पवित्र गंगाखेडी तीर्थ पर मांनागणेचा प्रतिदिन तीन स्वरूपों में देती है दर्शन, कल्लाजी के दरबार में हर रविवार को गादी के माध्यम से मिलते हैे सभी को आशीर्वाद दूर दूर से श्रद्धालुजन आकर पूरी करते है मन्नत ।
पवित्र गंगाखेडी तीर्थ पर मांनागणेचा प्रतिदिन तीन स्वरूपों में देती है दर्शन, कल्लाजी के दरबार में हर रविवार को गादी के माध्यम से मिलते हैे सभी को आशीर्वाद दूर दूर से श्रद्धालुजन आकर पूरी करते है मन्नत ।
झाबुआ । जिले के पेटलावद तहसील के अन्तर्गत करवड करीब उक 1 किलो मीटर रतलाम मार्ग पर स्थित मां नागणेचा काचमत्कारिक मंदिर न सिर्फ जिलेवासियों के लिये वरन समुचे मालवा के साथ ही गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान आदि तक प्रसिद्ध हे । कहते हेै कि मां नागणेचाजी यहां साक्षात स्वरूप् मे बिराजित है तथा यहांश्रद्धा एवंविश्वास के साथ जिसने ने भी मां नागणेचाजी के साने झोली फैलाई, उसकी शत प्रतिशत मनोकामना पूरी हुई हेै । वनो से आच्छादित रहे रमणीय स्थल गांगाखेडी में एक छोटी सी महाडी पर मां नागणेचा स्वयंभू माता है । करीब 300 बरसों से अधिक समय से यह स्थान गा्रमीण अंचलों की श्रद्धा एवं भक्ति का केन्द्र बना हुआ है । मां नागणेचा मंदिर के जिर्णोद्धार का बिडा पूज्य श्री नारायणसिंह जी राठौर नेमां नागणेचा एवं शेषावतार श्री कल्लाजी महाराज की प्रेरणा एवं संकेतो के माध्यम से करवाया । गादीपति ठा.प्रतापसिंह राठौर ने पूज्य श्री नारायणसिंह जी राठौर के वैकुण्ठवासके पश्चात स्वयं माताजी एवं श्री कल्लाजी महाराज के आशीर्वाद एवं दिये गये संकेतों के बाद उठाया । जब पूज्य श्री नारायणसिंह जी राठौर भोतिक स्वरूप मे विद्यमान थे तब उन्होने ही यहां माता श्री नागणेचाजी के भव्य मंदिर के निर्माण के साथ ही शेषावतार श्री कल्लाजी महाराज का चमत्कारिक स्थान भी मंदिर मे ही निर्माण करवाया । स्वयं कल्लाजी महाराज की यहां उपस्थिति प्रति रविवार के अलावा नवरात्री एवं शुभ मंगल दिवसों पर होती है तथा वर्तमान गादीपति प्रतापसिंह जी राठौर के माध्यम से हर दुखी, पीडित एवं आधी-व्याधि से पीडित लोगों का गादी पर दुख का निवारण करते है । लोगों का कहना है कि यहां आने वाले हर श्रद्धालु की मुराद पुरी हुई है । आडम्बर एवं आर्थिक प्रलोभन से दूर हर किसी के समस्या, दुख दर्द, मानसिक संताप का यहां निवारण होता है । इसी कारण प्रत्येक रविवार को दोपहर में कल्लाजी महाराज साक्षात स्वरूप में अपनी उपस्थिति का आभास देते है । तथा सभी को आशीर्वाद प्रदान करते है । माताजी के मंदिर परिसर में सुंदर वाटिका के निर्माण का कार्य प्रगति पर है, वही यहां पूज्यनारायणसिंह जी राठौर की आकर्षक प्रतिमा भी स्थापित होकर यहां आने वाला हर श्रद्धालु मत्था टेक कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करता है ।
समुचे मध्यप्रदेश ,राजस्थान, के अलावा बाबा महाकांल की नगरी उज्जैन से भी दर्शनार्थी यहां बडी संख्या में आते है । उज्जेैन केे तो सोनी परिवार के श्रद्धालुजन करीब 40 बरसों से परिवार सहित यहां आकर मां नागणेचा एवं कल्ला जी महाराज को मत्था टेकते हे तथा मांताजी- एवं बाबजी का आशीर्वाद प्राप्त करते रहे है । मां नागणेचा जी यहां साक्षात स्वरूप मे बिराजित है तथा दिन में तीन स्वरूपों में श्रद्धालुओं दर्शन लाभ देती है । तथा मनोकामनायें पूरी करती है ।
