झाबुआ

बालिका सशक्तिकरण की दिशा में राजपुत समाज का ऐतिहासिक निर्णय अब बाालिकाओं के जन्म पर भी ढूण्ढ के आयोजन का किया गया श्रीगणेश ।

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बालिका सशक्तिकरण की दिशा में राजपुत समाज का ऐतिहासिक निर्णयअब बाालिकाओं के जन्म पर भी ढूण्ढ के आयोजन का किया गया श्रीगणेश ।
झाबुआ । राजपुत समाज ने इस वर्ष से बालिकाओं की ढुण्ड परम्पराओें का श्रीगणेश कर बालिका सशक्तिकरण की दिशा में एक कदम बढाया है। राजपुत समाज के रविराजसिंह राठौर ने जानकारी देते हुए बताया कि अभी तक राजपुत समाज में जिन परिवारों में पुत्र का जन्म होता है वहां होलिका दहन के बाद ढुण्ढ का आयोजन किया जाने में परम्परा रही है, किन्तु इस बार बालिकाओं के जन्म पर भी ढूण्ढ का आयोजन करने की परिपाटी प्रारंभ करके बालिकाओं के जन्म पर भी इस सामाजिक परम्परा का श्रीगणेश होना निश्चित ही समाज के लिये गौरव का क्षण हुआ है । नगर के विक्रमसिंह चैहान के पुत्र प्रतिकसिंह चैहान के यहां इस वर्ष पुत्री का जन्म हुआ होकर समाज द्वारा लिये गये निर्णय के अनुसार नवजात बालिका के लिये ढंुण्ढ का आयोजन किया गया । जिसमें राजपुत समाज के अध्यक्ष भेरूसिंह सोंलकी की उपस्थिति में बडी संख्या में समाज के पदाधिकारीगण एवं गणमान्यजनों ने इस रस्म अदायगी में अपनी भूमिका का निर्वाह किया । परम्परा के अनुसार ढूंढ़ कई स्थानों पर अलग अलग समय पर होती हैं, हालांकि होलिका दहन के बाद ही नवजात पुत्रों को ढूंढने की रस्म अदा होती है। धुलंडी के दिन वर्ष भर में जन्मे बच्चों की ढूंढ की परम्परा के निर्वहन के साथ ही स्वस्थ जीवन की कामना की जाती है। इससे पूर्व कई कार्यक्रम होते हैं। बच्चे के ननिहाल वाले पहली बार कपड़े व आभूषण लेकर आते है पर्व को लेकर महिलाओं द्वारा घर की साफ सफाई की जाती है।
किवदन्ती के अनुसार प्राचीन काल में पिंगलासुर नाम का राक्षस था, जो नवजात शिशुओं को खा जाता था। रक्षा के लिए गांव के लोग लट्ट लेकर खड़े होने लगे। बाद में यह परम्परा ढूंढोत्सव के रूप में मनाई जाने लगी, जिसमें लट्ट का प्रतीकात्मक डंडा लेकर शिशु के आरोग्य व आयु वृद्धि की कामना की जाती है। ढूंढ हिंदू धर्म को मानने वालों की एक सामाजिक रस्म है. यह बच्चे के जन्म से जुडी हुई है. जब किसी हिंदू परिवार में बच्चे का जन्म होता है तो बच्चे के जन्म के तुरंत बाद जो भी पहली होली आती है तब ढूंढ पूजन की रस्म की जाती है. यह होली से पूर्व आने वाली ग्यारस या होलिका दहन वाले दिन की जाती है.। इस रस्म में नवजात शिशु की माता चुंदरी पीला ओढ़ कर बैठती है. यह पीला या बेस बच्चे के ननिहाल पक्ष से भेजा जाता है. पूजा के लिए सामग्री चावल और ज्वार के फूलिए, सूखे सिंघाड़े, पतासे और बूंदी के लड्डू बच्चे के ननिहाल से आता है।. ननिहाल के अलावा कई स्थानों पर यह सामग्री बच्चे की बुआ के घर से भी लायी जाती है. इसके अलावा बच्चे के लिए सफेद कपडे भेजे जाते हैं।. ढूंढ पूजन के दौरान बच्चे को यही कपडे पहनाए जाते हैं.। हालांकि ऐसी मान्यता है कि घर में किसी बच्चे का जन्म होने पर उसकी ढूंढ करवाई जाती है. लेकिन बदलते सामाजिक सोच के साथ लड़कियों के जन्म पर भी ढूंढ परंपरा निभाने का राजपुत समाज द्वारा निर्णय लेकर इसे क्रियान्वित किया जारहा है। श्री रविराजसिंह राठौर के अनुसार मुझे गर्व है मेरे अपने उस समाज पर जो सदा सभी के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनता आ रहा है । उसी समाज द्वारा नगर मे एक नया इतिहास रचने का क्रम प्रारंभ किया है। राजपुत समाज जहां कभीं वीरांगनाओं ने जन्म लिया, बलिदान दिया और अपने समाज ही नहीं वरन पूरे हिंदू राष्ट्र का गौरव मान सम्मान बढ़ाया, ऐसी ही वीरांगनाओं के सपूत हम हमारा समाज और अन्य समाज उसका अनुसरण करते हुए आज ’’बेटी बढ़ाओ बेटी पढ़ाओ’’ का अनुसरण करते हुए बेटियों को सम्मानित कर रहा है और अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रहा है। ऐसी ही प्रभा ढूंढ की राजपूत समाज में सदियों से चली आ रही है और पहले भी राजपूत समाज में बेटियों की ढूंढ का कार्यक्रम हुआ है। उन्होने कहा कि मेरे अपने परिवार में भी बालिकाओं के जन्म पर ढुण्ढ का आयोजन हुआ है और आज हमें वर्तमान में गौरवान्वित होने का सौभाग्य विक्रम सिंह जी चैहान ने अपनी पोती की ढूंढ का कार्यक्रम रखकर यहां अवसर हमें प्रदान किया । इसके लिए राजपूत समाज ही नहीं अन्य सभी समाज भी बधाई के पात्र हैं । राजपूत समाज बेटे बेटी का भेदभाव मिटाकर राजपूत चैहान परिवार में लड़की होने पर खुशियां मनाते हुए ढूंढ का कार्यक्रम का आयोजन किया गया। नगर में अन्य समाज द्वारा भी बालिका सशक्तिकरण की कडी मे आयोजित इस कार्यक्रम की मुक्त कंठ से प्रसंशा की जारही है।

 

 

 

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