ज्यादा ‘मोबाइल’ चलाने वाले हो जाएं सावधान ! 16 से लेकर 35 साल के लोग हो रहे ‘अनिंद्रा’ का शिकार
युवाओं में अनिंद्रा व अवसाद, बढ़ा रहा ग्लूकोमा
रतलाम। मोबाइल से लेकर गजेट्स का लगातार उपयोग इन दिनों युवाओं में ग्लूकोमा की बीमारी को बढ़ा रहा है। चिकित्सकों के अनुसार महारानी राजकुंवर जिला अस्पताल व रतलाम मेडिकल कॉलेज में इस बीमारी के प्रतिदिन तीन से चार मरीज पहुंच रहे हैं। अधिकांश 16 से लेकर 35 वर्ष तक की उम्र के युवा – युवतियां इलाज के लिए पहुंच रहे है।
किसी व्यक्ति के पास के चश्मा का नम्बर बार-बार बदल रहा है, बल्ब के चारों ओर सतरंगी दिखाई देता है, आंखों की रोशनी में कमी आ रही है तो इन लक्षणों को नजरंदाज न करें। मेडिकल अस्पताल के नेत्र रोग विभाग की ओपीडी में प्रतिदिन 2 से 3 ग्लूकोमा पीड़ित पहुंच रहे हैं। जिले में 2.6 से लेकर 4.3 तक ग्लूकोमा के विभिन्न प्रकार के मामले सामने आ रहे हैं।
हर सदस्य की जांच
चिकित्सकों के अनुसार वर्ल्ड ग्लूकोमा सोसायटी ने ग्लूकोमा के कारण अंधेपन के बढ़ते मामलों को देखते हुए निर्णय लिया है कि परिवार में किसी को ग्लूकोमा रहा है, उस परिवार के हर सदस्य की जांच की जाएगी।
ये है लक्षण
– सिर झुकाकर काम करने में दर्द होना
– आंखों की रोशनी में कमी आना
– बल्ब के चारों ओर सतरंगी दिखना
– पास के चश्मे का नंबर बार-बार बदलना
– आंख लाल होना, जी मचलाना, उल्टी होना
– बच्चों में आंख का बड़ा हो जाना
रोशनी जाने का खतरा
ग्लूकोमा की समय रहते पहचान हो जाए और आंखों को ज्यादा नुकसान न पहुंचा हो तो दवाइयों से इलाज किया जा सकता है। ज्यादातर मामलों में मरीज का उपचार सर्जरी ही होती है।
– डॉ. आनंद चंदेलकर, सिविल सर्जन व एमडी मेडिसिन
ये भी जानिए
– 2-3 पीड़ित प्रतिदिन औसतन पहुंचते हैं ओपीडी में
– 50-60 प्रतिशत मरीजों में सर्जरी करना पड़ती है
– 40 प्रतिशत मरीज दवाई से नियंत्रित किए रहते हैं( पत्रिका से साभार)