जैन दिवाकर भवन में हुई धर्म सभा:संतों ने कहा- जीवन में दुख हमें जगाने के लिए आता हैं, आदमी खुद सुख-दुख का कर्ता है
जावरा~~उपकार दो प्रकार के होते हैं, एक लौकिक उपकार और लोकोत्तर उपकार। माता-पिता का उपकार, श्रेष्ठी का उपकार लौकिक उपकार होता है, लेकिन गुरु का उपकार लोकोत्तर उपकार है। संसार के सुख को अपना मानता है वह आपका नहीं हैं।यह विचार जैन आचार्य श्री पाश्चचंदजी मसा के आज्ञानुवर्ती तत्व चिंतक सुमतिमुनि जी मसा ने जैन दिवाकर भवन में बुधवार को आयोजित धर्मसभा में कहे। संत ने कहा कि जब तक तुम जागोगे नहीं दुख आता ही रहेगा। दुख आता है। हमें जगाने के लिए आगे बढ़ाने के लिए इसलिए दुख के लिए दूसरों पर दोषारोपण नहीं करना कि तुम्हारे कारण दुखी हूं।आदमी अपने सुख-दुख का कर्ता है। यह संसार है कुछ भी हो सकता है और इसकी शिकायत नहीं करना गुरु भगवनतो का लोकोत्तर उपकार होता है। धर्म में सहयोग करके आगे बढ़ाना अपना तिरस्कार, अपमान जो कर देते हैं। वह भी हमारे उपकारी होते हैं, क्योंकि वह हमें जगा रहे हैं। इससे कर्म निर्जरा नहीं हो रही है सहनशीलता हमारा धर्म है। वह परम उपकारी है, जो अपने घर में आग लगाकर आपके घर में प्रकाश कर रहा है।दूसरा कोई आपका अपमान कर ही नहीं सकता स्वयं को नहीं देखते और दूसरे पर दोष देते हैं। धर्म सभा में श्री जयसुंदर मुनि जी मासा ने कहा सुंदर अवसर मिला हैं। उसका सदुपयोग करना चाहिए। मनुष्य भव दुर्लभता से मिलता है। हमें चिंतन, मनन करना चाहिए कि किस बात को पकड़ना है और किस बात को छोड़ना हैं।मनुष्य भव में जिनवाणी को श्रवण कर अपने जीवन का उद्धार कर लेता है आर्य क्षेत्र, उत्तम कुल मिला हैं। उसकी हमें पहचान होना चाहिए। बुधवार को ही संतों का विहार संत सागर मंदसौर रोड की ओर हुआ। कल ढोढर पहुंचेंगे। धर्मसभा का संचालन श्री संघ के पूर्व महामंत्री सुभाष टुकड़िया ने किया।