रतलाम। डॉ शिवमंगलसिंह सुमन स्मृति शोध संस्थान में आजादी के वर्ष के संदर्भ में सुभद्राकुमारी चौहान का व्यक्तित्व -कृतित्व और स्वाधीनता आंदोलन विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई। प्रमुख वक्ता डा. मंगलेश्वरी जोशी ने कहा कि 1922 के झंडा सत्याग्रह की योजना बनाने वाली एवं उसको सफल कर झंडा फहराने वाली पहली स्वतंत्रता सेनानी सुभद्राकुमारी चौहान थीं। आज उनके अवदान को याद कर हम मातृ भूमि के उस ऋण से उऋण हो रहे हैं।
डॉ. जोशी ने कहा कि जिस मातृ भूमि के लिए कई क्रांतिकारियों ने अपने प्राण न्यौछावर किये । खण्डवा का हरि बावड़ी नामक वह स्थान वीर गाथा गाता है जो सुभद्रा जी का घर था । इस झंडा सत्याग्रह में समूचा खंडवा सुभद्राकुमारी जी के साथ खड़ा था जिसकी गूंज पूरे भारत में थी । दादा माखनलाल चतुर्वेदी जी का साथ और गांधीजी के असहयोग आंदोलन ने सुभद्रा जी के जीवन में क्रांति का शंखनाद किया । सुभद्रा जी भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में तीन बार जेल जाने वाली पहली भारतीय महिला थी ।
रश्मि उपाध्याय ने सुभद्राकुमारी चौहान की हस्ताक्षर कविता खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी का पाठ कर उनके वीरोचित शौर्य पर राष्ट्र के प्रति समर्पण पर प्रकाश डालते हुए क्रांतिकारी खुदीराम बोस की भस्मी रचना पर विचार प्रकट किए । रुपाली पांडे ने सुभद्रा जी के नारी जागरण विषय के केंद्र में नारी शक्ति विषयक अपनी रचना का पाठ किया । वनिता भट्ट ने कहा कि सुभद्रा जी पन्द्रह करोड़ भारतीय महिलाओं के असहयोग आंदोलन में भागीदारी के आह्वान की बात कहते हुए भारत लक्ष्मी लौटाने को रच दे लंका कांड सखी ! रचना का पाठ किया ।
मोनाली पींगे ने भारत के राष्ट्रीय आंदोलन पर असहयोग आंदोलन एवं जलियांवाला हत्याकांड नमक आंदोलन पर अपने विचार प्रकट किए । सीमा राठौर ने सुभद्राकुमारी चौहान के राजनीतिक एवम सामाजिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनकी राष्ट्रीयता एवं शौय पर सम्पूर्ण भारत एवम हिंदी साहित्य को गर्व है ।
डॉ.शोभना तिवारी ने सुभद्राकुमारी चौहान के व्यक्तित्व कृतित्व एवम राष्ट्रीय आंदोलनों में उनके अवदान पर प्रकाश हुए कहा कि मैथिलीशरण गुप्त, बालकृष्ण शर्मा नवीन एवं दादा माखनलाल जी की यशस्वी परंपरा में सुभद्रा जी का नाम अमर है ।
छाया शर्मा ने सुभद्रा जी का जीवन और स्त्री संधर्ष पर अपनी बात कही । सरिता दशोत्तर ने सुभद्राकुमारी के वात्सल्य से वीरतत्व के भाव पर प्रकाश डालते हुए यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता जमुना तीरे रचना का पाठ किया। श्रीमती लीला उपाध्ययय ने कहा कि भारत की नारियों में जो वीरतत्व और शौर्य है वह हमें नई पीढ़ी में भी भरना है । और वह संस्कारों से ही सम्भव है ।
डॉ.उषा व्यास ने अपने उद्बोधन में सुभद्रा जी के राष्ट्रीय सांस्कृतिक पक्ष पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इनके काव्य में ऐतिहासिक पात्रों एवं अवतारों के माध्यम से इन्होंने राष्ट्र जागृति का अलख जगाया है । संचालन डॉ शोभना तिवारी ने किया । आभार रश्मि उपाध्याय ने माना । शरद जोशी”से साभार