झाबुआ

स्वयं से स्वयं के साक्षात्कार का पर्व है पर्युषण -: उपासक विशाल कोठारी

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झाबुआ – जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा झाबुआ द्वारा पर्युषण पर्व के अंतिम दिन संवत्सरी पर्व को उपासक विशाल कोठारी की उपस्थिति में समाज जन द्वारा जप , तप, त्याग आदि के द्वारा मनाया गया |
संवत्सरी पर्व की शुरुआत सुबह 9:00 बजे स्थानीय लक्ष्मीबाई मार्ग स्थित तेरापंथ सभा भवन पर प्रारंभ हुई |कार्यक्रम की शुरुआत में प्रीति चौधरी ,अर्चना चौधरी द्वारा मंगलाचरण गीत की प्रस्तुति दी |इसके बाद तेरापंथी समाज के वरिष्ठ श्रावक मगनलाल जी गादीया ने पर्यूषण पर्व और संवत्सरी पर्व पर प्रकाश डाला | नन्ही बालिका हिरल भंडारी ने धार्मिक गीत पर नृत्य प्रस्तुति दी |विपिन भंडारी ने ओ गुरु सा….. थारो चेलो बणु में ……गीत के माध्यम से पूरा माहौल धर्ममय बना दिया |श्रीमती हंसा गादीया व शर्मिला कोठारी ने मुक्तक के माध्यम से अपनी प्रस्तुति दी | इसके बाद उपासक विशाल कोठारी ने अपने ग्रह ग्राम में धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि पर्युषण महापर्व जैन धर्म का सबसे बड़ा पर्व होता है |यह एक ऐसा पावनकारी पर्व है जिसके पुनीत आगमन से मानव की सुप्त शक्तियां जागृत हो जाती है |पर्यूषण आत्मा को पाप से उस पार पहुंचाने वाला पावन पर्व है | पाप की पूंजी को नष्ट करने के लिए हमें इस पर्व की आराधना करनी चाहिए |पर्यूषण पर्व अंतरात्मा की आराधना का पर्व है आत्मशोधन का पर्व है निद्रा त्यागने का पर्व है |पर्युषण पर्व जप, तप, आराधना साधना ,उपासना ,अनुप्रेक्षा आदि अनेक प्रकार के अनुष्ठानों का अवसर है |पर्यूषण पर्व कषाय शमन का पर्व है यह पर्व 8 दिनों तक मनाया जाता है जिससे किसी के भीतर में ताप , उत्ताप पैदा हो गया हो , किसी के प्रति द्वेष भावना जागृत हो गई हो तो उसे शांत करने का पर्व है | उन्होंने यह भी कहा कि स्वयं से स्वयं के साक्षात्कार का पर्व है पर्यूषण | आज के सुविधावादी व भौतिकवादी युग में मनुष्य का अधिकांश समय अर्थ-अर्जन में ही व्यतीत होता है हमारी सुविधावादी आकांक्षा बढ़ती ही जाती है इसकी कोई सीमा नहीं है | हमारा पूरा ध्यान बाहरी चीजों में ही रहता है और इसी को हमने सुख शांति मान लिया है |पारिवारिक जीवन चलाने के लिए यह आवश्यक तो है परंतु सब कुछ नहीं है| हमें आत्म शांति के लिए अंदर की ओर जाना होगा याने हमारी आत्मा में जमे कर्मों को त्याग ,तप ,जप आदि के द्वारा कम करना होगा |उपासकजी ने यह भी बताया धर्म के अनेक द्वार है| उसमें क्षमा सबसे प्रमुख द्वार है क्षमा जीवन के लिए बहुत जरूरी है जब तक जीवन में क्षमा नहीं ,तब तक व्यक्ति आध्यात्म के पथ पर नहीं बढ़ सकता |उन्होंने एक उदाहरण देते हुए समझाया कि जिस प्रकार एक पत्थर को कई बार घीसने के बाद ही उसमें निखार आता है उसी प्रकार मनुष्य के जीवन में भी कर्मों को घीसने के बाद ही मोक्ष के पथ पर अग्रसर होता है |उन्होंने पर्यूषण पर्व के 8 दिनों मे खाद्य संयम दिवस, स्वाध्याय दिवस , सामायिक दिवस ,वाणी संयम दिवस , अणुव्रत चेतना दिवस , जप दिवस , ध्यान दिवस व संवत्सरी महापर्व पर विशेष प्रकाश डाला| उन्होंने यह भी बताया पर्यूषण पर्व महावीर स्वामी के मूल सिद्धांत अहिंसा परमो धर्म ,जियो और जीने दो की राह पर चलना सिखाता है जो हमें बुरे कर्मों का नाश करके सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है |उपासक जी के वक्तव्य के बाद दीपा गादीया ने भी अपने विचारों की प्रस्तुति दी |तेरापंथी समाज के सचिव पीयूष गादीया ने पर्यूषण पर्व पर प्रकाश डाला |इसके बाद नीरज गादीया ने भी अपनी विचारों की अभिव्यक्ति दी |कार्यक्रम का सफल संचालन सचिव पीयूष गादीया ने किया |

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