अव्यवस्थाओं के बीच मनी मामाजी की 24 वीं पुण्यतिथि। न कोई स्मारक न ही कोई सुविधा
पेटलावद। आदिवासियों के मसीहा मामा बालश्वर दयाल की 24 वीं पुण्यतिथि पर श्रद्वालुओं का मेला लगा। मामा जी के अनुयायीयों ने उनके बामनिया स्थित उनके आश्रम में पहुंच कर मामा जी को श्रद्वांजलि अर्पित की। मामाजी के अनुयायी हर वर्ष 26 दिसंबर को इस स्थान पर हजारों की संख्या में एकत्रीत हो कर मामाजी के प्रति अपनी सच्ची श्रद्वा प्रदर्शीत करते है। सच्चें अनुयायी 24 वर्षो के बाद भी मामाजी को नहीं भूले। पर बडे नेता और प्रशासन मामाजी को भूल गया। उनके किये गये कार्यो का भी अनुसरण नहीं कर रहे और न ही उनके अनुयायीयों के लिए किसी प्रकार की कोई व्यवस्था कर रहे है। मामाजी को नमन करने आए श्रद्वालु तीन दिनों से अंधेरे में व प्रशासन की बिना कोई व्यवस्था के मामाजी के प्रति अपना अपनत्व प्रकट कर रहे है। श्रद्वालु न तो किसी से कोई शिकायत करते है न ही किसी प्रकार का कोई विवाद करते है। किंतु प्रशासन और बामनिया ग्राम पंचायत के लिए शर्म का विषय है कि उनके ग्राम में इतनी बडी संख्या में अनुयायी आते है और उनके लिए कोई व्यवस्था नहीं जुटा पाते है। आज का दिन उस मसिहा का दिन है जिसने जीवनभर समाज के उपेक्षित,गरीब वर्ग और आदिवासियों के उत्थान के लिए न केवल संघर्ष किया बल्कि उनके बीच ही रहकर उन्हीं की तरह जीवन यापन भी किया और जीवन के अंतिम क्षण एक कुटिया में बिताए। यह कुटिया आज भी यह बताती है कि मामाजी ने अपनी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं रखा। क्षेत्र सहित गुजरात,राजस्थान के कई क्षेत्रों में मामाजी को भगवान की तरह पुजा जाता है। और आज बामनिया में आस्था का सैलाब देखने को मिला। कोई पैदल तो कोई अपने वाहन से या किसी बस से मामाजी को श्रद्वांजलि देने के लिए कुटिया व समाधि स्थल पर पहुंचे। मामाजी की तस्वीरे भी लोगों ने अपने घरों में भगवान के रूप में लगा रखी है। आज भी उनकी समाधि स्थल पर फुलों का हुजुम लगता है। वहीं नारियल व अगरबत्ती का पहाड भी लग जाता है।
कई घोषणाएं हुई पर अमल नहीं। मामाजी के जीते जी और मृत्यु के पश्चात भी कई बडे नेता चुनावी दोर के समय बामनिया आए और उन्होंने कई बडी बडी घोषणाएं कि किंतु आज तक किसी पर भी अमल नहीं हो पाया। किंतु इन बातों से उनके अनुयायीयों को कोई सरोकार नहीं वे तो अपने मसिहा के प्रति अपने श्रद्वा व नतमस्तक होने आते है सैकडों किमी की पैदल यात्रा कडाके की ठंड में कर के आते है और खुले में ही रूक कर चले जाते है। मामाजी के भक्तगण पूरी रात उत्सव के रूप में मनाते हुए पूरी रात नाचते गाते मामाजी के कार्यो का बखान कर उन्हें अपनी सच्ची श्रद्वांजलि अर्पीत करते है।
क्षेत्र का पहला अखबार गोबर निकाला। मामाजी ने इस क्षेत्र का पहला अखबार गोबर के नाम से निकाला और उनका लक्ष्य था कि इस क्षेत्र की समस्याओं को उठाया जाए और जनता को सुविधा दिलाई जाए। किंतु उनके जाने के बाद उनके अखबार की ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया। उनकी प्रेस आज भी जर्जर हालत में है।
राष्ट्रीय स्मारक की कमी। मामाजी की कर्म स्थली बामनिया रही जहां पर उन्होंने अपना पूरा जीवन बिताया किंतु यहां आज तक उनकी याद में न तो कोई स्थान बन पाया नहीं कोई स्मारक बन पाया है। न ही उनकी याद में प्रशासन कोई कार्यक्रम आयोजित करता है। किंतु उनके अनुयायीयों को तारिख याद दिलाने की जरूरत नहीं पडती वह अपने स्वयं के खर्च से यहां आकर खुले में रह कर मामाजी को श्रद्वांजलि अर्पीत कर चले जाते है। मामाजी के अनुयायी सत्यनारायण शर्मा ने प्रशासन से मांग की है कि मामाजी की याद को जिंदा रखने के लिए राष्ट्रीय स्मारक मामाजी की कुटिया पर बनाना चाहिए और उसकी देखरेख प्रशासन को करना चाहिए।
कौन कौन आया।
सोमवार 26 दिसम्बर को मामाजी की पुण्यतिथि पर जयस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हिरालाल अलावा मामाजी की समाधि पर पहुचें और पुष्प अर्पित कर उन्होंने कहा कि हम विधानसभा में इस स्थान के उत्थान के लिए मुद्दा उठायेगें और आवश्यकता पडने पर हम किसी भी प्रकार के सहयोग के लिए तैयार है। भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार संघ एआईजे के जिला अध्यक्ष हरिश राठौड भी श्रद्वांजलि देने पहुंचे वहां पर उन्हें सत्यनारायण शर्मा,साबिर मंसूरी, दिलीप मालवीय व गौरव भंडारी ने मामाजी का साहित्य संघर्षो की कहानी मामाजी की जुबानी भेंट किया। जिस पर श्री राठौड ने कहा कि मामाजी के संघर्ष से पत्रकारों को प्रेरणा लेना चाहिए की उन्होंने उस काल में जब पत्रकारीता करना बडा ही कठीन कार्य था उस समय बामनिया जैसी जगह से एक अखबार निकाल कर नव चेतना का संदेश दिया। इसके साथ ही पूर्व विधायक डॉै.सुनिलम, राज्यसभा सदस्य अनिल हेगेंडे, गोविंद यादव, ओम सूर्यवंशी ,सुरज जयसवाल,शेरूसिंह डामोर आदि अनुयायी विशेष रूप से पहुंचे।