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चमत्कारी रोशनी देखने हुसैन टेकरी पहुंचे 40 हजार लोग:दावा- होली की रात लोबान की खुशबू लेने से रूहानी ताकतें भाग जाती हैं

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चमत्कारी रोशनी देखने हुसैन टेकरी पहुंचे 40 हजार लोग:दावा- होली की रात लोबान की खुशबू लेने से रूहानी ताकतें भाग जाती हैं

उमेश शर्मा,

जावरा~~रतलाम जिले के जावरा का मुस्लिम धार्मिक स्थल हुसैन टेकरी। भले ही ये मुस्लिम समाज का धार्मिक केंद्र है, लेकिन वर्षों से यहां हिंदुओं के त्योहार होली पर विशेष आयोजन होता है। मंगलवार को रात में एक ओर जहां अनेक स्थानों पर होलिका दहन हुआ, वहीं रात 10 बजे से हुसैन टेकरी पर विशेष लोबान (धूप) लेने के लिए हजारों लोग पहुंचे। विशेष लोबान होने के बाद अनेक लोग चमत्कारी रोशनी देखने उमड़े। कुछ श्रद्धालुओं ने कुदरती होली की रोशनी की बात कही, तो कई श्रद्धालु रोशनी देखने के लिए आसमान की ओर टकटकी लगाए रहे, लेकिन उन्हें रोशनी नहीं दिखी।

लोबान लेने और रोशनी देखने के लिए लोगों के आने का सिलसिला 4 दिन पहले से ही शुरू हो गया। रविवार से श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ी और मंगलवार को 40 हजार से अधिक श्रद्धालु यहां पहुंच गए। मंगलवार को शाम 4 बजे भी लोबान (धूप) हुआ। इसमें हजारों लोग शामिल हुए। मप्र के अलावा राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश सहित अनेक राज्यों से भी लोग यहां पहुंचे।

हुसैन टेकरी पर इमाम हुसैन और उनके परिवार के सदस्यों के 6 रोजे हैं। आम दिन में सभी रोजों (धार्मिक स्थान) पर 2 बार लोबान (धूप) होता है, लेकिन होली पर यहां रात 10 बजे से तीसरा विशेष लोबान मिलना शुरू हुआ। वर्षों ये परंपरा जारी है। कोरोना काल के बाद यह दूसरी बार का कार्यक्रम है। पहले केवल रोजों में ही लोबान दिया जाता था, लेकिन हर साल लोगों की संख्या लगातार बढ़ती गई और इसी कारण अब चूल मैदान में लोबान की व्यवस्था की जाती है

शैतानी शक्तियों के खात्मे और रहस्यमयी रोशनी का राज

मुस्लिम धर्मगुरु आबिद हुसैन ने बताया, यहां मान्यता है कि वर्ष में दो बार शैतानी शक्तियों, प्रेतात्माओं का खात्मा होता है। एक चेहल्लुम पर और दूसरा होलिका दहन वाले दिन। होलिका दहन की रात के दिन यहां एक चमत्कारी रोशनी भी दिखती है, जिसे देखने मात्र से बुरी ताकतों, जादू टोने से प्रभावित लोग स्वस्थ्य हो जाते हैं। रात में लोबान के बाद लोग रोजा-ए-टॉप शरीफ से बामनखेड़ी की तरफ जाने वाली सड़क के किनारे खेतों में रोशनी देखने के लिए उमड़ पड़ते हैं। जिनको भी शरीर से रूहानी ताकत निकल जाने का अहसास हो जाता है, वे यहां एक पुराने पेड़ पर कील से उसे ठोक कर नष्ट कर देता है।

हुसैन टेकरी वक्फ प्रबंध कमेटी के कोषाध्यक्ष रफीक शाह ने बताया, कोरोना काल के बाद होली पर ये दूसरा आयोजन है। होली वाले दिन रात्रि को विशेष लोबान लेने से अला-बला, शैतानी ताकतें, बीमारियां व अन्य समस्याएं दूर हो जाती हैं। चमकती रोशनी देखने की भी मान्यता है। प्रशासन के साथ मिलकर सभी व्यवस्थाएं की। मैदान को 4 सेक्टर में बांटकर श्रद्धालुओं को कतार में लोबान दिया। करीब 80 सुविधा घर भी बनवाए। एसडीएम हिमांशु प्रजापति ने बताया कि सभी व्यवस्थाएं कर पर्याप्त पुलिस बल तैनात किया गया।

