झाबुआ

गुडी पडवा और चैत्र नवरात्री का आध्यात्मिक महत्व है- पण्डित द्विजेन्द्र व्यास 22 मार्च से नव संवत्सर 2080 एवं चैत्र नवरात्री की होगी शुरूआत

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गुडी पडवा और चैत्र नवरात्री का आध्यात्मिक महत्व है- पण्डित द्विजेन्द्र व्यास
22 मार्च से नव संवत्सर 2080 एवं चैत्र नवरात्री की होगी शुरूआत

झाबुआ । हिंदू धर्म में कई तरह के धार्मिक पर्व और त्योहार मनाए जाते हैं। इन्हीं उत्सवों में से एक है गुड़ी पड़वा। पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गुड़ी पड़वा मनाया जाता है। इसी दिन से चैत्र नवरात्रि की भी शुरुआत होती है। गुड़ी पड़वा का अर्थ होता है विजय का पताका। गुड़ी अर्थात विजय पताका और प्रतिपदा तिथि को पड़वा कहा जाता है। इस साल गुड़ी पड़वा 22 मार्च 2023 अर्थावत संवत 2080 की चैत्र प्रतिपदा को है। उक्त जानकारी देते हुए ज्चोतिष शिरोमणी पण्डित द्विजेन्द्र व्यास ने बताया कि गुड़ी पड़वा को मनाने के पीछे कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि इस दिन ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि की रचना की थी। इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि गुड़ी पड़वा के ही दिन सतयुग की भी शुरुआत हुई थी। इसलिए इस दिन विशेष पूजा अर्चना की जाती है। वहीं कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार गुड़ी पड़वा के दिन भगवान श्रीराम ने बालि का वध कर दक्षिण भारत के लोगों को उसके आतंक से मुक्त कराया था

श्री व्यास ने बताया कि 22 मार्च चैत्र माह की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 21 मार्च को रात 10 बजकर 52 मिनट से होगी। अगले दिन 22 मार्च 2023 को रात 8 बजकर 20 मिनट पर इस तिथि का समापन भी होगा। उदया तिथि के अनुसार नवरात्रि की शुरुआत 22 मार्च 2023 से होगी। इसी दिन गुड़ी पड़वा का पर्व भी मनाया जाएगा। उन्होने बताया कि गुड़ी पड़वा को हिंदू नववर्ष की शुरूआत माना जाता है। भारत के विभिन्न राज्यों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इस पर्व को कर्नाटक में युगादि, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में उगादी के नाम से जाना जाता है। वहीं कश्मीर में ‘नवरेह’, मणिपुर में सजिबु नोंगमा पानबा कहा जाता है। इसके अलावा गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय के लोग इसे संवत्सर पड़वो का पर्व मनाते हैं। साथ ही सिंधि समुदाय के लोग इस दिन चेती चंड का पर्व मनाते हैं। मान्यता है कि वीर मराठा छत्रपति शिवाजी जी ने युद्ध जीतने के बाद सबसे पहले गुड़ी पड़वा का पर्व मनाया था। इसी के बाद मराठी लोग प्रत्येक वर्ष इस परंपरा का पालन करते हैं। इस दिन को लोग विजय दिवस के रूप में मनाते हैं। इस खुशी के मौके पर घरों के बाहर रंगोली बनाई जाती है और विजय पताला लहराकर जश्न मनया जाता है।
उन्होने बताया कि इस साल चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 22 मार्च 2023 से हो रही है, जो कि 30 मार्च तक रहेगी। हिंदू धर्म में नवरात्रि के पर्व का विशेष महत्व होता है। नवरात्रि के इन नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, मां महागौरी और मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। नवरात्रि में माता रानी के भक्त उपवास रहकर विधि पूर्वक पूजा करते हैं। अपनी श्रद्धा और शक्ति के अनुसार कुछ लोग पूरे नौ दिन, तो वहीं कुछ लोग पहले और आखिरी दिन व्रत रखते हैं। नवरात्रि के ये पावन दिन मां अंबे के भक्तों के लिए बेहद खास होते हैं। इस दौरान माता रानी के भक्त उन्हें प्रसन्न करने के लिए विधि-विधान से पूजा करते हैं। लेकिन शास्त्रों में कुछ ऐसी चिजों के बारे में बताया गया है, जिनका इस्तेमाल नवरात्रि पूजा में बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए।

