झाबुआ

’विश्वास के आधार पर धर्म और संसार चलता हे, परन्तु स्वार्थ आने पर व्यक्ति विश्वासघात करता है ।’- प्रवर्तक पूज्य जिनेन्द्र मुनिजी मसा.

Published

on

 

’विश्वास के आधार पर धर्म और संसार चलता हे, परन्तु स्वार्थ आने पर व्यक्ति विश्वासघात करता है ।’- प्रवर्तक पूज्य जिनेन्द्र मुनिजी मसा.
झाबुआ  । आत्मोद्धार वर्षावास के अन्तर्गत स्थानक भवन में 11 अगस्त गुरूवार को पूज्य जिनेन्द्रमुनि जी म. सा. ने कहा कि संसार में धर्म और अन्य कार्य विश्वास के आधार पर चलते है । आज साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका, आदि धर्म आराधक अपने ईष्ट देव भगवान महावीर स्वामीजी की वाणी पर विश्वास करके धर्म ध्यान ,आराधना कर रहे है । विश्वास के बिना संसार में काम नही चलता है।विश्वास अपने परिवार पर तथा अन्य बाह्य लोगों पर  करना पडता है । घर के सदस्यों पर, सगे संबंधियों पर, नौकरों पर अफसर द्वारा  अधीनस्थ कर्मचारियों पर विश्वास करना पडता है । परन्तु कई व्यक्ति  स्वार्थवश विश्वासघात भी करते है ।  राजा अपने मंत्री पर विश्वास करके कई महत्वपूर्ण  एवं गुप्त कार्य   उसे सौप देता है ,परन्तु वह मंत्री भी दूसरे राज्य के राजा से मिलकर अपने राज्य पर आक्रमण कराकर राजा को पद से हटवा भी देते है । राजा बुद्धिमान, विश्वासपात्र को मंत्री बनाता है, पर वह मंत्री दूसरो से सांठगांठ  कर खुद भी राजा बन जाता है । इतिहास में ऐसे कई प्रसंग मिलते है । इस प्रकार अनेक प्रकार से कुकर्म, विश्वासघात करके  व्यक्ति  महामोहनीय कर्म का बंध करता है । ऐसे व्यक्ति के हृदय में कठोरता आ जाती है, मन में बुरे भाव आते है । जीव के मन में ऐसे अनिष्ट भाव आने पर वह भ्रष्ट तरीके अपना कर गाढे कर्म बंध बांधता है, घोर पाप करने से भी नही डरता है ।
आपने  आगे कहा कि कुछ लोग इस संसार में अपने आप को ब्रह्मचारी तो कहते है, परन्तु अनैतिक एवं वासना के कार्य करने से भी  नही डरते है । काम भोग की आसक्ति में अनेक प्रकार के कुकृत्य करते है । जितनी व्यक्ति की आसक्ति तीव्र होती है, वह उतने ही गाढ़े और चिकने महामोहनीय कर्म का बंध करता है । ऐसा व्यक्ति संसार में स्वयं को ब्रह्मचारी कह कर लोगों को फुसला कर काम भोग करता रहता है, नाना प्रकार के कार्य करता है । भगवान ने ऐसे व्यक्ति के बारे में कहा है कि वह गायों के समुह में गधा है । ऐसे व्यक्ति अनेक भवों तक मर कर नरक में जाते है तथा दुर्गति के मेहमान बनते हे । जिन व्यक्तियों की विषय आसक्ति ज्यादा होती है, उन्हे धर्म की प्राप्ति कई भवों तक नही मिलती है, वे अंधकार में भटक कर नरक गति में पैदा होते रहते है । ऐसे व्यक्ति को पाप करना अच्छा लगता है, उनके बुरे संस्कार अनंत जन्मों  तक चला करते है । अतः भगवान द्वारा बतायें  मार्ग पर उनकी वाणी पर विश्वास कर भावों को समझ कर इस प्रकार के कृत्यों के दुष्परिणाम समझकर इनसे परे हटने पर महामोहनीय कर्म नही बांधेगा ।
’छः काय जीवों की रक्षा करके मोक्ष की राखी बांधने पर रक्षाबंधन पर्व मनाना सार्थक होगा ।’