पेड़ पर ठुकी हैं लाखों कीले

हुसैन टेकरी पर अब्बास अलमदार रोजे के पास ही कुछ पेड़ हैं। कुछ तो केवल तने ही बचे हैं। इन तने और पेड़ पर लाखों कीलें ठुकी हैं। मुस्लिम धर्मगुरु अनवर अली ने बताया, जब शैतानी शक्तियों का फैसला हो जाता है, तो उन्हें कील से इन पेड़ पर ठोंक दिया जाता है। ऐसा मान लिया जाता है कि शैतानी ताकत नष्ट हो गई।

अजीब हरकतें करते दिखते हैं लोग

मुजाहिर (सेवक) मोहम्मद शाह ने बताया, भूत-प्रेत से पीड़ित कोई इंसान जैसे ही रोजे के बाहर बनी जाली के पास आता है, वैसे ही उसका व्यवहार बदल जाता है। किसी की कंपकंपी छूटने लगती है, तो कोई अचानक से चीखने लगता है। इस दौरान लोग नाले में नहाते हैं और कीचड़ लपेटकर कब्र में लेट जाते हैं।

मुस्लिम से ज्यादा हिंदू श्रद्धालु

हुसैन टेकरी वैसे तो मुस्लिम धार्मिक केंद्र हैं, लेकिन यहां आने वाले लोगों में हिंदू समाज के लोगों की संख्या ज्यादा रहती है। होली पर विशेष लोबान और रोशनी देखने के लिए पहुंचे श्रद्धालुओं में हिंदुओं की बड़ी संख्या थी। आगरा से आए अय्यूब अली ने बताया, वे होली पर यहां आते हैं। लोबान के अलावा यहां कुदरती होली जलती है, जो किस्मत वालों को दिखती है। एक बार मुझे भी दिखाई दी। छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले से आईं सुनीता बाई ने बताया, मैं 30 साल से यहां आ रही हूं। मैंने कई बार यहां की चमकती रोशनी देखी। ये होली जलने के बाद दिखाई देती है। बाबा का यह स्थान बेहद चमत्कारिक है। राजस्थान के बारां से आए श्रद्धालु कालू लुहार ने कहा, हम वर्षों से यहां परिवार के साथ आ रहे हैं। मेरी बहन की तबीयत खराब हुई तो इस बार उसे भी लेकर आए। यहां काफी चमत्कार है।

ये है हुसैन टेकरी का इतिहास

110 साल पहले नवाब मोहम्मद इस्माइल अली खां की रियासत में एक बार ढोल ग्यारस और मोहर्रम एक ही दिन पड़ गया। ऐसे में जुलूस निकालने के लिए दोनों समुदाय में तनाव होने लगा। नवाब ने तय किया कि पहले डोल ग्यारस के झूलों का चल समारोह निकाला जाए। इसके बाद मोहर्रम का जुलूस निकाला जाएगा। ऐसे में जावरा में मोहर्रम के जुलूस को आधा-अधूरा ही निकाला गया। मोहर्रम के अगले दिन रोड पर गांव बामनखेडी के पास एक बूढ़ी औरत ने देखा कि ऊंची टेकरी रोशनी से जगमगा रही है और कुछ रूहानी ताकतें वहां वुजू कर मातम मना रही हैं।

इसी तरह का सपना नवाब को भी आया और जब उन्होंने वहां जाकर देखा, तो वहां घोड़ों के टाप के निशान और वुजू किए जाने का प्रमाण मिला। दावा किया गया कि इमाम हुसैन का कुनबा यहां आया था। इसके बाद टेकरी पर रोजे बनाए गए। अभी यहां इमाम हुसैन और उनके परिवार के सदस्यों के 6 रोजे हैं।भास्कर से साभार)

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