महिला हिंसा उन्मूलन दिवस के उपलक्ष में परिचर्चा का आयोजन मंगलवार को~~ विभिन्न संगठनों के प्रयास से रोटरी हाल में शाम 4 बजे आयोजन
रतलाम, ~ विडंबना यह है कि शर्म और समाज में इज्जत की खातिर महिलाएं अत्याचार सहती रहती है और आवाज नहीं उठाती है। ऐसी महिलाओं की आवाज बनने के लिए रतलाम समाज के विभिन्न संगठन एक होकर महिला हिंसा उन्मूलन में कारगर प्रयास करने के लिए तत्पर हैं। इसी को लेकर 13 दिसंबर को शाम 4 बजे रोटरी हाल में परिचर्चा का आयोजन किया गया है। ताकि महिलाओं के लिए योजनाबद्ध तरीके से कार्य किया जा सके और उन्हें हिंसा से बचाया जा सके।
यह बात पद्मश्री डॉ. लीला जोशी ने पत्रकारों से चर्चा में कहीं। प्रेस वार्ता में डॉक्टर जोशी के साथ अर्चना झालानी और सविता तिवारी भी मौजूद थी।
होगी कारगर योजना तैयार
समाजसेवी एवं निर्माता मनोज झालानी के निवास पर हुई प्रेसवार्ता में डॉक्टर जोशी, श्रीमती झालानी और श्रीमती तिवारी ने पत्रकारों को बताया कि महिला हिंसा उन्मूलन विषय पर आयोजित परिचर्चा में पुलिस अधीक्षक अभिषेक तिवारी, सेवानिवृत्त जिला सत्र न्यायाधीश ममता व्यास, शासकीय कन्या महाविद्यालय के प्राचार्य राजकुमार कटारे, महिला एवं बाल विकास विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी रजनीश सिन्हा, चिकित्सक राजकुमारी पुरोहित, लेखक एवं चिंतक आशीष दशोत्तर, अधिवक्ता शबाना खान परिचर्चा में विशेष रूप से मौजूद रहेंगे। लायंस क्लब रतलाम, समर्पण, गोल्ड अभिमा, इनरव्हील क्लब रतलाम गोल्ड, सर्व ब्राह्मण समाज महिला समिति द्वारा परिचर्चा का आयोजन किया जा रहा है। परिचर्चा में निष्कर्ष निकल कर आएगा कि आखिर प्रोजेक्ट को किस प्रकार से शुरू किया जाए, ताकि वह सफलता के पायदान चढ़ता रहे। हमारा उद्देश्य केवल यह नहीं है कि आयोजन शुरू कर दिया और बाद में भूल गए। एक जो उद्देश्य लिया है उसका पूर्ण रूप से क्रियान्वयन हो ताकि महिला हिंसा को समाज में रोका जा सके। इसके लिए एक ही बात सामने आई है कि परिवार को ही संस्कारित करना होगा ताकि वे महिलाओं के प्रति अत्याचार या बलात्कार नहीं करें। सरकार के पास तो केवल नियम कानून कायदे और सुझाव का प्रावधान है लेकिन हमारा मानना है कि हिंसा ही ना हो तो बहुत ही बढ़िया।
शिक्षा की कमी और शर्म के चलते सहती है महिलाएं अत्याचार
डॉक्टर जोशी ने बताया कि शिक्षा की कमी और समाज और शर्म के चलते महिलाएं अत्याचार सहती रहती और उसके खिलाफ आवाज बुलंद नहीं करती। इसीलिए बात मार पिटाई और बलात्कार तक पहुंच जाती है। अत्याचारों से पीड़ित महिलाओं को जागरूक करने के लिए ही सामाजिक सरोकार के तहत योजनाबद्ध तरीके से कार्य किया जाएगा ताकि महिलाएं अपनी ताकत और अपने अधिकारों को समझते हुए अपने ऊपर होने वाली हिंसा को रोके।अन्य महिलाओं को भी जागरूक करें। लिंग आधारित हिंसा किसी के भी साथ, कहीं भी हो सकती है, कुछ महिलाएं और लड़कियां विशेष रूप से कमजोर होती हैं।
कलंक की वजह से नहीं कर पाती है रिपोर्ट
इनरव्हील क्लब की श्रीमती झालानी का कहना है कि महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा हमारी दुनिया में सबसे व्यापक, लगातार और विनाशकारी मानवाधिकारों के उल्लंघन में से एक है। आज भी इसके आसपास की सजा, चुप्पी, कलंक और शर्म की वजह से काफी हद तक रिपोर्ट नहीं की जाती है।
स्वतंत्रता से वंचित करना भी हिंसा
सर्व ब्राह्मण महिला समिति की श्रीमती तिवारी ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा को आवाज देना होगी। महिलाओं को शारीरिक, यौन या महिलाओं को मनोवैज्ञानिक नुकसान या पीड़ा होती है। इस तरह के कृत्यों की धमकी, जबरदस्ती या मनमाने ढंग से स्वतंत्रता से वंचित करना भी हिंसा है। महिलाओं बालिकाओं को अपने पहनावे पर भी ध्यान देना जरूरी है। पहनावा फूहड़ होगा तो घटना हो सकती है।