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अब पूरी लंका जल के राख होगी…

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जो गलत है वो गलत है, जो सही है वो सही रहेगा, अब दुनिया में सिर्फ सनातन की ही शाख होगी। वामपंथियों ने राम पंथी वाले की पुंछ पर पांव रख दिया है, अब पूरी लंका जल के राख होगी। यह पंक्तियां सुनाकर इंदौर से आए कवि जानी बैरागी ने श्रोताओं में जोश भर दिया। शनिवार की रात बसंत पंचमी गौरव दिवस अन्तर्गत शहर के धानमंंडी रानीजी मंदिर चौराहे पर शनिवार की सर्द बयार में अखिल भारतीय कवि सम्मेलन देर रात तक जमा। ख्यातनाम कवियों ने वीर, देशभक्ति और हास्य रस से ओतप्रोत कविताओं को सुनाकर श्रोताओं को बांधे रखा।

स्वतंत्रता के दीप की लौ कांपती प्रहार से
इंदौर से आए ख्यातमान कवि सत्यनारायण सत्तन ने सर्दरात में श्रोताओं में जोश भरते हुए जैसे ही…स्वतंत्रता के दीप की लौ कांपती प्रहार से, बिका ईमान कौडि़य़ों में स्वार्थ के बाजार से…, गुजर रहा कुकृत्य आज साधना के द्वार से, निकल रही है आह राजघाट की मजार से…,जिनका वक्ष चीर गोलियां स्वयम लजा गई, स्वतंत्रता के डूबते स्वरों को नींद आ गई…।
जयपुर से आए कवि अशोक चारण ने…चाहे मेरी प्रतिमा ना फिर चौराहों पर खड़़ी मिले, चाहे ना किस्मत को आंखों के आंसू की लड़़ी मिले, ये जहरीला घूंट कसम से हंस कर के पी जाऊंगा, मेरी मौत को मिले तिरंगा मर कर भी दी जाऊंगा।

मुंड कटे और रुड लड़े वह माटी है हिन्दुस्तान की…
रतलाम के कवि धमचक मुलथानी ने जहां केसरिया बाना पहन बाजी लगा दी जानकी, जहां गाथा गाई जाती है हाड़ी रानी के शीश दान की। जहां जोहर कर लाज रखी, जिसने रजपूती शान की, मुंड कटे और रुड लड़े वह माटी है हिन्दुस्तान की…।
इंदौर के ही कवियत्री डॉ. भुवन मोहिनी ने एक अधूरी कहानी तो मुझमें भी है, धड़के दिल वो जवानी तो मुझमें भी है, तुम जो छू लो शिवाला बनंू प्रेम का, एक मीरा दीवानी तो मुझमें भी है…।

काश्मीर के जर्रे जर्रे पर अधिकार हमारा है
भीलवाड़ा से आए कवि योगेंद्र शर्मा ने सूर्यवंश की तरुणाई में जागी ज़बर जवानी है, समझौतों में हार गए वह धरती वापल लानी है, काश्मीर के जर्रे जर्रे पर अधिकार हमारा है, भारत मां का मस्तक हमको प्राणों से भी प्यारा है…।
समीपस्थ जिले मंदसौर से कवि मुन्ना बेट्री ने रीति रिवाज ओर संस्कृति से जो तेरी निगाह ना हटती, तो मेरे परिवार की इज्जत भी यू समाज में ना घटती। और आफताब की जगह मां-बाप पर विश्वास किया होता, तो श्रद्धा तेरी लाश भी यू छत्तीस टुकड़ों में ना कटती।
इंदौर के गीतकार अमन अक्षर ने कहा पराजय का नहीं होता है कोई शोर मत कहना जमाने में कहां होते हैं अब चितचोर मत कहना..। मुझे लडऩा है दुनिया से अकेले अब तुम्हारे बिन, अगर मैं हार जाऊं तो मुझे कमजोर मत कहना…।

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