झाबुआ के रहने वाले कलाकार रमेश परमार और शांति परमार को संयुक्त रूप से पद्मश्री मिला। परमार दंपत्ति बनाते है आदिवासी गुड़िया । सांसद श्री गुमानसिंह डामोर ने परमार दम्पत्ति को दी आत्मीय बधाईयां ।
झाबुआ के रहने वाले कलाकार रमेश परमार और शांति परमार को संयुक्त रूप से पद्मश्री मिला। परमार दंपत्ति बनाते है आदिवासी गुड़िया । सांसद श्री गुमानसिंह डामोर ने परमार दम्पत्ति को दी आत्मीय बधाईयां ।
झाबुआ् । मध्यप्रदेश की चार हस्तियों को गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्मश्री पुरुस्कार के लिए चुना गया है। इनमें कला के क्षेत्र में झाबुआ के रमेश और शांति परमार भी शामिल हैं। इस पुरुस्कार तक पहुंचने के लिए इनके संघर्ष की लंबी कहानी है। आदिवासी गुड़िया बनाने की शुरुआत शांति परमार ने साल 1993 में की थी। इस काम में बाद में उनके पति भी हाथ बंटाने लगे। झाबुआ के रहने वाले रमेश और शांति परमार। दोनों ने आदिवासी गुड़िया कला पहचान दिलाई। दोनों आदिवासी गुड़िया बनाते हैं। रमेश परमार ने बताया कि आदिवासी गुड़िया निर्माण की शुरुआत मेरी पत्नी शांति परमार ने साल 1993 में की थी। उद्यमिता प्रशिक्षण के बाद उन्होंने यह सोचकर गुड़िया बनाना शुरू कर दिया था कि इससे घर का खर्च चलेगा। अगर काम ठीक ठाक चल निकला, तो यह आजीविका का साधन भी बन सकता है। लेकिन, उनकी यह सोच इतनी आसान नहीं थी। इसकी शुरुआत में ही दिक्कतों का सामना भी करना पड़ा। हम आर्थिक तंगी के चलते गुड़िया बनाने के लिए सामग्री नहीं खरीद पाते थे। मशक्कत के बाद समाधान निकाला कि कच्चा सामान जुगाड़ से जुटाएंगे यानी दर्जी और सिलाई का काम करने वालों से कपड़ों की कतरन मांगेंगे। इसके बाद कच्चे माल की समस्या पर काफी हद तक काबू पा लिया था।
बेचने के लिए करते रहे जद्दोजहद
रमेश परमार बताते हैं कि जब कच्चे सामान की समस्या से छुटकारा मिला तो एक नई समस्या खड़ी हो गई। वह यह कि आखिर इन गुड़िया की मार्केटिंग कैसे करें, बेचे कहां? कई महीनों तक इन्हें बनाते और बेचने के लिए जद्दोजहद करते रहे। आखिरकार हमें इसका रास्ता मिल गया। वह यह कि हमने गुड़िया को बेचने के लिए क्षेत्र में लगने वाले मेलों में जाना शुरू कर दिया। वहां गुड़िया बेचना शुरू किया, तो यह कला लोगों को पसंद आने लगी।
एक जोड़ा बनाने में लगता है घंटे भर का समय
दूसरी ओर, शांति परमार बताती हैं कि आदिवासी गुड़िया बनाने के लिए कपड़ा, तार ,रूई,धागा और कलर की जरूरत होती है। एक गुड़िया का जोड़ा बनाने में घंटे भर का समय लगता है। अलग-अलग साइज की गुड़िया बनाई जाती हैं। इन गुड़िया में जिले की आदिवासी समाज की झलक देखने को मिलती है। किसी गुड़िया के सिर बोहनी (बांस की टोकरी) होती है, तो किसी के सिर पर गठरी। किसी के सिर पर लकड़ियों की भारी। आदिवासी पारंपरिक हथियार तीर-कमान, फालिया, हंसिया,गोफन भी इन गुड़िया के साथ देखे जा सकते हैं।
अब तक 500 महिलाओं को कर चुकी हैं पारंगत
शांति परमार ने इस कला को दूसरों को सीखाने से कभी परहेज नहीं किया। अब तक वह करीब 500 से ज्यादा महिलाओं को इस कला में पारंगत कर चुकी है। यही नहीं दोनों पति-पत्नी अब भी कई जगहों पर उनके प्रशिक्षण देने जाते हैं। साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाली शांति परमार दिन भर इसी काम में लगी रहती हैं। उनका अधिकतर समय उनका झाबुआ से बाहर दिल्ली, अहमदाबाद, भोपाल जैसे बड़े शहरों में लगने वाले शिल्पी मेलों में गुजरता है।
क्या होते हैं पद्म पुरस्कार?
पद्म पुरस्कार भारत के सर्वाेच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक हैं। ये पुरस्कार विभिन्न क्षेत्रों जैसे कला, समाज सेवा, लोक-कार्य, विज्ञान और इंजीनियरिंग, व्यापार और उद्योग, चिकित्सा, साहित्य और शिक्षा, खेल-कूद, सिविल सेवा के लिए दिए जाते हैं। गणतंत्र दिवस पर नामों की घोषणा होती है। मार्च/अप्रैल में राष्ट्रपति भवन में आयोजित होने वाले सम्मान समारोह में राष्ट्रपति ये पुरस्कार देती हैं।
पद्म पुरस्कार तीन कैटेगरी में दिए जाते हैंपद्म विभूषण– असाधारण और विशिष्ट सेवा, पद्म भूषण- उत्कृष्ट कोटि की विशिष्ट सेवा, पद्म श्री- किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट सेवा के लिए दिया जाता है ।
सांसद श्री गुमानसिंह डामोर ने परमार दम्पत्ति को मिले पदमश्री पुरस्कार मिलने पर उन्हे आत्मीय बधाईयां दी है । तथा जिले को पुनः पद्मश्री अवार्ड दिये जाने पर केन्द्र सरकार का आभार व्यक्त किया है ।