हर घर नल…हर नल में जल…यह नारा मप्र की सरकार ने एक दशक पहले दिया था। मुख्यमंत्री के इस ड्रीम प्रोजेक्ट का हश्र ऐसा हुआ कि दस साल में भी योजनाएं पूरी नहीं हुईं। जहां हुई हैं, वहां पानी की सप्लाई नहीं हो रही है। प्रदेशभर में मुख्यमंत्री शहरी पेयजल योजनाओं में डेम, फिल्टर प्लांट, सप्लाई सिस्टम जैसे साधन-संसाधन जुटाने में दो हजार करोड़ रुपए से अधिक खर्च हो गए।
इसके बावजूद पुराने परंपरागत संसाधनों से ही आपूर्ति करना पड़ रही है क्योंकि जो निर्माण किए गए वे तकनीकी रूप से सही नहीं हैं। बताना मुनासिब होगा कि सन 2012 में सीएम शिवराजसिंह चौहान ने विश्व बैंक के मुख्यालय वाशिंगटन से दो हजार करोड़ रुपए का कर्ज इस योजना के लिए लिया था। खास बात यह है कि पानी भले न मिल पाया हो पर नगर परिषदों से कर्ज की वसूली शुरू हो गई है।
इसके तीन कारण
स्थानीय परिस्थितियों के हिसाब से योजनाएं नहीं बनाई गईं
फिल्टर, बैराज, पाइप लाइन जैसे स्ट्रक्चर खड़े किए पर जलस्त्रोत नहीं
ठेकेदारों के भरोसे छोड़ा काम स्थानीय अफसरों ने ध्यान नहीं दिया
रतलाम जिले के पिपलौदा, बड़ावदा और नीमच जिले के अठाना, सरवनिया, नयागांव और सिंगोली में पेयजल योजनाओं पर 48 करोड़ से अधिक खर्च हो गए, लेकिन जलसंकट दूर नहीं हुआ। बड़ावदा इस लापरवाही का सबसे बड़ा उदाहरण है। यहां 7.12 करोड़ की योजना बनी। मलेनी में बैराज बना।
फिल्टर प्लांट के साथ ही पूरे नगर में पाइप लाइन बिछाई लेकिन लाइन बिछाने का काम व नल कनेक्शन तकनीकी रूप से सही नहीं हुए। शिकायतें हुई तो ईओडब्ल्यू ने जांच के बाद क्रियान्वयन एजेंसी मल्टी अर्बन इंफ्रा सर्विस प्राइवेट लिमिटेड समेत तत्कालीन नपाध्यक्ष व सीएमओ सहित 7 लोगों पर एफआईआर दर्ज कराई है।
यह पहले के प्रोजेक्ट हैं, भविष्य में ख्याल रखेंगे
भविष्य में अब जहां भी योजना बनेगी, इन बातों का ख्याल रखेंगे। फिलहाल यह पहले के मामले हैं, डिटेल जानकारी चाहिए तो ईएनसी से बात करें। भरत यादव,आयुक्त, नगरीय प्रशासन विभाग मप्र
ये 6 उदाहरण बता रहे सीएम के ड्रीम प्रोजेक्ट का हाल…काम अधूरा और परिषदों से कर्ज की वसूली शुरू की
नगर परिषद : बड़ावदा
आबादी : 15,000, लागत : 7.12 करोड़
निर्माण पूरा : 2015-16
उद्देश्य: 135 लीटर प्रतिदिन प्रति व्यक्ति मान से 2043 तक जलापूर्ति
मौजूदा हालात : एक दिन छोड़कर 65 लीटर प्रति व्यक्ति पानी दे रहे।
बड़ी समस्या : योजना के तहत नगर में जो सप्लाई सिस्टम डाला गया, वह तकनीकी रूप से गलत है। कई इलाकों में नलों से पानी नहीं जा रहा।
नगर परिषद : नयागांव
आबादी : 7,500, लागत : 9 करोड़
निर्माण पूरा : वर्ष 2018 में स्वीकृति अब तक काम अधूरा। पेयजल टंकी बनी लेकिन पाइप लाइन नहीं डल पाई।
उद्देश्य : 135 लीटर प्रतिदिन प्रति व्यक्ति मान से जलापूर्ति।
मौजूदा हालात : 1 दिन छोड़कर 65 ली. प्रतिदिन प्रति व्यक्ति पानी की सप्लाई।
बड़ी समस्या : गर्मी में कुएं व नलकूप में पानी कम होने पर अधिक समस्या रहती है। लोग पानी को मोहताज हैं।
नगर परिषद : सिंगोली
आबादी : 10,500, लागत : 865.46 लाख
निर्माण पूरा : 2017-18
उद्देश्य : 135 ली.प्रतिदिन प्रति व्यक्ति मान से जलापूर्ति
हालात : एक दिन छोड़कर 70 ली. रोज प्रति व्यक्ति।
बड़ी समस्या : नदी का पानी सिंचाई में उपयोग में आने से मार्च से ही पानी की किल्लत शुरू हो जाती है।
नगर परिषद : सरवनिया
आबादी : 14,000, लागत : 9 करोड़
निर्माण पूरा : 2018 में प्रोजेक्ट स्वीकृत। अभी तक पेयजल लाइन डली है, टंकी व अन्य निर्माण अधूरे हैं।
उद्देश्य : 135 ली.प्रतिदिन प्रति व्यक्ति मान से पानी देना।
हालात : नगर परिषद कुएं व नलकूप से एक दिन छोड़कर 40 से 50 लीटर प्रति व्यक्ति पानी दे रही है।
नगर परिषद : पिपलौदा
आबादी : 9,000, लागत : 4 करोड़
निर्माण पूरा : 2015-16
उद्देश्य : 135 लीटर प्रतिदिन प्रति व्यक्ति मान से 2040 तक जलापूर्ति
हालात : पुराने सिस्टम कुएं-ट्यूबवेल से पानी मिल रहा है। योजना में तो कभी-कभी टेस्टिंग के नाम पर पानी देते हैं।
बड़ी समस्या : बड़ा स्त्रोत नहीं। तालाब किनारे बना दिया संपवेल। मार्च से ही जलसंकट शुरू हो जाता है।
नगर परिषद : अठाना
आबादी : 7,000, लागत : 10.85 करोड़
निर्माण पूरे : योजना 2018 में स्वीकृत हुई जिसे 850 दिन में काम पूरा किया जाना था। योजना आज तक पूरी नहीं हो पाई।
उद्देश्य : 135 लीटर प्रतिदिन प्रति व्यक्ति मान से दिया जाना था
मौजूदा हालात : पुरानी व्यवस्था से कुएं व नलकूप से एक दिन छोड़कर 70 लीटर प्रति व्यक्ति पानी दे रहे हैं।
बड़ी समस्या : गर्मी के दिनों में भी यही व्यवस्था रहती हैं, पर्याप्त पानी नहीं।