श्री व्यास ने बताया कि नवरात्रि में मां दुर्गा को नवरात्रि में कलश स्थापना के लिए नारियल का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन ध्यान रहे कि पूजा में या कलश स्थापना के लिए टूटे हुए नारियल का इस्तेमाल न करें। पूजा के लिए जटा वाले नारियल ही इस्तेमाल करना चाहिए। मां दुर्गा को लाल रंग के पुष्प बेहद प्रिय हैं। लाल रंग के फूलों के अलावा आप नवरात्रि में मां दुर्गा पूजा में कमल, गुड़हल, गुलाब, गेंदा के फूल चढ़ा सकते हैं। लेकिन इस दौरान ध्यान रखें कि कनेर, धतूरा और मदार के पुष्प भूल से भी न चढ़ाएं। किसी भी प्रकार की पूजा में अक्षत यानी चावल का स्थान प्रमुख होता है। लेकिन नवरात्र पूजन में अक्षत के प्रयोग में सावधानी बरतनी चाहिए। अक्षत चढ़ाते समय इस बात का ध्यान जरूर रखें कि चावल के दाने टूटे यानी खंडित न हों। पूजा में खंडित चावल का इस्तेमाल शुभ नहीं माना जाता है। नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के भोग लगाए जाते हैं। लेकिन लहसुन-प्याज से बनी चीजों का भोग माता रानी को गलती से भी न लगाएं। ऐसा करना शुभ नहीं होता है, क्योंकि लहसुन-प्याज को तामसिक प्रवृत्ति का भोज्य पदार्थ माना जाता है।

श्री व्यास के अनुसार नवरात्रि हिंदुओं का सबसे प्रमुख त्योहार है। नवरात्रि साल में नवरात्रि चार बार आती है- चैत्र, आषाढ़, अश्विन और माघ के महीनों में। लेकिन मुख्य रूप से चैत्र और अश्विन महीने की नवरात्रि लोकप्रिय है। नवरात्रि के नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के आठवें दिन अष्टमी और नौवें दिन रामनवमी मनाई जाती है। अश्विन महीने में दशहरा मनाया जाता हैं। नवरात्रि पवित्रता, शक्ति और दिव्यता का प्रतीक हैं। श्नवरात्रिश् शब्द का अर्थ है श्नौ रातेंश्। यह वर्ष का सबसे लंबा हिंदू त्योहार है, जो नौ रातों और दस दिनों तक चलता है।

नवरात्रि देवी दुर्गा के नौ अवतारों या स्वरूपों की पूजा करने का सबसे प्रसिद्ध हिंदू त्योहार है, जिसे शक्ति या देवी के रूप में भी जाना जाता है। यह त्योहार एक बार वसंत के दौरान चैत्र नवरात्रि और शरद ऋतु के दौरान शरद नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। शरद नवरात्रि अश्विन के महीने के दौरान मनाई जाती है, जो आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर में आती है। नवरात्रि अत्यंत भक्ति के साथ मनाया जाता है और चैत्र नवरात्रि के पहले दिन को हिंदू नव वर्ष की शुरुआत के रूप में भी माना जाता है। यह देवी दुर्गा को समर्पित है, जिन्हें नव दुर्गा के रूप में नौ दिव्य रूपों में पूजा जाता है। दुनिया भर में लोग इन दिनों के दौरान देवी की पूजा करते हैं। लोग छोटी कन्याओं के पैर छूते हैं और उन्हें देवी की तरह मानते हैं। नवरात्रि हिंदू धर्म का एक बहुत ही पवित्र त्योहार है।

 

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