही पाता है कि यह मोह है । यह कर्म जीव को संसार में नाच नचा रहा है । व्यक्ति इस प्रकार की क्रिया करता चला जाता है ।
आपने आगे कहा कि कोई धूर्त व्यक्ति, मायावी, छल कपट करने वाला व्यक्ति बहुरूपिया बन कर मनुष्यों को छला करता है । मार्ग में आने जाने वाले व्यक्तियों को धोखा देता, उनको अज्ञात स्थान पर ले जाकर मार देता है । ऐसा नीच कर्म करने वाला व्यक्ति महामोहनीय कर्म का बंध करता है । मायाजाल फैला कर, नकली अफसर , नकली पुलिस बन कर लोगों को धोखा देकर रिश्वत लेता है । इस प्रकार के समाचार अखबारों में आते रहते है। धुर्त लोग धुर्त्तता करते हे । कभी कभी सडकों पर नुकीले किले ठोक कर गाडियां पंचर कर लूटमार करते है तथा हाथ पैर भी तोड देते है । ऐसे व्यक्ति इस प्रकार का कार्य करते हुए खुश होते हे ।
*पाप का कार्य कर खुश होने वाले व्यक्ति संसार में ज्यादा है ।*
हमारी आत्मा ने अनंत भव किए है, हमने भी ऐसे कार्य किए होगें । ऐसा कर्म करने वाला व्यक्ति नरक मे जाता हेै। । पंचेन्द्रिय जीव 4 कारणों से नरक में जाता हे 1महा आरंभ,2महा परिग्रह 3मद्य मांस सेवन 4,पंचेंद्रीय जीवो की हत्या । अपने बुरे आचरण, अपने देाषों को छिपाना, दबाना, माया, करना भी महा मोहनीय कर्म बंध का कारण है । दूसरों के द्वारा प्रश्न पुछने पर झुठा उत्तर देना, ऐसे कार्य भी व्यक्ति करता है । चौथे आरे में भी ऐसे कार्य होते थे, उस समय भी ऐसे धुर्त व्यक्ति होते थे , जो ऐसे कर्म का उपार्जन करते थे । अनादिकाल से व्यक्ति पाप क्रिया करता आया है । सूत्र के अर्थ को छुपाना, बताना नही, गलत रूप् में बता देना भी कर्मबंध का कारण हे ।केवली भगवान ने जो बताया उसे सत्य मानने वाला आराधक कहलाता है, नही मानने वाला विराधक होता है । आचार्य भगवंत उमेशमुनिजी ने इतने साहित्य लिखे पर उन्हे अंहकार नही था । किसी संत ने व्याख्यान में कुछ गलत बोल दिया तो वे तत्काल उसे सही करते थे । जो असत्य बोलता है, प्रश्न पुछने पर गलत उत्तर देता है, गुमराह करता है, वह महामोहनीय कर्म का बंध करता है । भगवान ने जो बताया उसे समझ कर उसका पालन करना चाहिये । गलत प्ररूपणा करने से आत्मा पतित बन सकती है । *

खुशामद चापलूसी स्वार्थ वश होती है , प्रशंसा गुणों की होती है ।*
अणुवत्स पूज्य संयतमुनिजी मसा. ने बताया कि भगवान महावीर स्वामीजी ने कामदेव श्रावक की प्रसंशा की थी, क्योकि वे धर्म पर दृढ रहे थे । वे धनवान श्रावक थे, इसलिए उनको शिष्य बनाने का विचार भगवान के मन में नही आया । प्रसंशा करना, अलग चीज है, खुशामद करना अलग बात है । आजकल व्यक्ति खुशामद, चापलुसी ज्यादा करता है । संसारी जीव कई जगह से दबा रहता है, अपना काम निकलवाने के लिये वह चापलुसी खुशामद करता है । खुशामद चापलुसी, स्वार्थवश होती है, जबकि गुणों की प्रशंसा होती है । प्रशंसा और चापलूसी में अंतर है । कभी कभी चापलुसी,खुशामद में डर भी रहता है की काम न बिगड़ जाए । प्रशंसा ए च्छिक है ,चापलुसी दबने वाले की जरूरी है । झुठी प्रसंशा करना भी चापलुसी है । गृहस्थ अवस्था में चापलुसी कई लोगो की करना जरूरी हे । अफसरों की, नौकर की, कार के ड्राईवरों की, सगे संबंधियां की ,नेताओं की भी खुशामद करना पडती है । अपना काम निकालने के लिये , इनकी प्रशंसा भी स्वार्थवश करना पडती हे । साधु को किसी भी खुशामद करने की जरूरत नही होती है । व्यक्ति को पद चाहिये, नौकरी चाहिये तो भी सिफारिश, खुशामद करना पडती है । संसार में इस प्रकार की क्रियाऐ चलती रहती है। यदि व्यक्ति चापलुसी खुशामद नही करें तो बनते हुए काम भी बिगड जाते है । वक्त आने पर गधे को भी बाप बनाना पडता हे । सबसे बडी गरज है, संसार में व्यक्ति समाज से, शासन से, पुत्र से, पत्नी से दबा होता हे, उनकी गरज करना पडती है। गृहस्थी अलग हे, साधुपना अलग है । मन में ग्लानि होने पर भी खुशामद करना पडती है । संसार में व्यक्ति जिस पर विश्वास करता है वह भी विश्वासघात करता है । जैसे जैसे लाभ होता जाता है, वैसे-वैसे लोभ भी बढ़ता जाता है । लालच के कारण व्यक्ति इस प्रकार की खुशामद भी करता है ।

*आओ करे तपस्वी का अभिनंदन, तपस्या जय जय कारी ।

धन्य हे धन्य तपस्वी तुम्हारी साधना, समता प्यारी* ।

मास क्षमण की ओर अग्रसर श्रीमती राजकुमारी कटारिया ने 32 उपवास, श्रीमती रश्मि मेहता ने 30 उपवास, श्रीमती रश्मि, निधिता, रूनवाल, श्रीमती चीना नेहा घोडावत ने 29 उपवास, अक्षय गांधी ने 28 उपवास, श्रीमती आजाद बहन श्रीमाल ने 14 उपवास के प्रत्याख्यान प्रवर्तक जी से ग्रहण किये । मास क्षमण करने वाले तपस्वियों की तपस्या के उपलक्ष्य में दिन मे एवं रात्री में चौबीसी का आयोजन निरन्तर चल रहा है । 10 तपस्वी उपवास एकासन, निवि तप से वर्षीतप ,श्रीमती पूर्णिमा सुराणा सिद्धि तप, श्रीमती उषा, सविता, पदमा, सुमन रूनवाल, श्रीमती रेखा कटकानी द्वारा मेरूतप किया जारहा है । अन्य कई तपस्वी विभिन्न प्रकार की तप आराधना कर रहे है । श्रीमती सोनल कटकानी के 30 उपवास पूर्ण होने पर बहुमान का लाभ उनके देवर विनोद कटकानी ने 11 उपवास तथा देवरानी श्रीमती शीतल कटकानी ने धर्मचक्र की तपस्या करने की बोली लेकर बहुमान रविवार को किया था ।आज श्री राजपाल मूणत की 24उपवास की तपस्या के उपलक्ष में उनका बहुमान तपस्या की बोली लगाकर किया गया ।। प्रवचन का संकलन सुभाष ललवानी द्वारा किया गया । सभा का संचालन विवेक कटकानी ने किया ।

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