झाबुआ

स्वयं भगवान भक्त को अपना स्वामी मानने लगते हैं- पूज्य दिव्येशकुमार जी महाराज

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’’बल्लभपुर ना व्हाला श्री नाथजी, श्री गोवर्धन नाथ रे…भजन गीतों पर आध्यात्मिक नृत्य ने दर्शको को बांधे रखा।
मोगरे के फुलो से सजाया गया बडी फुल मंडली मनोरथ- र्दर्शनी के लिये उमडी श्रद्धालुओं की भीड।
झाबुआ । पुष्टिमार्गीय भक्ति स्वतः पूर्ण है। भक्ति के अतिरिक्त भक्त को और किसी बात की आकांक्षा नहीं होती। फिर भी, भक्ति सिद्ध हो जाने पर भक्त को अनायास और अकस्मात अलौकिक सामथ्र्य प्राप्त हो जाता है। स्वयं भगवान भक्त को अपना स्वामी मानने लगते हैं भगवान के साथ एकीकरण तथा सेवा-उपयोगी देह-पुष्टिभक्ति के ये ही फल कहे जा सकते हैं। वस्तुतः सच्ची सेवा तो भक्ति ही है। परन्तु पुष्टिमार्गीय मन्दिरों में सेवा के रूप में बहुत-सा कर्मकाण्ड तथा प्रचुर विधि-विधान विकसित हो गया है। आठ दैनिक सेवाओं का ऊपर उल्लेख किया गया है। इनके अतिरिक्त अनेक व्रतोत्सवों और वर्षोत्सवों के रूप में विशेष ’सेवाएँ’ भी होती रहती हैं। सेवा के अवसरों पर श्रीनाथजी का श्रृंगार किया जाता है उनका मन्दिर सजाया जाता है,उनका वेश-विन्यास होता है,उनकी आरती की जाती है,तरह-तरह के उत्सवों तथा मनोरंजनों का आयोजन होता है। उक्त सार गर्भित प्रवचन पूज्य गोस्वामी दिव्येश कुमारजी ने शुक्रवार सायंकाल पैलेसगार्डन में श्री पुष्टि भक्ति रसपान महोत्सव के दूसरे दिन श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहीं ।

पूज्य श्री आगे कहा कि पुष्टिमार्ग में भगवान के परमानन्दरूप को उपास्य माना गया है। वे सौन्दर्य, आनन्द और रस के आगार हैं। अतः पुष्टि-मार्गीय मन्दिरों की ’’सेवा’’ के विकासक्रम में अनेक कलाओं को प्रोत्साहन मिला है। पाककला पर ही पुष्टिमार्ग में प्रचुर साहित्य तैयार हुआ है और मन्दिरों में भिन्न-भिन्न समयों पर जो भोग तैयार होता है, उसकी प्रशंसा कर सकना कठिन है। वेश-विन्यास, गृह-प्रसाधन, संगीत और काव्य, सभी को पुष्टिमार्गीय तत्त्वावधान और संरक्षण में अभूतपूर्व उन्नति करने का अवसर मिला। प्रत्येक अवसर की आरती के लिए विभिन्न रागों का निर्देश किया गया है, जैसे-मंगल आरती पर भैरव, विभास, रामकली- वीणा, सितार आदि के साथ फिर लगभग 9 बजे श्रृंगार के समय बिलावल मध्यान्ह राजभोग के समय सारंग,अपरान्ह उत्थापन के समय सोरठ,फिर भोग के समय गौड़ी और पूर्वी,उसके अनन्तर यमन और फिर विहाग। अष्टछाप कवियों को इन्हीं अवसरों के लिए प्रतिदिन नये पद रचकर गाने की प्रेरणा मिलती रही होगी। विशेष अवसरों-व्रतोत्सवों आदि के लिए वे विशेष रचना करते होंगे। उन्होने आगे कहा कि गौ चारण गोपियों एवं क्रष्ण के बीच आत्मीय प्रेम का स्वरूप है । जिनका मन गोपालक्रष्ण में लग गया उसे दुसरा कुछ भी अच्छा नही लगता है । क्रष्ण और गोपियों के बीच का प्रेम निष्काम प्रेम ही रहा है । इस अवसर पर उन्होने कहा कि ब्रज निस्साधन भाव का प्रतिक है इसके मालिक पूर्णानंद भगवान श्री क्रष्ण ही है । सेवा करना ही श्रीक्रष्ण का स्वरूप है ।सेवा में प्रभूसेवा, आचार्य सेवा, गुरू सेवा एवं वैष्णव सेवा बताई गई है । झाबुआ जेसे नगर मे इस प्रकार का बृहद आयोजन निश्चित ही इस धर्मधरा के लिये सौभाग्य का क्षण है।

सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने बांधे रखा दर्षको को
पूज्य श्री दिव्येशकुमारजी की उपस्थिति में रानापुर, एवं झाबुआ के बाल कलाकारों एवं महिलाओं द्वारा धार्मिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति करीब एक घंटे तक चली । एक छोटी सी बालिका ने मधुराष्टकं’ ’’अधरम मधुरम, नयनम मधुरम्’’ संस्कृत गीत की प्रस्तुति देकर काफी तालिया बटोरी ।

वही रानापुर हरसौला ग्रुप के बाल-बालिकाओं द्वारा आज वल्लभ पधार्या म्हारे आंगने’ पर आकर्षक नृत्य की प्रस्तुति दी । वही भजन करो भरी जवानी में बुढापा किसने देखा है – गीत पर आर्काक नृत्य प्रस्तुत कर तालिया बटोरी । रानापुर के जय हरसौला ने श्री वल्लभ नी शरणे जई रहिये आनंद मां’’ गीत पर आकर्षक नृत्य प्रस्तुत किया । झाबुआ के सोनू आचार्य ने ’’एक बार क्रष्ण करू तेरी आरती, अधरम मधुरम, मथुराधिपते तथा श्री गोकूल सासरियें जाउं जी आवरण पहिन्या रे अंगे पर सुंदर नृत्य किया ।

मुस्कान सोनी ग्रुप झाबुआ द्वारा म्हारा घर मे बिराजता श्री नाथजी तथा रानापुर ग्रुप नें कन्हैया जब जब रास रचावे, वल्लभपुर ना श्रीनाथ जी श्री गोवर्धननाथ रे… मीठी रस से भरियो री राधा रानी लागे म्हने जमुना जी रो कालो कालो पाणी लागे …प्रस्तुत किया वही विधि एवं सिद्धी ने आज जमुनाजी पधार्या म्हारा दे …ताली पडे तो म्हारा यामजी नी बिजी ताली न हो,,के अलावा आओ सखियों मुझे मेंहदी लगाओं मुझे श्याम सुंदर की दुल्हन बनादो,,,, पर आकर्षक नृत्य ने सभी को आल्हादित किया । कार्यक्रम के अन्त में यमुना महिला मंडल की श्रीमती संगीता शाह एवं चंचला सोनी की टीम द्वारा ’’बल्लभपुर ना व्हाला श्री नाथजी, श्री गोवर्धन नाथ रे… पर ग्रुप डांस प्रस्तुत किया जिसकी पूरे सदन ने करतल ध्वनि कर इसकी प्रषसां की ।

अन्त में आरती एवं प्रसादी के बाद कार्यक्रम का समापन हुआ ।
बडी फुल मंडली मनोरथ के दर्षनों के लिये आज भी रही भीड
श्री गोवर्धननाथ जी हवेली में शयन दर्शन के समय ’’ फुलन की मंडली मनोहर बैठे ’’ गीत के साथ बडी फुल मंडली मनोरथ दर्शन का अलौकिक आयोजन किया गया । पूज्य दिव्येशकुमारजी स्वयं भगवान को पंखा झल रहे थे । मोगरे के फुल से बनाये गये आकर्षक सिंहासन पर भगवान गोवर्धननाथजी,गोपाल जी एवं राधेजी बिराजित थी । आकर्षक झांकी मे बिराजित त्रिप्रतिमाओं को देख कर बृदावन गोकूल की छबि का आभास हो रहा था । करीब एक घंटे से अधिक समय तक इस मनोरथ के दर्शन के लिये कतार बद्ध होकर श्रद्धालुजन अनुशासित तरिके से दर्शन लाभ प्राप्त करते रहे । अन्त में महामंगल आरती दिव्येशकुमारजी द्वारा की गई । आज शनिवार को मंदिर में ब्यावला- विवाह खेल मनोरथ का आयोजन किया जाएगा।

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