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पेंशन देना सरकार का सामाजिक दायित्व

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पेंशन देना सरकार का सामाजिक दायित्व

रतलाम । अब चुनावों में सरकारी कर्मचारियों को दी जाने वाली पेंशन एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है। उŸाराखण्ड चुनाव में पुरानी पेंशन व्यवस्था लागु करने के प्रश्न ने वहॉं चुनाव को प्रभावित किया। कांग्रेस ने उनके चुनावी घोषणा पत्र में सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन व्यवस्था फिर से लागु करने का वादा किया था। इस मुद्दे ने वहां के चुनाव को बहुत प्रभावित किया है। याद दिला दंे कि अटल जी की सरकार ने सरकारी कर्मचारी को सेवानिवृत्ति पर दी जाने वाली पेंशन बंद कर दी थी। नई योजना में केवल एक हजार रूपये के करीब प्राप्त होते है। उसके लिए भी कर्मचारी को अनुदान देना पड़ता है। यह बहुत ही अमानवीय निर्णय था। इससे कई सेवानिवृत व्यक्तियों का बुढ़ापा दयनीय हो गया। बुढ़ापे में अपनी आवश्यकताओं और इलाज के लिए पैसे मांगना बहुत अपमान जनक होता है। इस स्थिति से परेशान होकर कई अच्छे पदो पर रहे वरिष्ठजन वृद्धाश्रम में रहने को मजबुर है। बार बार अपमान, जीवन छोटा करता है। वर्तमान सामाजिक परिवेष अमानवीय और असंवेदनशील हो गया है जिसमें बुजर्गाे के लिए जीवन बिताना बहुत कठिन हो गया है।
काम देना प्रत्येक सरकार का सामाजिक दायित्व है। प्रजातंत्र में सरकार का यह महत्वपूर्ण दायित्व होता है रोजगार की व्यवस्था करना। सरकारी नौकरियां रोजगार का महत्वपुर्ण भाग है। प्रजातंत्र में सरकार नागरिको के लिए होती है, नागरिक सरकार के लिए नहीं। अमेरिका के प्रसिद्ध राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने प्रजातंत्र की सबसे अच्छी परिभाषा दी है। उनके अनुसार प्रजातंत्र में नागरिको की, नागरिकों द्वारा, नागरिको के लिए सरकार होती है। विचार करना चाहिए कि क्या हमारा प्रजातंत्र इस परिभाषा पर सही उतरता है।
कर्मचारी सरकार की आवश्यकता है। बिना कर्मचारी कोई भी सरकार नहीं चल सकती। इसके लिए सरकारें आवश्यकतानुसार पद स्वीकृत कर कर्मचारियों की भर्ती करती है। वर्ष दो हजार के पूर्व तक केन्द्र और राज्य सरकारे स्वीकृत पद नियमित भरती थी। इसके बाद सरकारो द्वारा कम से कम कर्मचारियों से काम चलाने की प्रवृत्ति बढ़ती गई। कुछ शातिर दिमागो ने निश्चित वेतन पर नियुक्ति देने की योजना चालू की। इस व्यवस्था में बहुत कम वेतन होता था। प्रारम्भ में यह पांच सौ रूपये ही होता था। यह बहुत ही अमानवीय दृष्टि कोण है जबकि ऐसी योजना लागू करने वाले स्वयं पर देश का लाखो रूपया प्रतिमाह खर्च करते है। ऐसी व्यवस्था आज भी अधिकतर राज्यों में प्रचलित है। अब सरकारें कम वेतन पर कम पद भर कर काम चलाना चाहती हैं।
