कलेक्ट्रेट में टटोली गई, स्वच्छता की नब्ज
रतलाम। किसी शहर, वार्ड, मोहल्ले, कालोनी और कार्यालय आदि को स्वच्छ और सुंदर बनाए रखने के लिए जीभ की बजाय हाथ-पैर चलाना होते है। हमारा पड़ौसी शहर इन्दौर आज इसलिए सफाई में अव्वल आता जा रहा है कि वहां वाल्मिकी जंयती के दूसरे दिन शहर की जनता, अफसर , समाजसेवी और नेता बगैर किसी फोटों वीडिय़ों शूट के लालच के बगैर सडक़ों पर उतर कर सफाई करते है। मगर हमारे यहां हाथ-पैर की बजाय जीभ से सफाई के प्रयास वर्षो से जारी है और इस जुबानी जंग के चलते हम स्वच्छता की दौड़ में शहर को टाँप टेन में भी नही ला पाए है। अब हालात ये है कि शहर में लगी राजा-महाराजाओं और महापुरुषों की प्रतिमाओं के नीचे,आगे,पीछे जाले लटके देखे गए है और इन जालों का निरीक्षण भी किया जा रहा है।
इधर शहर और शासकीय कार्यालय में स्वच्छता को लेकर फिलहाल गंभीर नजर आ रहे कलेक्टर सां. ने आज नए कलेक्ट्रेट भवन के तीनों तलों का अचानक निरीक्षण कर पाया कि यहां की स्वच्छता में लगभग 75 प्रतिशत तो सुधार हुआ है। यानि यहां जीभ कम और हाथ पैर ज्यादा चलाए जाने की कार्रवाई से स्वच्छता और सुंदरता में निखार आ रहा है।
बीते दिनों कलेक्ट्रेट भवन के कुछ हिस्सों में गंदगी पाई जाने के बाद कलेक्टर ने विभाग प्रमुखों से लेकर कर्मचारियों तक पर 500,300 और 100 रुपए की राशि दण्ड स्वरुप वसूलने की तैयारी की थी। इधर बीते बुधवार को शहर की स्वच्छता को लेकर हुई बैठक में भी कलेक्टर ने शहर सहित जिले के तमाम कार्यालय प्रमुखों को हिदायत दे ही दी कि अगर किसी कार्यालय में गंदगी या अस्वच्छता पाई गई तो विभाग प्रमुख से जुर्माना वसूला जाएगा। अफसर-अफसर में भी फर्क होता है।
स्वच्छता को लेकर गंभीर नजर आ रहे कलेक्टर ने गुरुवार को कलेक्ट्रेट के तीनों तलों का निरीक्षण कर सफाई व्यवस्था का जायजा लिया। इस निरीक्षण के दौरान उन्होने यह भी पाया कि जिन विभागों को इस भवन में कमरे या कक्ष अलाँट किए गए है। उन कक्षों का मनमाना उपयोग हो रहा है। .यहां कर्मचारियों ने अपनी सुविधा के मान फैल-फैल कर बैठने की आदत अनुसार जगह घेर रखी है। इन कक्षों में जितनी जगह बनाई जा रही है उस जगह में पांच-सात विभाग के कर्मचारी और बैठ सकते है। इस मामले में अगली कार्रवाई क्या होगी ये तो समय बताएगा। मगर कलेक्ट्रेट के तीनों तले इन दिनों स्वच्छ नजर आने लगे है।
यहां सबसे बड़ी परेशानी तंबाकू, गुटखा और पान खाने वाले खड़ी करते है। इनकी कही भी पिचकारी मारने या छोडऩे की आदत से अंदर से लेकर बाहर तक पीक के निशान देखे जा सकते है। ऐसे में 25 प्रतिशत सफाई व्यवस्था यू भी भंग हो रही है।
बहरहाल शुरुवात कही से भी हो बेहतरी के लिए होना चाहिए। कलेक्ट्रट की स्वच्छता को लेकर पहले कभी ऐसी सुध नही ली गई थी और अब हो रहे प्रयासों से भवन स्वच्छता की और अग्रसर है। शहर की स्वच्छता को लेकर भी हाथ पैर हिलाने की जरुरत महसूस की सकती है। क्यूकि जीभ और मुंह चलाने से कितनी और किस जगह की सफाई हो पाती है ? ये सभी को मालूम है।