झाबुआ

आजीविका मिशन से आत्मनिर्भर रेशमा ने पारंपरिक आदिवासी पोशाकें भी बनायी

Published

on

सफलता की कहानी

आज प्रतिमाह 8 हजार से 10 हजार रु तक कमा लेती है
झाबुआ 3 जनवरी, 2023। रानापुर विकासखंड के छोटे से गाँव धामनी कुका की श्रीमती रेशमा अजनार शादी के बाद जब ससुराल में आर्थिक तंगी देखी, तो रेशमा ने परिवार का हाथ बटाने का निर्णय लिया। अपने संघर्ष कहानी की सुनाते हुए रेशमा कहती है कि वह सिर्फ 15 साल की थी जब उनकी शादी हुई, 10 वी की परीक्षा देने के बाद माता-पिता ने शादी करा दी थी। ससुराल में आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण वे अपने पति के साथ मजदूरी करती थी। वह एक आम गृहीणी की तरह अपना जीवनयापन कर रही थी, पर वे आगे पढ़ना चाहती थी। जब उन्होंने अपने पति को बताया कि वह अपनी आगे की पढ़ाई फिर से शुरू करना चाहती थी, तो परिवार ने उसका भरपूर सहयोग किया। वह पढाई के साथ-साथ मजदूरी भी करती थी। सन 2015 में मध्यप्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के मार्गदर्शन से उन्होने लक्ष्मी महिला बचत समूह का गठन किया। पढ़ी लिखी होने के वजह से आजीविका मिशन में उन्हें बैंक मित्र के रूप में काम मिला । आजीविका मिशन से जुड़कर कर जब रेशमा को समूह की कार्यप्रणाली व आजीविका मिशन के कार्य करने की रूपरेखा समझ आई, तब उन्होंने अपने ही गाँव में 5 समूह गठित किये, रेशमा चाहती थी की गाँव की सभी गरीब महिलाए समूह से जुड़े और गाँव का सामाजिक व आर्थिक विकास किया। ग्राम संगठन से 15 हजार रु का ऋण लेकर घर के एक कमरे को दूकान की तरह इस्तेमाल किया। रेशमा की दूकान धीरे-धीरे गाँव के आसपास के इलाको में प्रसिद्ध हो गई, त्यौहार के समय रेशमा की ग्राहकी बढ़ जाती, भगोरिया उत्सव से पूर्व रेशमा ने पारंपरिक आदिवासी पोशाकें भी बनायीं, सिलाई करके रेशमा आज प्रतिमाह 8 हजार से 10 हजार रु तक कमा लेती है। आसपास की कुछ महिलाए भी रेशमा से सिलाई सीखने आती है। आत्मनिर्भर होने की दिशा में आजीविका मिशन के योगदान के साथ साथ रेशमा की दृढ़ इच्छा शक्ति मेहनत और सीखने की लगन भी है। रेशमा कहती है कि एक समय था जब वे स्वयं मजदुर की तरह काम करके कुछ पैसे जुटा पाती थी। आजीविका मिशन के मार्गदर्शन से आज वे अपना स्वरोजगार शुरू कर पाई है वे राणापुर में एक बुटीक खोलना चाहती है और अन्य माहिलाओ को भी सिलाई प्रशिक्षण दे कर आत्मनिर्भर बनाना चाहती है ।

Trending