झाबुआ

सुदामा जी की तरह अनुकूल तथा प्रतिकूल दोनों ही परिस्थितियों में भगवान की कृपा का अनुभव करना चाहिए- …पण्डित वीरेन्द्र परसाई

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झाबुआ से राजेंद्र सोनी की रिपोर्ट……

21 कुण्डीय महायज्ञ में सैकडो श्रद्धालुओं ने दी आहूतिया
आज विव पंचायत प्रतिष्ठा,कलारोहण एवं भागवत कथा की पूर्णाहूति होगी
झाबुआ । जहा आस्था एवं भक्ति का समागन हो जाता है वहां अभिठ की प्राप्ति होती ही है।भगवान श्रीकृण एवं सुदामा जी की मित्रता स्वार्थ से रहित होकर परस्पर मैत्री भाव को अनुपम उदाहरण है।जब भी हम आदर्श मित्रता की बात करते हैं, सुदामा और श्री ष्ण का प्रेम स्मरण हो आता है। सुदामा नाम ब्राह्मण, भगवान श्री कृष्ण के परम मित्र थे। वे बड़े ज्ञानी, विषयों से विरक्त, शांतचित्त तथा जितेन्द्रिय थे। वे गृहस्थी होकर भी किसी प्रकार का संग्रह परिग्रह न करके प्रारब्ध के अनुसार जो भी मिल जाता उ सुदामा जी की तरह अनुकूल तथा प्रतिकूल दोनों ही परिस्थितियों में भगवान की पा का अनुभव करना चाहिएसी में सन्तुष्ट रहते थे। उनके वस्त्र फटे पुराने थे। उनकी पत्नी के वस्त्र भी वैसे ही थे। उनकी पत्नी का नाम सुशीला था। नाम के अनुसार वह शीलवती भी थीं। वह दोनों भिक्षा मांगकर लाते और उसे ही खाते लेकिन यह बहुत दिन तक नहीं चल सका। कुछ वर्षों के बाद सुशीला इतनी कमजोर हो गईं कि चलने फिरने में उनका शरीर कांपने लगता। तब सुशीला का धैर्य थोड़ा कम हुआ और उन्होंने सुदामा जी से प्रार्थना की कि वह अपने बचपन के मित्र श्री ष्ण के पास जाएँ, वे शरणागतवत्सल हैं। यदि अपनी स्थिति से उनको परिचय कराएगें तो, वह अवश्य ही हमारी मदद करेंगे। ऐसा सुनकर वह अपनी पत्नी से बोले यदि कोई भेंट देने योग्य वस्तु है तो दे दो, तब सुशीला ने पड़ोस के घर से चार मुठ्ठी तन्दुल माँगे और अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर उसमें बांध कर दे दिए। द्वारिका पहूचने के बाद मित्र सुदामा की श्रीकृण द्वारा आत्मीयता से आवभगत एवं उन्हे जो कुछ जिस तरह से दिया वह इस कथा के माध्यम से जनज न के लिये प्रेरणा का विय है कि भगवान पर विवास रखने वाला कभी निरा नही होता है। उक्त बात श्रीनागणेचा मंदिर परिसर में 16 मई से 22 ममई तक चल रही श्रीमद भागवत कथा के अन्तिम दिन पण्डित वीरेन्द्र परसाई रतलाम ने सैकडो श्रद्धालुओं को भागवत कथा श्रवण करतो हुए कहा कि हमें सुदामा जी की तरह अनुकूल तथा प्रतिकूल दोनों ही परिस्थितियों में भगवान की पा का अनुभव करना चाहिए। ये ही प्रेमी भक्त का लक्षण है। भगवान अपने भक्त को इतना दे देते हैं कि भक्त उसकी कल्पना भी नहीं कर सकता। जितना भगवान अपने भक्त से प्रेम करते हैं उतना कोई नहीं कर सकता। भगवान ने अपने आँसुओ से सुदामा जी के चरण धोए और मुख से उनके पैर का काँटा निकाला। यह भगवान के अलावा और कौन कर सकता है।
श्री नागणेचा कल्लाजी धाम गांगाखेडी के गादीपति प्रतापसिंह राठौर ने जानकारी देते हुए बताया कि 22 मई को 21 कुण्डीय श्री विणुलक्ष्मी महायज्ञ जो 21 से 23 मई तक चलेगा को विधिव विधान से पण्डित गोपालजी पाठक यज्ञाचार्य के नेतृत्व में संपन्न कराया जारहा है । उज्जेन से पधारे श्री कैला सोनी ने बताया कि प्रतिर्वानुसार इस र्वा भी मा नागणेचा के दरबार मे भव्य उत्सव को आयोजन किया जारहा है । 22 मई बुधवार को महायज्ञ में सैकडो की संख्या में लोगों ने यज्ञ मे आहूतिया अर्पित की । सायंकाल महायज्ञ की पूर्णाहति के अवसर पर झाबुआ विधायक गुमानसिंह डामोर विा रूप से उपस्थित रहे तथा उन्होने मां नागणेचा के दरबार मे मत्था टेका । आज 23 मई को दोपहर 12-30 बजे ज्ञिवपंचायत प्रतिठा, कलारोहण एवं भागवत कथा की पूर्णाहूति होगी तथा दोपहर 1 बजे से भण्डारा प्रसादी का आयोजन होगा ।

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