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रतलाम में आदिवासी युवती महिलाओं को स्वावलंबी बना बैंकिंग से करा रही परिचित

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रतलाम में आदिवासी युवती महिलाओं को स्वावलंबी बना बैंकिंग से करा रही परिचित

 रतलाम। लोकतंत्र की सार्थकता इसी में है कि समाज के निचले पायदान पर बैठे नागरिकों का सशक्तीकरण और उत्थान हो। सरकार की तरफ से होने वाले प्रयासों के साथ जब निजी प्रयत्न जुड़ते हैं तो फलाफल बेहतर होता है। नारी सशक्तीकरण के माध्यम से ऐसा ही उदाहरण प्रस्तुत कर रही हैं रतलाम जिले के आदिवासी समाज की युवती झितरी मईड़ा। वह आदिवासी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और आर्थिक मोर्चे पर मजबूत करने में जुटी हैं। आदिवासी गांवों तक पहुंचकर झितरी महिलाओं को बैंक में राशि जमा करवाना और खातों से लेनदेन करना भी सिखा रही हैं।

प्रशिक्षण भी देतीं

जिस मध्य प्रदेश के डिंडौरी जिले में मतांतरण की खबरें सामने आ रही हैं, उसी के रतलाम जिले में आदिवासियों के आर्थिक व शैक्षिक सशक्तीकरण का झितरी का प्रयास प्रशंसनीय है। इस अभियान में झितरी अब तक 800 महिला स्वसहायता समूहों का गठन करवा चुकी हैं। वह समूहों की सदस्यों को प्रशिक्षण भी देती हैं। झितरी के अनुसार स्वसहायता समूह में 10 से 15 महिलाएं होती हैं। उन्हें अपनी पसंद के काम जैसे सिलाई, कढ़ाई, किराना दुकान आदि के लिए समूह बनवाकर सरकारी योजना के अंतर्गत आर्थिक सहायता भी दिलाई जाती है। इससे महिलाओं की आय के साधन बने हैं। बैंकिंग कार्य समझने के बाद शासन की योजनाओं का लाभ लेने में भी समस्या नहीं आती है।

शिक्षा की भी चिंता

झितरी आदिवासी समाज की बच्चियों के शिक्षण को लेकर भी सक्रिय हैं। नांदी फाउंडेशन से सहयोग से वह हर दिन कक्षा एक से आठ तक की बालिकाओं को डिजिटली पढ़ाई भी करवाती हैं। झितरी कहती हैं कि आदिवासी समाज में बालिकाओं की शिक्षा पर कम ध्यान दिया जाता है। मुझे भी पढ़ाई को लेकर समस्याओं का सामना करना पड़ा। हम यही समझाने का प्रयास करते हैं कि बालिका की स्कूली शिक्षा तो पूरी होनी ही चाहिए। आदिवासी अंचल में पौधारोपण, जलसंरक्षण, गोमूत्र के उपयोग, जैविक खेती के लाभ से भी झितरी मईड़ा ग्रामीणों को अवगत कराती हैं।

जीवन की विषमताओं से नहीं डिगीं

तीन वर्ष की उम्र में पिता कोदर मईड़ा के निधन के बाद आर्थिक विषमताओं के बीच भी झितरी ने अथक प्रयास कर अपनी शिक्षा जारी रखी। रतलाम जिले की रावटी तहसील के गांव मोलावा की निवासी झितरी के परिवार में 60 वर्षीय मां रतनबाई और दो भाई हैं। स्कूली शिक्षा के बाद वर्ष 2018 में झितरी ने बैचलर आफ सोशल वर्क (बीएसडब्ल्यू) की पढ़ाई पूरी की और अब मुख्यमंत्री सामुदायिक नेतृत्व कार्यक्रम में एमएसडब्ल्यू की पढ़ाई कर रही हैं। वह कहती हैं कि आदिवासी समाज में महिलाओं के सशक्तीकरण के प्रयास बहुत महत्वपूर्ण हैं। यदि महिलाएं शिक्षित होंगी, जागरूक होंगी तो तस्वीर बदलेगी।

हम आदिवासी क्षेत्र की महिलाओं को बैंक तक लाने का काम कर रहे हैं। हम उन्हें पैसा जमा करना, निकासी करना आदि सिखाते हैं। जब तक वे सीख नहीं जाती, तब तक उनके साथ बैंक भी जाते हैं। इससे आदिवासी महिलाओं को सरकारी योजनाओं का लाभ लेने में मदद मिलती है। – झितरी मईड़ा, सामाजिक कार्यकर्ता

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