अटल सरकार द्वारा तब प्रचलित पेंशन व्यवस्था बंद करने पर राज्य सरकारो द्वारा भी प्रचलित पेंशन बंद कर दी गई। सरकारी कर्मचारी की पेशन वर्ष दो हजार पांच से बंद कर दी गई किन्तु संसद सदस्यों और विधायकों को दी जाने वाली पेंशन व सुविधांए कम नही की गई। उन्हें केवल पांच वर्ष रहने के बाद ही पेंशन मिल जाती है। साथ ही यदि कोई व्यक्ति विधायक और सांसद रहा हो तो उन्हें दो पेंशन मिलती है। अन्य सुविधांए अलग। इसे कम या समाप्त करने की हिम्मत किसी सरकार की नहीं हुई। इस सम्बन्ध में एक जनहित याचिका सर्वाेच्च न्यायालय में लंबित है।
वर्तमान केन्द्र सरकार का रूख भी अमानवीय है। वह नियमित नियुक्ति देना ही नहीं चाहती। केवल रेल्वे में ही लाखो पद खाली है। प्रतिमाह सेवानिवृŸिा से खाली पदो की संख्या बढ़ती जाती है। यही स्थिति अधिकतर विभागो की है। राज्य सरकारें भी केन्द्र की नकल करती हैं। जब सरकारी नौकरी की मांग युवाओं द्वारा की जाती है तो उन्हें ठेला लगाने की सलाह दी जाती है। सरकार कहती है- हम ठेला लगाने के लिए लोन दे रहे है। असंख्य ठेले लग गये तो क्या स्थिति होगी? सरकार चलाने वालो को पता ही नहीं के बैंक में लोन के लिए कितने चक्कर लगाने पड़ते है। शिक्षा लोन भी बहुत कठिनाई से मिलता है। उसका ब्याज दर भी बहुत अधिक है। सरकार में जाने के बाद आमजन की तकलीफे भुल जाना आम बात है।
अब पुरानी पेंशन चुनावी मुद्दा बन गया है । उत्तराखण्ड के चुनाव में पुरानी पेंशन भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा। वहां की कांग्रेस सरकार पुरानी पेंशन लागु करने जा रही है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने भी पुरानी पेंशन चालु करने की घोषणा कर दी है। आशा है अन्य राज्य सरकारे भी यही निर्णय लेंगी । किन्तु केन्द्र सरकार के दृष्टिकोण में परिवर्तन नहीं आने वाला। कल ही संसद में बताया गया कि पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल करने का इरादा सरकार का नहीं है। यद्यपि केन्द्र सरकार ने समाजहित की कई योजनाएं चला रखी है किन्तु सरकारी कर्मचारियों के प्रति उसका दृष्टिकोण अमानवीय है। सेना में अग्निवीर योजना भी इसीलिए लागु की गई ताकि पेंशन ना देना पड़े।
केन्द्र एवं राज्य सरकारें अस्सी करोड़ गरीबों के लिए कई योजनांए चलाती है। करना भी चाहिए। पेंशन देना भी सरकार का एक सामाजिक दायित्व है। यह कोई उपकार नहीं, नैतिक उत्तरदायित्व है। चालीस वर्ष की सेवा के बाद कर्मचारी के लिए सम्मानजनक जीवन व्यतित करने की व्यवस्था ना करना अमानवीय और अनैतिक है। बहुमत का दुरूपयोग नहीं किया जाना चाहिए। आने वाले चुनावो में यह निश्चित ही एक महत्वपूर्ण मूद्दा बनने जा रहा है। देश को मजबुत करने के प्रयासों को बढ़ चढ़ कर बताया जाता है किन्तु मध्यम वर्ग के प्रति सरकार का दृष्टिकोण मानवीय नहीं है। टेैेक्स देने में भी मध्यम वर्ग आगे परन्तु उसको सुविधांए देने में सरकारे बहुत ही कठोर। केन्द्र सरकार के अनुसार ही राज्यों की सरकारें चलती है। यह अच्छी बात है कि कुछ राज्य सरकारें पुरानी पेंशन व्यवस्था लागु करने जा रही है। रामजी केन्द्र सरकार को सद्बुद्धि प्रदान करें। ्–प्रो.डी.के.शर्मा 47,राजपूत बोर्डिंग कॉलोनी रतलाम (म.प्र.)

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