रतलाम ! पिछले 10 सालों में दवा बाजार में बड़ा बदलाव दिखा है। हर घर में जुबां पर जेनेरिक और आयुर्वेद के नाम हैं। जी हां, इन पर जिस तरह लोगों का भरोसा बढ़ा है… ठीक उसी तरह मुनाफे के बाजार ने भी लंबी छलांग ली है। जेनेरिक दवा में नेट रेट और एमआरपी में 700% तक का अंतर है तो वहीं, आयुर्वेद का बाजार खुला है यानी यहां कीमत खुद कंपनियां ही तय कर रही हैं। ड्रग एक्ट के नियम 1940 के हैं, अभी भी यही चल रहे हैं।
बाजार में एमिकासिन इंजेक्शन 21 रु. में, एमआरपी 65 रुपए
जटिल एपेंडिसाइटिस और पेरिटोनिटिस में उपयोग होने वाले 320 रुपए रेट वाले मेरोपनम इंजेक्शन के 2150 रु. तक वसूले जा रहे हैं। ये छूट खुद जेनेरिक दवा निर्माता कंपनी और सरकार के नियमों ने दे रखी है। एमआरपी ही 2150 रु. प्रिंट है। यह मात्र उदाहरण है। ऐसे ही फेफड़ों के संक्रमण से बचाने वाला एमिकासिन इंजेक्शन 21 रु. में मिल जाता है लेकिन एमआरपी 65 रुपए लिखी है। फेफड़ों के संक्रमण के इलाज में उपयोगी 5 रुपए प्रति टैबलेट वाली सिफेक्सिम पर 15 रुपए एमआरपी लिख सप्लाई की जा रही है।
ड्रग कंट्रोल ऑर्डर है। वह जिन दवाओं के लिए है, उनका रेट फिक्स है। बाकी के लिए नियम नहीं हैं। जो दवाएं डीपीसीओ के अंडर आती हैं, वे इनके ज्यादा दाम नहीं रख सकते।
-अजय ठाकुर, ड्रग इंस्पेक्टर।