धर्मसभा में अणुवत्स पूज्य संयतमुनिजी मसा. ने कहा कि भगवान महावीर स्वामीजी  भ्रमण करते हुए अपने कर्माे का क्षय करने के लिये  अनार्य क्षेत्र में पधारे थे, वे वहां रूकते तो अनार्य लोग उन्हे रूकने नही देते थे , भगा देते थे । भगवान वहां नही रूक कर आगे चल देते थे । वे रुकने के लिए उनकी गरज  खुशामद नही करते थे । भगवान ने गोचरी  के दोष भी बतायें थे ।  साधु को गोचरी लेने के लिए  किसी की चापलुसी नही करना चाहियेे,  प्रशंसा भी नही करना चाहिये । साधु को किसी के पास गिडगिडाहट करने की जरूरत नही है । गोचरी लेने के बाद भी खुशामद  प्रशंसा नही करते है । सामान्यतः संसार में भीख , दान मांगने वाले घरों पर आते है, वे व्यक्ति को खुश करने, सम्पन्न होने जैसी बाते करते है, तथा पैसे भी ले लेते हे, व्यक्ति यदि उसकी मांग की पूर्ति नहीकरता है, तो वह नाराज भी हो जाते हैे । साधु किसी के बंधे हुए नही है, गृहस्थ हर जगह दबा हुआ है, उसे ऐसे काम करना पडते है  ।
आपने आगे कहा कि आज रक्षाबंधन पर्व  के साथ ही पक्खी पर्व भी हेै । पक्खी पर्व बडा है ।  लौकिक त्यौहार खा-पीकर  मनाया जाता है, जबकि लोकोत्तर त्यौहार तप-त्याग से मनाया जाता है । भगवान ने कहा कि जीव ने अनंत भवों में जन्म लिया है , और सभी जीव इस जीव की बहिन पने उत्पन्न हुए है, इसलिये उसकी अनंत बहने हेै,  तो  उसे अनंत जीवों की रक्षा करना  है ।  ’छः काय जीवों की रक्षा करना ही रक्षाबंधन पर्व का संदेश है ।’  लौकिक  क्रिया करते हुए भी  यदि उसमे धर्म को जोड़ दिया जाए तो वह भी धर्म हो जाता है । भाई-बहिन दोनों को इस पर्व पर समभाव रखना चाहिये ।
’लब्धि प्राप्त करने के लिए की गई धर्मआराधना सही नहीं है ।’
आपने आगे कहा कि साधु  लब्धि का उपयोग आवश्यकता  पडने पर ही करते हे।  बिना कारण नही करते हे । छः काय  जीवों की रक्षा करके मोक्ष की राखी बांधने पर रक्षाबंधन पर्व मनाना आज के दिन सार्थक होगा ।
’वीर शासन की तुम हो शान ।  तपस्वी बहना प्यारी ।
तप और तपस्वी है महान ।तुमने नैय्या पार उतारी ।।’
आज श्रीमती राजकुमारी कटारिया  के 33 उपवास, श्रीमती चीना,नेहा घोडावत के 30 उपवास पूर्ण हुए । श्रीमती रश्मि, निधिता रूनवाल , श्रीमती आरती कटारिया ने 31 उपवास, श्री अक्षय गांधी ने 30 उपवास, श्रीमती आजादबहन श्रीमाल ने 16 उपवास, श्रीमती भीनी कटकानी ने 9 उपवास के प्रत्याख्यान  लिये । 10तपस्वी वर्षीतप की आराधना कर रहे हेै । संघ मे सिद्धितप,मेरूतप की आराधना कई तपस्वी कर रहे है । आज रक्षा बंधन  पर अणु जिनेन्द्र बालिका मंडल द्वारा ’’अणुराखी’’ भंडार का सृजन किया  गया ।उसके अनुसार  अपने पसंद की राखी का चयन करके उसके सामने लिखे गए प्रत्याख्यान अनेक श्रावक श्राविका ने ग्रहण किए । आयंबिल, तेला तप की लडी गतिमान हे । आज श्रीमती रश्मि रूनवाल, श्रीमती चीना घोडावत का 30 उपवास पूर्ण होने पर तप की बोली लगा कर बहुमान किया गया । प्रवचन का संकलन सुभाष ललवानी द्वारा किया गया संचालन प्रदीप रूनवाल ने किया ।

Trending