झाबुआ

अपने को तो साहब ने कह दिया …!
औपचारिकता निभाना है टेंशन लेने की जरूरत नही..!
घटिया व मंहगें दामों पर दी जा रही है घटिया किस्म की स्कूल डेªस

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जांच के नाम पर औपचारिकता निभा रहे है अधिकारी…!
झाबुआ। शिक्षा सत्र 2023-24 प्रारंभ हो चुका है ऐसे में स्कूल डेªस विक्रेताओं द्वारा खुलेआम लुट की जा रही है। इस संबंध में जयस जिलाध्यक्ष विजय डामोर द्वारा शिकायत भी की गई है कि किस तरह से दुकानदारों द्वारा घटिया किस्म की स्कूल ड्रेस मंहगे दामों पर दी जा रही है। जयस द्वारा शिकायत के बाद अधिकारी औपचारिक तौर पर कार्रवाई करने भी पहुंचे लेकिन सिर्फ औपचारिकता निभा कर वापस आ गए। विजय डामोर का कहना है औपचारिकता निभाने अधिकारी कार्रवाई करने पहुंचे… सुनने में आ रहा है जब अधिकारी शुभम गारमेंट पहुंचे तो अधिकारियों ने न कोई जांच की और नही कोई निर्देश दिए.. तभी शुभम गारमेंट के विपुल लोगों को ये कहते नजर आये साहब ने हमकों कह दिया साहब ने तो हमें कह दिया हम तो औपचारिकता निभाने आये है टेंशन लेने की जरूरत नही। अगर अधिकारी सच में जांच करने पहुंचे थे तो शुभम गारमेंट के गोडाउन की जांच क्यों नही की अगर जांच होती तो दुध का दुध और पानी का पानी हो जाता मात्र फोटों खिंच कर जाना कहीं न कहीं अधिकारियों को संदेह के घेरे में डालता है। झाबुआ जिले में मध्यम वर्ग के परिवार रहते है ऐसे में घटिया किस्म की स्कूल डेªस तो दी जा रही है वो भी मंहगे दामों पर… कहीं न कहीं दुकानदारों को अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त है तभी तो दुकानदार कह रहा है कि साहब ने कह दिया टेंशन लेने की जरूरत नही ये तो औपचारिकता है कार्रवाई थोडी होगी… वहीं रूपकली गारमेंट पर भी इस तरह तरह की शिकायतें मिल रही है। लेकिन कपडे की गुणवत्ता ठिक है लेकिन शुभम गारमेंट की तो बात निराली है सुत्रों की मानें तो यह कहते है उपर तक अपनी सेटिंग है कलेक्टर को भी अपन आराम सेट कर लेगे… अब आप ही देखिये एक ईमानदार कलेक्टर की छवि भी धुमिल करने में ये कोई कसर नही छोड रहे है। बडी बात यह है कि जिले के विकास के लिए आये सरकारी मुलाजिंम इन लुट मचाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाय उन्हे सरक्षण के दे रहे है। ऐसे ही चलता रहा तो एक दिन प्रशासन से लोगों का पुरा विश्वास टुट जायेगा.. फिर एक बडे परिवर्तन की किरण जागेगी। क्योंकि स्थानीय जनप्रतिनिधी इस और ध्यान दे ही रहे है उन्हें सिर्फ अपनी रोटियां सेकने से मतलब है बाकि जाये भाड में तभी तो हर वर्ष पालकों को लुटा जा रहा है लेकिन ध्यान देने वाला कोई नही है और जब वोटों की जरूरत होती है तब वोट मांगने निकल पडते है।

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