15 दिन में भी ठीक नहीं हो रही खांसी, बुखार के मरीज बढ़े~कोरोना के बाद वायरल के चलते बदलाव, अस्पताल में बेड फुल।
रतलाम । मौसम में बदलाव के साथ ही जिला अस्पताल में मरीजों की संख्या बढ़ गई है, लेकिन इस बार सर्दी-खांसी के मरीजों को ज्यादा परेशानी हो रही है। कारण है खांसी का 15-15 दिन तक ठीक नहीं होना। डाक्टर इसे कोविड के बाद हुए बदलाव का असर मान रहे हैं। खास बात यह है कि खांसी में पहले कारगर साबित हुई दवाएं भी अब कई मरीजों के लिए कारगर साबित नहीं हो रही है। मौसमी बदलाव के चलते गले में खराश, बुखार के बाद सूखी खांसी की शिकायत होने लगी है। बच्चों में माइल्ड निमोनिया, पोस्ट वायरल ब्रोन्काइटिस के मामले भी देखे जा रहे हैं।
अधिकांश मरीज, सर्दी, वायरल, खांसी के
हालात यह है कि मंगलवार को मेल, फीमेल मेडिकल वार्ड में 40 बेड भरे हुए थे और कुल 70 मरीज वार्ड में थे। जमीन पर बेड लगाकर मरीजों का उपचार किया जा रहा है। अभी यह स्थिति अगले दो सप्ताह तक बने रहने की संभावना है। मेडिकल कालेज के अस्पताल, जिला अस्पताल व एमसीएच के साथ बाल चिकित्सालय में भी ओपीडी व आइपीडी में मरीजों की संख्या बढ़ गई है। अस्पताल में अधिकांश मरीज सर्दी, वायरल व खांसी से संबंधित ही आ रहे हैं।
धूल व सर्दी से संक्रमण भी वजह
गर्मी व सर्दी के संधिकाल का समय होने से मौसमी बीमारियां फैल रही हैं। इसमें धूल व सर्दी भी संक्रमण की वजह है। डाक्टरों के अनुसार गले में संक्रमण के बाद बुखार व खांसी की समस्या ज्यादा हो रही है। कोरोना संक्रमित हुए लोगों को ज्यादा परेशानी है। उन्हें उपचार में ज्यादा समय लग रहा है।
दवाओं की कमी से परेशानी
जिला अस्पताल व मेडिकल कालेज में मरीज उपचार के लिए आ रहे हैं, लेकिन पर्याप्त दवाईयां नहीं मिलने से परेशानी हो रही है। मेडिकल कालेज दवा वितरण केंद्र के पास ही अमृत मेडिकल स्टोर से मरीजों को दवाईयां खरीदना पड़ती है, हालांकि यहां तय कीमत से 20 प्रतिशत तक छूट देने की व्यवस्था की गई है, लेकिन मरीज इससे असंतुष्ट ही नजर आ रहे हैं। पर्ची में लिखी आधी से अधिक दवाईयां स्टोर में नहीं मिलती और स्टाफ उन दवाओं के आगे राइट का निशान लगाकर मरीजों को लौटा देते हैं।
अभी अस्पताल में मरीजों की संख्या बढ़ गई है। वार्ड़ों में बेड फुल होने पर नीचे बेड लगाकर उपचार दे रहे हैं। खांसी का ट्रैंड भी बदला है। इसे कोरोना के बाद का बदलाव माना जा सकता है। उपचार में सभी दवाईयां दी जा रही है। – डा. आनंद चंदेलकर, सिविल सर्जन