कल्लाजी महाराज के बारे में गादीपति ठा प्रतापसिंह राठौर का कहना है कि कल्ला जी राठौड़ ऐसे ही एक महामानव थे। उनका जन्म मेड़ता राजपरिवार में आश्विन शुक्ल 8, विक्रम संवत 1601 को हुआ था। इनके पिता मेड़ता के राव जयमल के छोटे भाई आसासिंह थे। भक्तिमती मीराबाई इनकी बुआ थीं। कल्ला जी की रुचि बचपन से सामान्य शिक्षा के साथ ही योगाभ्यास, औषध विज्ञान तथा शस्त्र संचालन में भी थी। प्रसिद्ध योगी भैरवनाथ से इन्होंने योग की शिक्षा पायी। इसी समय मुगल आक्रमणकारी अकबर ने मेड़ता पर हमला किया। राव जयमल के नेतृत्व में आसासिंह तथा कल्ला जी ने अकबर का डटकर मुकाबला किया; पर सफलता न मिलते देख राव जयमल अपने परिवार सहित घेरेबन्दी से निकल कर चित्तौड़ पहुँच गये। राणा उदयसिंह ने उनका स्वागत कर उन्हें बदनौर की जागीर प्रदान की। कल्ला जी को रणढालपुर की जागीर देकर गुजरात की सीमा से लगे क्षेत्र का रक्षक नियुक्त किया। कुछ समय बाद कल्ला जी का विवाह शिवगढ़ के राव कृष्णदास की पुत्री कृष्णा से तय हुआ। द्वाराचार के समय जब उनकी सास आरती उतार रही थी, तभी राणा उदयसिंह का सन्देश मिला कि अकबर ने चित्तौड़ पर हमला कर दिया है, अतः तुरन्त सेना सहित वहाँ पहुँचें। कल्ला जी ने विवाह की औपचारिकता पूरी की तथा पत्नी से शीघ्र लौटने को कहकर चित्तौड़ कूच कर दिया। महाराणा ने जयमल को सेनापति नियुक्त किया था। अकबर की सेना ने चित्तौड़ को चारों ओर से घेर लिया था। मेवाड़ी वीर किले से निकलकर हमला करते और शत्रुओं को हानि पहुँचाकर फिर किले में आ जाते। कई दिनों के संघर्ष के बाद जब क्षत्रिय वीरों की संख्या बहुत कम रह गयी, तो सेनापति जयमल ने निश्चय किया कि अब अन्तिम संघर्ष का समय आ गया है।
उन्होंने सभी सैनिकों को केसरिया बाना पहनने का निर्देश दिया। इस सन्देश का अर्थ स्पष्ट था। 23 फरवरी, 1568 की रात में चित्तौड़ के किले में उपस्थित सभी क्षत्राणियों ने जौहर किया और अगले दिन 24 फरवरी को मेवाड़ी वीर किले के द्वार खोल कर भूखे सिंह की भाँति मुगल सेना पर टूट पड़े। भीषण युद्ध होने लगा। राठौड़ जयमल के पाँव में गोली लगी। उनकी युद्ध करने की तीव्र इच्छा थी; पर उनसे खड़ा नहीं हुआ जा रहा था। कल्ला जी ने यह देखकर जयमल के दोनों हाथों में तलवार देकर उन्हें अपने कन्धे पर बैठा लिया। इसके बाद कल्ला जी ने अपने दोनों हाथों में भी तलवारें ले लीं। चारों तलवारें बिजली की गति से चलने लगीं। मुगल लाशों से धरती पट गयी। अकबर ने यह देखा, तो उसे लगा कि दो सिर और चार हाथ वाला कोई देवता युद्ध कर रहा है। युद्ध में वे दोनों बुरी तरह घायल हो गये। कल्ला जी ने जयमल को नीचे उतारकर उनकी चिकित्सा करनी चाही; पर इसी समय एक शत्रु सैनिक ने पीछे से हमला कर उनका सिर काट दिया। सिर कटने के बाद के बाद भी उनका धड़ बहुत देर तक युद्ध करता रहा। ऐसे वीर धर्मरक्षक कल्लाजी महाराज का साक्षात स्वरूप में आशीर्वाद गांगाखेडी स्थित कल्लाजी धाम एवं मां नागणेचा जी के दरबार में मिलता है ।
गागांखेडी एक शक्तिपीठ के रूप में पूरे अंचल में प्रसिद्ध है तथा नवरात्री में तो मैले जेसे माहोल दिखाई देता हे । कल्लाजी धाम पर प्रतिवर्ष श्रीमद भागवत कथाका आयोजन भी गा्रमीणों के सहयोग से किया जाता है । गांगाखेडी स्थित मा ंनागणेचा शक्तिपीट एवं कल्लाजीधाम पर आगन्तुग श्रद्धालुजनों की सेवा में ठा.मांधतासिंह, डाबडी,ठा.कृष्णपालसिंह जी घुघरी, कैलाश भूरिया झाबुआ, राजेश पाटीदार, कैलाश बद्रीजी सोनी उज्जेैन, नटवरसिंह राणावत मोहनपुरा, राजेशसिंह गौड इन्दौर आदि का सतत सहयोग मिल रहा है।
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