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श्री मोहनखेड़ा महातीर्थ में धर्म के मार्ग पर दिल का और अधर्म के मार्ग पर दिमाग का उपयोग करें: मुनि जीतचन्द्रविजय ~~ मोह कर्म में बंधे रहेगें तब तक मोक्ष की प्राप्ति संभव नहीं: साध्वी हर्षवर्धनाश्री

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श्री मोहनखेड़ा महातीर्थ में धर्म के मार्ग पर दिल का और अधर्म के मार्ग पर दिमाग का उपयोग करें: मुनि जीतचन्द्रविजय ~~
मोह कर्म में बंधे रहेगें तब तक मोक्ष की प्राप्ति संभव नहीं: साध्वी हर्षवर्धनाश्री

राजगढ़ (धार)। श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वे. पेढी ट्रस्ट श्री मोहनखेड़ा महातीर्थ के तत्वाधान में पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व की आराधना चल रही है । दादा गुरुदेव श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की पाट परम्परा के अष्ठम पट्टधर गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न मुनिराज जीतचन्द्रविजयजी म.सा. ने अष्ठान्हिका प्रवचन में कहा कि प्रभु ने हमें मानव शरीर में दिल और दिमाग दो किमती रत्न दिये है । हमें धर्म के मार्ग पर चलना है किसी पर दया करुणा करना है प्रभु की पुजा अर्चना व तप जाप आदि करना है तो उस समय दिल का उपयोग करना है । संसार में यदि जब भी अधर्म के मार्ग पर चलने का अवसर आये तब दिल की बात सुनकर दिमाग का उपयोग करना है । उस अधर्म के मार्ग पर हमारा नुकसान ही होना है और उस नुकसानी से बचने के लिये आत्मा को कलुषित होने से बचने के लिये अपने दिमाग का पूरा उपयोग करना है । संसार स्वार्थ से भरा पड़ा है । हर व्यक्ति यह चाहता है कि उसके स्वार्थ की पूर्ति बिना किसी तकलीफ के हो जाये । जब भी धर्म क्रियाऐं करने का अवसर आये दिल के साथ उसे पूरा करने का प्रयास करना चाहिऐ ।

वरिष्ठ साध्वी श्री संघवणश्रीजी म.सा. की सुशिष्या साध्वी श्री हर्षवर्धनश्रीजी म.सा. ने कहा कि अष्ठान्हिका प्रवचन में श्रावकों के पांच कर्तव्य बताये गये है जिसमें अमारी प्रवर्तन, साधार्मिक भक्ति, अठम तप आदि । जिसके जीवन में गुरु टॉप होता है उसका देव और धर्म स्वतः टॉप हो जाता है । देव, गुरु और धर्म मंे गुरु को मुख्य बताया गया है वही दर्शन, ज्ञान और चारित्र में ज्ञान को शास्त्रों में प्रमुख बताया गया है । जिसके जीवन में उच्च कोटि का ज्ञान होगा । उसका दर्शन भी उच्च कोटि का होगा साथ ही उस जीव का चारित्र भी उच्च कोटि का बन जाया करता है । इस लिये जीवन में गुरु बहुत ही सोच समझकर बनाने की जरुरत होती है । गुरु ही व्यक्ति के जीवन में मार्ग दृष्टा होते है जो उस जीव को देवों से मिलाते है और धर्म का ज्ञान देते है । जिसका मन शुद्ध होगा उसका जीवन शुद्ध हो जाता है । पुण्य कमाना है तो प्रभु से मित्रता करना पड़ेगी नियमित रुप से प्रभु के पास जाकर उनसे रोज चर्चा करने का प्रयास करें । प्रभु प्रतिमा आपकी हर समस्या का समाधान करेगी । संसार में राग, द्वेष और मोह के बंध की गांठ है इसे खोलते ही मोक्ष ही मोक्ष है । जबतक संसार के मोह कर्म में बंधे रहेगें तब तक मोक्ष की प्राप्ति संभव नहीं ।

 

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