झाबुआ । विश्व आदिवासी दिवस न केवल मानव समाज के एक हिस्से की सभ्यता एवं संस्कृति की विशिष्टता का द्योतक है, बल्कि उसे संरक्षित करने और सम्मान देने के आग्रह का भी सूचक है.। आदिवासी समुदायों की भाषा, जीवन-शैली, पर्यावरण से निकटता और कलाओं को संरक्षित और संवर्धित करने के प्रण के साथ आज यह भी संकल्प लिया जाए कि अपनी आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने में उनके साथ कदम-से-कदम मिला कर चला जाए.। उक्त संदेश विश्व आदिवासी दिवस पर रतलाम झाबुआ के सांसद गुमानसिंह डामोर ने देते हुए कहा कि आज जब हम धूमधाम से विश्व आदिवासी दिवस मना रहे हैं, तब हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि हम आदिवासी-मूलवासी लोगों की दशा और दिशा की ईमानदारी से समीक्षा करें। हम यह देखें कि जो संवैधानिक अधिकार भारतीय संविधान ने हमें दिया है, इसे अपने समाज-राज्य और देश-हित में उपयोग कर पा रहे हैं या नहीं । चाहे जल-जंगल-जमीन पर परंपरागत अधिकार हो, पांचवीं अनुसूची में वर्णित प्रावधान हो, ग्रामसभा का अधिकार हो, सीएनटी, एसपीटी एक्ट के प्रावधान हों, वन अधिकार कानून हो या फिर स्थानीय नीति के प्रावधान हों, । श्री डामोर ने कहा कि समाज के अंदर हो रही घटनाओं पर हमें चिंतन करने की जरूरत है। समाज की समरसता, एकता एवं परस्पर भाई चारे की भावना के साथ हमे देश को आगे बढाने में अपनी एकजुटता प्रदर्शित करना होगी । आदिवासी समाज अब हर क्षेत्र में सतत आगे की ओर कदम बढाता जारहा हे । शिक्षा, एवं स्वास्थ्य के साथ ही रोटी, कपडा,मकान जेसी मूलभूत जरूरते पूरा करने में हम कठोर परिश्रम के साथ समाज को एक नई दिशा दे सकते है । शिक्षा ऐसा कल्पवृक्ष है जिससे हम समाज में अपना स्थान बनाने में कामयाब हो सकते है।समाज में फुट डालने वाले तत्वों से सावधान रह कर सबका साथ सबका विकास एवं सबका विश्वास की भावना के साथ हमे अपने गा्रम, जिले, प्रदेश, एवं देश को आगे बढाने मे ं अपना योगदान देना ही सच्चे अर्थौ में विश्व आदिवासी दिवस का सन्देश होगा ।